02-Nov-2016 08:47 AM
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2017 में देश की सियासत की अग्नि परीक्षा होने वाली है। इस साल उत्तरप्रदेश, पंजाब, गोवा, उत्तरखण्ड और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ये चुनाव भाजपा के लिए चुनौती भरे होंगे। क्योंकि गोवा को छोड़कर भाजपा की स्थिति कहीं भी मजबूत नहीं है। ऐसे में भाजपा की कोशिश है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे करके चुनाव लड़े। हालांकि दिल्ली और बिहार चुनाव में इसके परिणाम सुखद नहीं रहे हैं। लेकिन पाक के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जो जमीनी रिपोर्ट तैयार की है उसके अनुसार इन राज्यों में भाजपा की नैय्या नरेंद्र मोदी ही पार लगा सकते हैं।
पाक अधिकृत कश्मीर में घुस कर आतंकवादी शिविरों को नष्ट करने की भारतीय सेना की कार्रवाई के बाद सभी पार्टियों की चुनावी रणनीति में कुछ न कुछ बदलाव आया है। कांग्रेस और केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी पर हमले की अपनी रणनीति बदली है। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी ने भी पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के लिए अपनी रणनीति बदल दी है। अब भाजपा को सेना की इस कार्रवाई का अधिकतम फायदा लेना है। भाजपा के जानकार सूत्रों का कहना है कि पांचों राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही चेहरा पेश करके प्रचार किया जाएगा। इस रणनीति से अंदाजा लगाया जा रहा है कि भाजपा इस बार संभवत: किसी राज्य में मुख्यमंत्री का दावेदार नहीं प्रोजेक्ट करेगी। सूत्रों के मुताबिक भाजपा के सामने दावेदारों को लेकर बड़ा संकट था। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कोई सर्वमान्य चेहरा पार्टी के पास नहीं है। तो गोवा में पार्टी मौजूदा मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत परसेकर के नाम पर नहीं लडऩा चाहती क्योंकि उनके खिलाफ संघ और भाजपा दोनों जगह नाराजगी है।
गोवा में भाजपा नरेंद्र मोदी के साथ-साथ रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को प्रमुखता से दिखाएगी ताकि यह मैसेज दिया जा सके कि भाजपा पर्रिकर को वापस गोवा भी भेज सकती है। आम आदमी पार्टी से लडऩे लायक एकमात्र चेहरा पर्रिकर का ही है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी के साथ-साथ राजनाथ सिंह का चेहरा प्रमुखता से दिखाया जाएगा और उत्तराखंड में भुवन चंद्र खंडूरी की फोटो बाकी नेताओं से ज्यादा लगेगी। उनकी सेना की पृष्ठभूमि का भाजपा फायदा उठाना चाहती है। पार्लियामेंट चुनाव में अमित शाह उत्तर प्रदेश के चुनावी चाणक्य बनकर उभरे, तो इसके पीछे मोदी लहर के साथ-साथ, जातियों को जोडऩे और तोडऩे की उनकी काबिलियत के साथ-साथ टिकटों के बंटवारे में जातियों का संतुलन भी खासा हाथ रहा लेकिन बिहार चुनाव में ओवर कॉन्फिडेंस का मजा चख चुके अमित शाह उत्तर प्रदेश चुनाव में हर कदम फूंक-फूंककर रख रहे हैं। ऑपरेशन ओबीसी के बाद अमित शाह की नजरें उस दलित वोट बैंक पर टिकी है, जिसकी बेताज बादशाहत अब तक मायावती के पास थी, ऐसे में जब अमित शाह यूपी की सियासत पर अपने दलित एजेंड़े को लेकर सामने आ रहे हैं तो मायावती खेमें में इसकी खलबली भी दिखाई देने लगी है।
