सोशल साइट्स बनीं सौतन
02-Nov-2016 08:32 AM 1235066
पिछले 4-5 सालों में सोशल साइटों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है, जिसमें आदमी और औरत दोनों ही अलग-अलग दोस्त बनाते हैं। सब से बड़ा जरिया फेसबुक और वाट््सऐप हैं। पहले यह लत शहरों तक ही सिमटी थी, पर अब मोबाइल फोन, फेसबुक और वाट्सऐप गांव कसबों तक पहुंच गए हैं। बात-बात पर तलाक के मामलों को अलग कर के देखा जाए, तो सोशल साइटें तलाक की अहम वजहें बन रही हैं। स्कूल में पढ़ाने वाली सलमा फेसबुक और वाट्सऐप दोनों का इस्तेमाल करती थीं। वे जब स्कूल से वापस आतीं, तो कुछ देर सोशल साइट्स पर बिताती थीं। एक बार उनके पति ने उनका फोन देखा तो पता चला कि सलमा रात को किसी मर्द दोस्त से चैटिंग कर रही थी। पति ने इस बात को लेकर पहले झगड़ा शुरू किया और बाद में सलमा को तलाक दे दिया। मुस्लिम बिरादरी में अभी भी औरतों पर तमाम तरह की पाबंदी हैं। ऐसे में सोशल साइटें सौतन बन गई हैं। बात-बात पर होने वाले तलाक में फेसबुक और वाट्सऐप की बातों को सुबूत की तरह से पेश किया जाने लगा है। 50 फीसदी से ज्यादा लोग अपने साथी के अकाउंट पर नजर रखते हैं। 60 फीसदी लोग यह चाहते है कि उनकी पत्नी अपने मोबाइल फोन में किसी तरह का पासवर्ड लौक न लगाएं। 30 फीसदी लोगों में फेसबुक और वाट्सऐप को लेकर हफ्ते में एक बार झगड़ा जरूर होता है। सोशल साइटों ने शादीशुदा जिंदगी में परेशानी खड़ी कर दी है। इसका सबसे ज्यादा असर मुस्लिम बिरादरी पर पड़ रहा है। अब मुस्लिम बिरादरी भी इन मामलों को लेकर जागरूक होने लगी है। 3 तलाक कानून से उसकी परेशानियां और भी ज्यादा बढ़ती जा रही हैं। भारत में 3 तलाक भले ही चल रहा हो, पर मुस्लिम देशों में इस पर बैन लगाया जाना शुरू हो गया है। पाकिस्तान में 3 तलाक को बंद कर दिया गया है। मुस्लिम देशों में गुस्से, नशे और जोश में दिए गए तलाक को सही नहीं माना जाता है। अलग-अलग देशों में तलाक को लेकर अलग-अलग कानून हैं। मुस्लिम देशों में औरतों की हालत बेहद खराब है। यूरोपीय देशों में मुस्लिम जोड़ों के लिए अलग कानून है। 3 तलाक को वहां भी अच्छा नहीं माना जाता है। इसको रोकने के वहां भी अलग-अलग कानून बने हैं। उन देशों में रहने वालों के माली और सामाजिक हालात भारत से अलग हैं। ऐसे में भारत में 3 तलाक को लेकर ज्यादा जागरूकता नहीं है। भारत में तमाम औरतों ने अपने संगठन बनाकर 3 तलाक  का विरोध करना शुरू किया है। इससे समाज में जागरूकता तो आ रही है, पर अभी भी बड़ा हिस्सा 3 तलाक को सही मानता है। आपसी विरोध और सहमति के बीच 3 तलाक का प्रचलन जारी रहने से औरतों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सबसे ज्यादा परेशानी गांव कसबों में रहने वाली औरतों के सामने आती है। कम पढ़ी लिखी गरीब औरतें अपनी शिकायत तक सही से नहीं करा पाती हैं। 3 तलाक ने इस तरह की औरतों की जिंदगी को बर्बाद कर दिया है। बात-बात पर तलाक देने के मामलों को देखा जाए, तो बहुत छोटी-छोटी वजहें सामने आती हैं। रेहाना ने बताया कि उसके पति ने लड़ाई झगड़ा शुरू करने से पहले कहा था कि तुम को खाना बनाना नहीं आता। जब भी तुम गोश्त बनाती हो, उसमें तेल ज्यादा रहता है। उसको खाने के बाद हमारे घर वालों का पेट खराब हो जाएगा। वे बीमार हो जाएंगे। जब तुम घर के लोगों के लिए खाना तक नहीं बना सकती हो, तो तुम्हारे साथ निकाह करके रहने का क्या फायदा? इसके बाद ही उसने तलाक देकर रेहाना को छोड़ दिया। दरअसल, मुस्लिम कानून में औरतों के बजाय आदमियों को ज्यादा हक दिए गए हैं। ऐसे में औरतें हमेशा अपने को असुरक्षित महसूस करती हैं। आदमियों को लगता है कि 3 बार तलाक कहने से उनको बीवी से छुटकारा मिल जाएगा। एक बार तलाक हो जाने के बाद कोई भी औरत की बात को सही नहीं मानता। ऐसे में आदमियों के हौसले बढ़ते जाते हैं। इसलिए आज महिलाओं को ही नहीं पुरुषों को भी इस बारे में सोचने की जरूरत है। तलाक की कहानी मुस्लिम तबके में किसी आदमी को अपनी पत्नी से छुटकारा पाने के लिए तलाक शब्द को कहने का हक हासिल है। 3 बार तलाक शब्द को दोहरा कर वह पत्नी को तलाक दे सकता है। मुस्लिम धर्म के जानकार मानते हैं कि इस तरह बात-बात पर तलाक लेना सही नहीं है। तलाक शब्द को एक साथ ही 3 बार में नहीं बोला जा सकता है। एक महीने में एक बार ही तलाक बोला जा सकता है। इससे पति-पत्नी को तलाक लेने में 3 महीने तक का समय मिल जाता है। सही बात यह है कि लोग इस बात का पालन नहीं करना चाहते। लोग एक बार में ही तलाक शब्द को 3 बार में बोल कर तलाक लेना पसंद करते हैं। मुस्लिम तबके के लोग भी इस बात को ज्यादा प्रचारित नहीं करना चाहते कि तलाक को किस तरह से देना होता है। मर्द इस भ्रम को बनाए रखना चाहते हैं, जिससे वे औरतों का शोषण कर सकें। कम पढ़ी लिखी लड़की इस तरह के दबाव में आकर टूट जाती है। वह 3 बार कहे गए तलाक को ही सही मान लेती है। वह इसको अपनी किस्मत मानकर समझौता कर लेती है। कम उम्र में तलाक होने से औरतें जिंदगीभर दुख भोगती रहती हैं। इसमें से कई दिमागी बीमारियों का शिकार होकर टूट जाती हैं। रेहाना कहती है, तलाक देने के तरीकों से मुस्लिम औरत हमेशा नुकसान में रहती है। जब तक 3 तलाक को सही तरह से इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, तब तक मर्द मनमानी करते रहेंगे।ÓÓ तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी सुझाव दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शादी का रजिस्ट्रेशन कराने के साथ ही शादी में दिए गए स्त्रीधन और मिलने वाले सामान की पूरी लिस्ट भी बनाई जाए। इसके बाद भी अभी तक इस बात पर अमल नहीं किया गया है। -ज्योत्सना अनूप यादव
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