02-Nov-2016 08:58 AM
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देश के सबसे बड़े राजनीतिक कुनबे में मचे राजनीतिक घमासान देखकर हर कोई दंग है। जिस तरह से समाजवादी कुनबे मेें उठा पटक मची है और अब यह कलह जिस मोड़ पर जा पहुंची है उसे देखकर तो यहीं लगता है कि कुल दीपक के आगे कुनबे की कुर्बानी की तैयारी हो चुकी है। ये अलग बात है कि समाजवादी सुप्रीमों मुलायम सिंह के रणकौशल पर न तो समाजवादियों को कोई संदेह होना चाहिए न ही राजनैतिक पण्डितों को, क्योंकि मुलायम ऐसे नेता है जो सही समय पर सही निर्णय लेने में माहिर है। अगर समाजवादियों के बीच उनके कुछ न करते हुये या करते हुये कुछ हो रहा है, या कोई ऐसा राजनैतिक घटनाक्रम उत्तरप्रदेश की राजनीति में घट रहा है तो इन सब घटनाओं के कोई तो परिणाम होगेंं? जिसका उत्तरप्रदेश के लोगों को ही नहीं परिवारजन, समाजवादियों को भी इन्तजार करना चाहिए।
उत्तरप्रदेश में जो राजनीतिक घमासान मचा है वह परिस्थिति जन्य न होकर सोची समझी रणनीति का परिणाम है। क्योंकि मुलायम सिंह जैसे नेता बिरले ही होते है जो समय आने पर अपने अनुकूल परिस्थिति बनाने में माहिर होते है। इसीलिये मुलायम सिंह के रहते किसी को यह मुगालता नहीं पालना चाहिए कि पार्टी डूब रही है या समाजवाद डूब रहा है। भले ही मुलायम, राममनोहर लोहिया की मंशा अनुरूप समाजवाद खड़ा करते-करते राजनीति में उलझ गये हों। मगर वह लोहिया का समाजवाद स्थापित नहीं कर सके सिवाए समाजवाद के नाम को बचाये रखने के अलावा। अगर कयासों और घट रहे घटनाक्रमों की समीक्षा की जाए तो निश्चित ही उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी एक नया स्वरूप धारण करने जा रही है जैसी कि सम्भावना है, वह भी ऐसे दबे पांव की किसी को कानो कान खबर न हो।
अब उत्तरप्रदेश में समाजवादियों के बीच या मुखिया के परिवार के बीच घट रहे घटनाक्रमों के परिणामों के पीछे जाये तो विगत 2 माह से उत्तरप्रदेश ही नहीं समूचे देश में समाचारों में सपा चमक रही है। जहां आरोप-प्रत्यारोप विरोध ही नहीं कुनबे के लोग ही आपस में झगड़ रहे है। जिसमें एक गुट जो सत्ता में ताकतवर हो, सत्ता का हीरो बन ताकत दिखा रहा है, तो दूसरा गुट दल में हीरों बन अपना रुतवा दिखा रहा है। हालाकि कुनबे में छिड़ी जंग से न तो मुलायम ही बेखबर है, न ही राजनीति में दखल रखने वाले वह महापण्डित बेखबर है। मगर घटित हो रहे घटनाओं और भविष्य के लिये निर्धारित होते सपा के भविष्य के बारे में माने तो आसन्न चुनावों में लगता नहीं कि सपा की सेहत पर कोई खास असर होने वाला है। मगर इन सबसे इतर इतना तो तय है कि कुल दीपक की खातिर और कुनवे के सम्मान की खातिर फिर कीमत जो भी हो, उत्तरप्रदेश के समाजवादी चुकाने तैयार दिखते है। जैसी कि संभावना है, कलह से विरोधियों को कुछ मिले या फिर न मिले। मगर समाजवादी कुनबे की अवश्य लॉटरी खुली। उप्र के प्रचार में फ्री फोकट में समाजवाद के आधार पर चटकने वाली है।
पार्टी में अखिलेश की पकड़ बहुत ही कमजोर है। जो युवा शक्ति उनके साथ दिखती है वह राजनीतिक जोड़-तोड़ में अनुभवहीन है। अखिलेश का मुस्कुराता चेहरा मतदाताओं का कितना विश्वास हासिल कर पाएगा यह अभी इसलिए यकीनी तौर पर नहीं कहा जा सकता क्योंकि उनके विरोधी उत्तर प्रदेश की बदहाली, जातिवादी प्रशासन और भ्रष्टाचार तथा कमजोर कानून व्यवस्था के लिए अखिलेश के मुस्कुराते चेहरे को ही निशाना बना रहे हैं। ऐसे में एकला चलोÓ का रास्ता अखिलेश की साइकिल को कहां पहुंचाएगा यह कोई नहीं जानता। अखिलेश के तुरुप के पत्तेÓ और रावण का वधÓ करने जैसे सूत्र वाक्यों के खुलासे का इन्तजार करते हुए अब अखिलेश के पक्के समर्थक कहे जाने वाले चेहरे भी कुम्हलाने लगे हैं। पार्टी में बरसों से जुड़े रहे खांटी समाजवादी भी अब उहापोह में हैं कि जाएं तो जाएं कहां। लेकिन जानकारों का कहना है कि मुलायम ने भगवान कृष्ण की तरह एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की है, जो सफल होती नजर आ रही है।
कड़वाहट या कुछ और
समाजवादी कुनबे में बिगबॉसÓ मुलायम सिंह यादव और छोटे उस्तादÓ अखिलेश यादव के बीच के रिश्तों में नाम भले ही पिता-पुत्र का जुड़ा हो मगर उन रिश्तों में घोर प्रतिद्वन्दियों जैसी कड़वाहट देखने को मिल रही है। अखिलेश ने एक बार भी इतनी इच्छा शक्ति नहीं दिखाई है कि सपा उनसे अपने दम पर जीत दिलाने की उम्मीद कर सके और पार्टी के बिग बॉस खुद ही इसकी लुटिया डुबोने पर तुले हैं। समाजवादी पार्टी ने पांच नवम्बर को लखनऊ में पार्टी का रजत जयन्ती समारोह मनाने का ऐलान किया है। 25 वर्ष के संघर्ष और उतार-चढ़ाव भरे सफर में उत्तर प्रदेश में अभूतपूर्व सफलता पाने वाली पार्टी के लिए यह मौका एक बड़ा उत्सव मनाने का मौका हो सकता था। लेकिन अंत:पुर की राजनीति के चलते स्थिति यह हो गई है कि उसका रजत जयन्ती वर्ष पार्टी में नई ऊर्जा का संचार करने के बजाय यवनिका पतनÓ का सीन लिखने में जा रहा है। कल तक जो चेहरा पार्टी की चुनावी यात्रा का नायक बताया जा रहा था उसे अब खुद सपा के मुखिया खारिज कर रहे हैं।
-लखनऊ से मधु आलोक निगम