जिस रोहित वेमुला के मामले की वजह से भाजपा दलितों के मुद्दे पर बैकफुट पर रही थी, अब मामले के शांत होते ही फ्रंटफुट पर आने लगी है, धम्म चेतना यात्रा के समापन पर अमित शाह का आत्मविश्वास इस ओर इशारा कर रहा था। धम्म यात्रा या बौध भिक्षुओं का सम्मेलन अब तक या तो बीएसपी की पहचान रहे हैं या फिर इसे अंबेडकरवादी संगठनों के प्रतीक के तौर पर माने जाते रहे है लेकिन पहली बार भाजपा ने धम्म चेतना यात्रा को अपने बैनर तले चलाया और अंबेडकरवादियों को दलितों के मुद्दों पर भी चुनौदी दे डाली। यूपी में 174 दिनों की यात्रा के बाद जब ये यात्रा कानपुर पहुंची तो पूर्व सांसद और घोर अंबेडकरवादी धम्म वीरों और सैकड़ों बौध भिक्षुओं के सामने भाजपा के नेता और कार्यकर्ता खड़े थे, जिस मंच से जमकर प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ हुई। धम्म चेतना यात्रा के को-ऑर्डिनेटर और युवा रक्षित भिक्षु कहते हैं पीएम मोदी में उन्हें संम्राट अशोक का अक्स दिखाई देता है क्योंकि मोदी की हर बात में भगवान बुद्ध आते है वो चाहे प्रधानमंत्री बनने के बाद बौद्ध देशों की यात्रा हो या फिर रामलीला से युद्ध से बुद्द की ओर जाने का संदेश, कुछ ऐसा ही मोदी अंबेडकर को लेकर भी है। जिस अंबेडकर को लोग अपने राजनीति के लिए इस्तेमाल करते रहे उस अंबेडकर को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए अगर किसी ने कुछ किया तो वो सिर्फ मोदी है।
ऐसा नहीं है कि इस यात्रा की चर्चा नहीं हुई कई जगहों पर इसे भाजपा की यात्रा कहते हुए इसे रोका गया, कई जगह काले झंड़े दिखाए गए और कई जगहों पर दलित संगठनों ने इसका विरोध किया, विरोध की वजह से आगरा में इसके समापन तक को कैंसिल करना पड़ा लेकिन एक बात साफ हो गई कि भाजपा दलितों में दलित और अंबेडकरवादियों में अंबेडकर को ढूंढने में सफल हुई है। ओबीसी को लगभग साध चुके अमित शाह की नजरें अब दलित वोटों पर टिकी हैं, अमित शाह की कोशिश पहले बीएसपी से पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को तोडऩे की थी जो परंपरागत तौर पर दलितों के साथ वोट करते रहे हैं, अपने पहले एजेंड़े में सफल होने के बाद अमित शाह दलितों में भी सेंध लगाने मे जुटे हैं। यही वजह है कि शाह की नजरें अब दलितों के उस जमात पर टिकी हैं जो दलित में होने के बावजूद मायावती के कट्टर समर्थकों में नहीं है और कोशिश करने पर उनकी बड़ी तादात भाजपा के साथ जुड़ सकती है। दलितों में जाटव मायावती और बीएसपी के कट्टर वोटर है जिनकी तादात पूरे दलित संख्या का करीब 60 फीसदी है, ये वोटबैंक मायावती के साथ चट्टान की तरह खड़ा है लेकिन भाजपा को लगता है कि पासी और कोरी सरीखी दलित जातियों पर उनका ऑपरेशन चल सकता है और अमित शाह की कोशिश भी यही है कि बीएसपी से जाटव के अलावा दूसरी दलित जातियों को तोड़ लिया जाए। भाजपा इसी एजेंडे पर चल भी रही है जाटव के अलावा दूसरी दलित जातियों के नेता लगातार भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के संपर्क में है, सुरक्षित सीटों पर उन्हें ज्यादा से ज्यादा टिकट देने की तैयारी भी है और अब तो दलितों के नाम पर पासी-कोरी और राजभर जातियों के सम्मलेन भी कराने की तैयारी हो रही है।
