02-Nov-2016 08:49 AM
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राजस्थान में कल तक अलग-अलग नजर आ रहे भाजपा संगठन और सरकार दोनों ही अब अपनी छवि को लेकर चौकस दिख रहे हैं। जब पड़ताल की गई तो पता चला कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की नसीहत का यह परिणाम है। दरअसल मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की कार्यप्रणाली को लेकर पार्टी में असंतोष पनप रहा था। ऐसे में सरकार के नाकारा होने की छवि बनी तो कांग्रेस ने मौके का फायदा उठाने की गरज से अपने नेताओं की एकजुटता का अभियान छेड़ दिया। खतरे को भांपकर अमित शाह ने वसुंधरा और सूबेदार अशोक परनामी दोनों को दिल्ली तलब किया। कार्यशैली में बदलाव लाने का बौद्धिक पिलाया। मकसद लगातार दूसरी बार पार्टी की जीत सुनिश्चित करना है। साथ ही कठोर हिदायत भी दी।
अमित शाह की हिदायत के बाद पार्टी और सरकार का रुख सकारात्मक दिख रहा है। लेकिन शाह को सोचना चाहिए था कि अभी तो परनामी अपनी टीम तक नहीं बना पाए हैं। जबकि पार्टी के सहसंगठन मंत्री वी सतीश ने अमित शाह को इस बैठक से पहले ही फीडबैक दिया होगा। चर्चा है कि अब वसुंधरा अपनी सरकार की छवि सुधारने के लिए नाकारा और बदनाम मंत्रियों की छुट्टी कर सकती हैं। यह बात अलग है कि जिन्हें हटाया जाएगा, उन्हें काबिल बता पार्टी में जगह मिलेगी। राजेंद्र राठौड़, कालीचरण सर्राफ और किरण माहेश्वरी जैसे मंत्रियों को संगठन के नजरिए से ज्यादा कुशल मानते रहे हैं परनामी। संगठन में दमदार नेता हों तो कार्यकर्ता भी आक्रामक तेवर अपनाते हैं। पर मंत्रियों को तो मालपुओं का चस्का लग चुका है। बदलाव की आहट पाते ही हर कोई जुट गया है कुर्सी बचाने की जुगत में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी को लेकर अचानक भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से दिल्ली जाकर मिलने के बाद राजस्थान में मंत्रिमंडल में फेरबदल और पार्टी संगठन में बदलाव के कयास लगाए जा रहे हैं। करीब पौने तीन सालों से निगम और बोर्डों में राजनीतिक नियुक्ति के इंतजार में बैठे भाजपा कार्यकर्ताओं में भी लालबत्ती मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। इस तरह की चर्चा है कि जहां भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी को राज्य में संगठन की नई टीम बनाने के लिए हरी झंडी दे दी गई है। वहीं मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी अपने मंत्रिमण्डल विस्तार के लिए अनुमति मिल गई है।
राज्य में जल्द ही मंत्रिमण्डल विस्तार हो सकता है। नए मंत्री बनाने के साथ ही करीब दो दर्जन निगम और बोर्ड अध्यक्ष पदों पर भी राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से चर्चा हुई है। साथ ही राज्य से भाजपा के ऐसे नेताओं की सूची भी मांगी गई है जिन्हें उत्तर प्रदेश में चुनावी जिम्मेदारी दी जा सकती है। इस चर्चा के दौरान पार्टी के राज्य प्रभारी वी. सतीश भी मौजूद रहे। राजस्थान में मंत्रिमण्डल में फेरबदल की चर्चा पिछले तीन महीने से चल रही है। बताया जाता है कि इस बार के मंत्रिमण्डल में राज्यमंत्री बड़ी संख्या में हटाए जा सकते हैं। प्रदेश में फिलहाल मुख्यमंत्री समेत 26 मंत्री है जबकि 30 मंत्री बनाए जा सकते हैं ऐसे में अगर चार-पांच मंत्री हटते हैं तो सात-आठ नए चेहरों को मौका मिल सकता है। साथ ही राज्य से भाजपा के ऐसे नेताओं की सूची भी मांगी गई है जिन्हें उत्तर प्रदेश में चुनावी जिम्मदारी दी जा सकती है।
राज्य में मंत्रिमंडल विस्तार की सुगबुगाहट के साथ ही नेताओं ने अपनी-अपनी छवि भी बेहतर बनानी शुरू कर दी है। नेता न केवल रोजाना पार्टी कार्यालय पहुंच रहे हैं बल्कि संगठन के नेताओं से भी चर्चा कर रहे हैं। उधर जानकारों का कहना है कि मंत्रिमंडल विस्तार के समय मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी एक बार फिर आमने-सामने हो सकते हैं।
जिलाध्यक्ष नहीं लड़ सकेंगे अगला विधानसभा चुनाव
भाजपा का कोई भी जिलाध्यक्ष अगला विधानसभा चुनाव नहीं लड़ पाएगा। जिलाध्यक्षों को चुनाव की चाहत छोड़कर संगठन पर फोकस करना होगा। उदयपुर की होटल एंबियंस में हुई प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी ने ये घोषणा की कि जिलाध्यक्ष अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे। परनामी का कहना है कि राजस्थान में पांच साल भाजपा की सरकार और पांच साल कांग्रेस की सरकार का मिथक अब भाजपा फिर सरकार बनाकर तोड़ेगी। परनामी ने बताया कि संगठन को बूथ लेवल पर मजबूत बनाने के लिए पार्टी कुछ नए प्रयोग भी करेगी। कार्य समिति की बैठक से पहले मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना की मौजूदगी में हुई प्रदेश कोर कमेटी की बैठक में कई मुद्दों पर चर्चा हुई। अशोक परनामी ने कहा कि पारदर्शिता के लिए अब पूरे प्रदेश में भाजपा का एक ही बैंक अकांउट होगा। अब तक हर जिलाध्यक्ष अलग से बैंक अकाउंट खोलता था। अशोक परनामी ने कहा कि संगठन को बूथ स्तर पर और मजबूत करने के लिए प्रदेशभर में 572 मंडलों का पुनर्गठन होगा। अब किसी भी मंडल में 50 से अधिक बूथ नहीं होंगे। मंडल की संरचना इस आधार पर होगी कि पूरी पंचायत या वार्ड एक ही मंडल में रहे। एक ही मंडल दो विधानसभा क्षेत्र या लोकसभा क्षेत्र में नहीं हो इसका भी ध्यान रखा जाएगा।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी