02-Nov-2016 08:04 AM
1234762
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हालात ठीक होने का नाम नहीं ले रहे। देश विरोधी नारेबाजी के चलते बदनामी झेलने वाले जेएनयू में अब एक छात्र लापता है जिसे लेकर छात्र संगठनों में तनातनी चरम पर है। लेफ्ट और राइट विंग के छात्र इस मामले में एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। मामला वाइस चांसलर को बंधक बनाने से लेकर गृह मंत्रालय तक मार्च तक पहुंच गया है। कैंपस में माहौल तनावपूर्ण हो गया।
ज्ञातव्य है कि 14 अक्टूबर की रात को कुछ छात्र हॉस्टल की मेस कमेटी के चुनाव के लिए वोट मांगने माही मांडवी छात्रावास में घूम रहे थे। उसी छात्रावास का कमरा नंबर 106 कामरेड नजीब का हैं। वोट मांगने वाले एक हिन्दू छात्र की कलाई में कलावा बंधा था, नजीब का कमरा उस कलावे से नापाक हो गया। उसने छात्र की कॉलर पकड़ ली और कहा कि कलावा पहनकर मेरे कमरे में घुसने की तेरी हिम्मत कैसे हुई? उसके बाद नजीब ने उसे पीटा। शोर हुआ तो छात्र के साथी जुट गए और नजीब पर क्रिया के साथ और बराबर प्रतिक्रिया हुई। उसके बाद लाल सलाम वालों ने बैठक की। अगली सुबह से नजीब नदारद। उसके बाद जेएनयू में शुरू हुआ राजनीतिक ड्रामा। वीसी, रजिस्ट्रार और तकरीबन दस स्टाफ को प्रशासनिक ब्लॉक में कई घंटों कैद रखा गया है। वामपंथी छात्रों का कहना है कि नजीब एबीवीपी के छात्र नेता से कहासुनी और हाथापाई के बाद ही गायब हुआ है। ऐसे में दोनों तरफ से आरोप प्रत्यारोप लग रहे हैं और कैम्पस राजनीति का अड्डा बना हुआ है।
दरअसल 9 फरवरी को जेएनयू परिसर में हुई देश विरोधी नारेबाजी के बाद लेफ्ट पर तोहमत लगी थी। उसके नेताओं को राष्ट्रद्रोही बताया गया, लेकिन छात्रसंघ चुनावों में जेएनयू के करीब आठ हजार वोटरों में से अधिकतर ने लेफ्ट नेताओं को ही चुना जिससे एबीवीपी के लिए कैंपस में चुनौती पैदा हो गई। केंद्र में सरकार भाजपा की है, ऐसे में भी एबीवीपी की कैंपस में चल नहीं रही है, यह टीस भगवा ब्रिगेड में है। दूसरी ओर लेफ्ट विंग का दर्द यह है कि वर्षों से उनके कब्जे वाले इस कैंपस में भगवा ब्रिगेड का दखल और वर्चस्व क्यों बढ़ रहा है।
कन्हैया कुमार ने भी माना था कि कैंपस में एबीवीपी कमजोर नहीं है। इसलिए चुनाव में लेफ्ट के सारे संगठन एकजुट हो गए। ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) ने फाइट नहीं की। ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने गठबंधन कर लिया। नतीजा ये हुआ कि एबीवीपी को एक भी सीट नहीं मिली। संयुक्त सचिव की उसकी सीट भी लेफ्ट ने छीन ली, जबकि उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है। इन सबके बीच नजीब का गायब होना विवाद को और तूल दे रहा है। उधर विश्वविद्यालय प्रशासन भी मौन है।
जेएनयू के बाद अब हॉस्टलों पर कब्जे की लड़ाई
जेएनयू छात्र संघ चुनाव 9 सितंबर को खत्म हो गया। उसके बाद अब बारी आई है अलग-अलग हॉस्टल यूनियन के चुनावों की। इसमें भी ताकत दिखाई जाती है। इसमें ज्यादातर हॉस्टलों पर वामपंथी संगठनों से जुड़े लोगों का कब्जा है। यहां पर 17 हॉस्टल हैं, जिनका अलग-अलग चुनाव होता है। नजीब मावी-मांडवी हॉस्टल में रहता था। वो एबीवीपी के छात्र नेता विक्रांत यादव से कहासुनी और हाथापाई के बाद ही गायब हुआ है। इस हॉस्टल के प्रधान अलीमुद्दीन हैं। नए प्रधान का चुनाव 17 अक्टूबर को होना था। लेकिन 14 अक्टूबर की रात हुए झगड़े के बाद इसे टाल दिया गया है। जेएनयू के छात्र नेता रामा नागा का आरोप है कि रमजान के दौरान कैंपस में कुछ पर्चे लगाए गए थे। उसे राइट विंग (एबीवीपी) कार्यकर्ताओं ने फाड़ दिया। दूसरी ओर एबीवीपी नेता सौरभ शर्मा कहते हैं कि कैंपस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले को रावण बनाकर उसका दहन किया गया, जो बहुत ही गलत है।
-नवीन रघुवंशी