उत्तर प्रदेश में दलितों की तादात 21 से 23 फीसदी के बीच है, बुंदेलखंड़ में इनकी तादात सबसे ज्यादा लगभग 27-28 प्रतिशत है, अब भाजपा की नजरें भी इसी वोटबैंक पर गड गई हैं, जिस तरह से मायावती अपनी हर रैली में प्रधानंमत्री मोदी को निशाना बना रही है और जिस तरह से अमित शाह दलितों पर अपने ऑपरेशन में लगे हुए है दोनों पार्टियों के बीच घमासान लगभग तय है। भाजपा की पूरी कोशिश इस 22 फीसदी वोट के उस 30 फीसदी वोटों पर है जो बीएसपी को तो परंपरागत तौर पर तो वोट करते आए हैं लेकिन वो दलितों में चमारों या जाटवों के प्रभुत्व से भी नाराज है और भाजपा के प्रति भी सॉफ्ट नजरिया रखते हैं।
ओबीसी वोटों को साधने के लिए अमित शाह पिछले 6-8 महीनों में कई जातियों और पार्टियों पर कई बड़े सर्जिकल ऑपरेशन कर चुके हैं, इस ऑपरेशन का ही असर है कि स्वामी प्रसाद मौर्य, ओमप्रकाश राजभर सरीखे कई पिछड़ी जातियों के नेता या तो भाजपा का दामन थाम चुके हैं या भाजपा से गठबंधन पक्का कर चुके हैं। जातियों के लिहाज से कुर्मी, राजभर, शाक्य सैनी निषाद सरीखी पिछड़ी जातियों का झुकाव भाजपा की ओर दिखता है क्योंकि भाजपा ने उतर प्रदेश के कई पिछड़े चेहरों को मोदी कैबिनेट में जगह भी दी है और इनके छोटे दलों से गठबंधन भी कर रखा है। कुल मिलाकर पांचों राज्यों में जो तस्वीर सामने आ रही है उसमें यही बात निकलकर आ रही है कि इन राज्यों में भाजपा की चुनावी नैय्या मोदी ही पार लगा सकते हैं। इसलिए भाजपा ने इन राज्यों में मुख्यमंत्री का चेहरा प्रोजेक्ट करने की बजाए मोदी को ही चुनावी चेहरा बनाने का मन बना लिया है।
मोदी-शाह का मिशन शबाब पर!
लोकसभा चुनाव के वक्त भाजपा के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी अपनी हर चुनावी रैलियों में कांग्रेस मुक्त भारत का नारा जरूर लगाते थे। मोदी के विरोधियों को शुरू में तो यह जुमला लगा। लेकिन मोदी के पीएम बनने के ढाई साल बाद साफ हो चला है कि यह जुमला नहीं बल्कि मिशन में तब्दील हो चुका है। इसी तर्ज पर भाजपा ने अभी तक 14 राज्यों में अपनी सरकार बना ली है। यानी इस तरह नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस मुक्त भारत का जो सपना देखा था वो सपना आधा तो पूरा हो ही गया है। अब उत्तरप्रदेश, पंजाब, गोवा, उत्तरखण्ड और मणिपुर पर भाजपा की नजर है। जिस तरह देश में मोदी-शाह का मिशन शबाब पर है उससे पार्टी के लोगों का मानना है कि भाजपा इन राज्यों में भी परचम फहराएंगी। ज्ञातव्य है कि इस वक्त देश के नौ राज्यों में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। इनमें गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गोवा, हरियाणा, महाराष्ट्र, असम और झारखंड शामिल हैं। इनके अलावा आंध्र प्रदेश, नगालैंड, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में दूसरे दलों के साथ भाजपा की गठबंधन सरकार है। 2014 के आम चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत से नरेंद्र मोदी का कद बढ़ा और कांग्रेस के हाथ से सत्ता फिसलनी शुरू हो गई। इसके अलावा केरल जैसे राज्य में जहां भाजपा नदारद थी, वहां इस साल हुए चुनाव में पार्टी को 10.6 प्रतिशत वोट हासिल हुए और तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है।
-रजनीकांत पारे