01-May-2013 09:02 AM
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दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर आलोचना का सामना कर रही मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की परेशानियां अब बढ़ती जा रही हैं। पहले उम्मीद की जा रही थी कि शीला दीक्षित चौथी बार मुख्यमंत्री

के रूप में मैदाने जंग में उतरने वाली हैं, लेकिन अब जिस तरह वे चुनावी तैयारियों से मुंह मोड़ रही हैं उसे देखकर तो लगता है कि कहीं न कहीं आला कमान ने उन्हें इशारा कर दिया है कि चौथी बार उनका मुख्यमंत्री बना रहना संभव नहीं है। दिल्ली बलात्कार की राजधानी बन चुकी है। कानून व्यवस्था की स्थिति भी दयनीय है। शीला दीक्षित से पूछे तो वे पुलिस को दोष देती हैं और पुलिस केंद्र के नियंत्रण में है। ऐसी स्थिति में दिल्ली महिलाओं के लिए खतरनाक बन गई है और यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा है। क्योंकि दिल्ली देश की राजधानी है इसलिए हर एक दल यहां अपनी राजनीति स्थापित करना चाहता है। आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल भी दिल्ली की सत्ता पर नजरें जमाए हुए हैं। केजरीवाल ने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 10 लाख पत्र सौंपे। यह पत्र बिजली की दरों में बढ़ोतरी के खिलाफ थे। दिल्ली में बिजली और पानी एक बड़ा मुद्दा है। सड़कें तो शीला दीक्षित ने बहुत खूबसूरत बनवा दी हैं और यह भी सच है कि पिछले 15 वर्षों में दिल्ली की अधोसंरचना में अभूतपूर्व सुधार देखने को मिला है। कुछ इलाके तो बहुत खूबसूरत हो गए हैं। हालांकि गंदगी दिल्ली के चेहरे पर नासूर की तरह अभी भी देखी जा सकती है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कुछ समय पहले दिल्ली शहर के निवासियों पर एक अतिरिक्त कर का बोझ लादा था। राष्ट्रमंडल खेलों के समय किए गए इस करारोपण का भारी विरोध हुआ था। हाल ही में शीला दीक्षित ने कपिल सिब्बल के साथ एक मंच साझा करते हुए खुले रूप से कहा कि दिल्ली के लिए केंद्र सरकार से पर्याप्त पैसा नहीं मिल रहा है। शीला की इस बात को सिब्बल ने गंभीरता से नहीं लिया बल्कि उन्होंने बहुत मजाकिया लहजे में कहा कि शीला दीक्षित को चौथी बार मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं। सवाल यह है कि सिब्बल किस आधार पर यह व्यंग्यात्मक टिप्पणी कर रहे थे क्या उन्हें कहीं से यह आभास हो गया था कि शीला दीक्षित को इस बार मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी नहीं बनाया जाएगा।
यह आभास तो अब और तेजी से हो रहा है। क्योंकि ज्यों-ज्यों वीके शुंगलू कमेटी राष्ट्रमंडल खेलों में हुए 70 हजार करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार की पोल खोल रही है शीला दीक्षित घिरती जा रही हैं। 70 हजार करोड़ रुपये के राष्ट्रमंडल खेल में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की जांच और कार्रवाई को ले कर नये सिरे से मोर्चाबंदी के संकेत हैं। भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की जांच के लिए खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा गठित वी. के. शुंगलू समिति की अभी तक आयी रिपोर्टों ने दिल्ली के उप राज्यपाल तेजेंद्र खन्ना और मुख्यमंत्री शीला दीक्षित समेत कांग्रेस आलाकमान के कई करीबियों को कठघरे में खड़ा कर दिया है, जिससे विपक्ष के हौसले बुलंद हैं तो कांग्रेस और सरकार की मुश्किलें बढ़ गयी हैं। राष्ट्रमंडल खेल में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की जांच के लिये गठित शुंगलू समिति की रिपोर्ट पर कार्रवाई की मांग करते हुए भाजपा ने कहा है कि अब प्रधानमंत्री को ही तय करना है कि वह भ्रष्टाचारियों के संरक्षक की अपनी छवि से मुक्त हो पाते हैं या नहीं। उधर प्रधानमंत्री तथा उनकी पार्टी कांग्रेस ने कहा है कि शुंगलू समिति की रिपोर्ट का संबंधित मंत्रालयों द्वारा विश्लेषण किया जा रहा है। राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में सुरेश कलमाडी क ो गिरफ्तार कर पूछताछ किये जाने तथा निष्पक्ष जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग दोहराते भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया था कि मनमाने ठेके दे कर घोटाले करने के लिए जानबूझ कर खेल परियोजनाओं में विलंब किया गया। चार वर्ष की जिस समय अवधि में 542 ठेके दिये जाने थे, सिर्फ 47 ठेके ही दिये गये, जबकि बाद में नौ माह में 494 ठेके दे दिये गये। वर्ष 2010 में खेलों से ठीक पहले सितंबर में 147 ठेके दिये गये और अक्तूबर में 75 ठेके दिये। यह खेल परियोजनाओं में साजिशन विलंब का प्रमाण है।
सुरेश कलमाडी को एक और झटका देते हुए शुंगलू समिति ने उन्हें राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के लिए नाममात्र की जवाबदेह और पारदर्शी बनावटीÓ आयोजन समिति के गठन के लिए आड़े हाथों लिया है। समिति ने सार्वजनिक की गई 103 पन्नों की अपनी छठी रिपोर्ट राष्ट्रमंडल खेल 2010 का आचरणÓ में कहा कि आयोजन समिति के प्रमुख का पद पाने और समिति पर प्रशासनिक नियंत्रण पाने के लिए कलमाडी के आधिकारिक दस्तावेजों में ठोस बदलावÓ पाए गये। रिपोर्ट में कहा गया, समिति का गठन राष्ट्रमंडल खेल 2010 पर पूर्ण और अबाधित नियंत्रण पाने के लिए एक नकली सोसाइटी के माध्यम से किया गया जिसकी जवाबदेही और पारदर्शिता भारतीय ओलंपिक संघ के मुकाबले बहुत कम थी।Ó
शुंगलू समिति ने कहा, इसलिए हमें इस नतीजे पर पहुंचने में कोई संदेह नहीं है कि दस्तावेज कलमाडी ने तैयार किया या आईओसी में उनके कहने पर उनके हितों को साधने यानी आयोजन समिति के अध्यक्ष पद के लिए और मोटेंगो बे में बिना किसी अधिकार के अपनी प्रतिबद्धताओं को न्यायोचित ठहराने के लिए किया गया।Ó
दिल्ली से अरुण दीक्षित