02-Nov-2016 08:07 AM
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नक्सल उन्मूलन के नाम पर मानवाधिकारों का उल्लंघन तो हो ही रहा है। लेकिन सीबीआई की एक रिपोर्ट ने उन्मूलन कार्य में लगी सरकार और सुरक्षाबलों की हैवानियत सामने आई है। अब इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन मान लें, सरकार और सुरक्षाबलों की ज्यादती या नक्सल समस्या को सुलझाने के बजाय उलझाने वाली हरकत लेकिन ये सही है कि सुरक्षाबल विद्रोह को दबाने के नाम पर अत्याचार की सारी सीमाएं पार करते रहते हैं। अब सीबीआई की जांच में भी इस पर मुहर लग गई है। सीबीआई के खुलासे के बाद कांग्रेस ने सरकार पर आरोपों की झड़ी लगा दी है। साथ ही बस्तर आईजी एसआरपी कल्लूरी को हटाने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने की मांग जोर पकड़ रही है।
सीबीआई का दावा है कि मार्च 2011 में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के ताड़मेटला गांव में पुलिस और सीआईएसएप ने 160 घरों को आग लगा दी थी और इसका सारा ठीकरा नक्सलियों के सिर फोड़ दिया था। 5 साल बाद सीबीआई ने इस बात का खुलासा किया है। अगर सीबीआई जांच की ये रिपोर्ट न आई होती तो राज्य पुलिस ने दावा ही सही माना जाता रहता कि ये आग नक्सलियों ने लगाई थी। जस्टिस मदन बी ठाकुर की बेंच को स्टेटस रिपोर्ट सौंपते हुए सीबीआई ने जानकारी दी कि ताड़मेटला में 160 घर पुलिस के ऑपरेशन के दौरान जले। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में सीबीआई ने सात विशेष पुलिस अधिकारियों का नाम लिया है और कहा है कि उसके पास 323 पुलिसकर्मियों और 95 सीआरपीएफ/ कोबरा कर्मियों की संलिप्तता का सबूत है। यह आगजनी 11 से 16 मार्च के बीच हुई थी जब फोर्स गश्त पर थी।
सीबीआई ने 26 सलवा जुडूम नेताओं के खिलाफ भी आरोप पत्र दाखिल किए है, सलवा जुडूम वो नागरिकों का संगठन है जो अक्सर नक्सलियों पर हमले करता रहता है। सलवा जुडूम के पीछे सरकारी हाथ होने की बात भी कही जाती रही है। अब पता चहा है कि सलवा जुडूम ने 26 मार्च 2011 को जब स्वामी अग्निवेश पर भी जानलेवा हमला किया था। ये हमला तब हुआ जब स्वामी अग्निवेश अपने सहयोगियों सहित उन गांवों में जाने की कोशिश कर रहे थे। ये सभी 26 सलवा जडूम नेता छत्तीसगढ़ में बेखौफ हैं क्योंकि उन्हें सत्ताधारी पार्टी भाजपा और कांग्रेस का जबरदस्त समर्थन मिला हुआ है।
याचिकाकर्ता नंदिनी सुंदर का कहना है कि सीबीआई जांच से पुलिस के झूठ का पर्दाफाश हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने पांच जुलाई 2011 को मामला सीबीआई को सौंपा था। सीबीआई ने सलवा-जुड़ुम नेता तथा एसपीओ के 35 लोगों पर विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। सुप्रीम कोर्ट से पीडिय़ों को मुआवजा देने का भी आदेश हुआ है। ताड़मेटला, तिम्मापुर और मोरपल्ली गांवों में 11 से 16 मार्च 2011 के बीच फोर्स के जवानों ने गश्त की थी। इसी दौरान इन तीनों गांवों को पूरी तरह आग के हवाले कर दिया गया। अब इस खुलासे के बाद राज्य का माहौल गरमा गया है।
आम आदमी पार्टी, माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, सीपीआईएमएल लिबरेशन, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा समेत 20 से अधिक राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने भी कहा है कि बस्तर में लगातार आदिवासियों की हत्या की जा रही है और इन फर्जी मुठभेड़ों के लिये जिम्मेवार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए। माओवाद प्रभावित बस्तर के आईजी पुलिस शिवराम प्रसाद कल्लूरी की गिरफ्तारी की मांग बढ़ती जा रही है। विपक्षी दल कांग्रेस समेत दूसरे राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने कहा है कि बस्तर में फर्जी मुठभेड़ों में निर्दोष आदिवासियों को मारा जा रहा है। छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंह देव का कहना है कि विधानसभा में भी कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठाया था लेकिन सरकार ने इस मामले में सदन को गुमराह किया। सिंह देव ने कहा, इस घटना के आरोपी तत्कालीन पुलिस अधिकारी आज भी बस्तर में पदस्थ हैं एवं राज्य सरकार की दमनकारी नीतियों के पोषक बन कर काम कर रहे हैं।
कल्लूरी बोले सीबीआई का हलफनामा झूठा
बस्तर के आईजी एसआरपी कल्लूरी ने सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए सीबीआई के हलफनामे को झुठलाते हुए कहा है कि ताड़मेटला में पुलिस ने आग नहीं लगाई। उनका दावा है कि मुठभेड़ फायरिंग के दौरान आग लगी होगी। सीबीआई ने ताड़मेटला कांड की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामे में कहा है कि ताड़मेटला में पुलिस के लोगों ने 160 से अधिक घरों में आग लगाई थी। इस मामले को लेकर आरोप के घेरे में आए कल्लूरी ने अब यह भी कह रहे हैं अगर बस्तर से उनके हटने से नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा तो वे 23 घंटे में बस्तर छोड़ देंगे। उधर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल का कहना है कि कल्लूरी को निलंबित कर गिरफ्तार करें और जेल भेजा जाए। उधर कल्लूरी का कहना है कि मीडिया में भ्रामक खबरें प्रकाशित की जा रही हैं।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला