02-Nov-2016 07:19 AM
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खेती को लाभ का धंधा बनाने में जुटी मप्र सरकार के एक भावनात्मक निर्णय ने सरकार को करीब 70 करोड़ रुपए की चपत लगाई है। आलम यह है कि अब गोदामों में प्याज सड़ रहे हैं और इन सड़े प्याजों को ठिकाने लगाने के लिए 7 करोड़ रुपए से अधिक खर्च होने का अनुमान है।
गौरतलब है कि प्रदेश में इस साल प्याज का बंपर उत्पादन हुआ। मई में इसके दाम 50 पैसे किलो तक पहुंच गए। भंडारण की सुविधा नहीं होने के बावजूद सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए 60 करोड़ रु. खर्च कर 10 लाख क्विंटल से अधिक प्याज खरीदी। खुले बाजार में 4 रु. किलो के हिसाब से बेचने की कोशिश की लेकिन बिकी नहीं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली या पीडीएस के तहत एक रु. किलो में प्याज लेने को कोई तैयार नहीं था। नतीजा यह हुआ कि गोदामों में रखे-रखे ही सात लाख क्विंटल प्याज सड़ गई। इसके पीछे कहा जा रहा है कि प्याज बेचने का निर्णय देरी से लिया गया। इसीलिए प्याज खराब हो गई। कुछ उचित मूल्य की दुकान के मालिकों का आरोप है कि मार्कफेड प्याज बेचने के बारे में कभी गंभीर नहीं था। यह भी बताया जा रहा है कि प्याज की खरीदी से लेकर उसे ठिकाने लगाने तक राज्य सरकार को 45 से 50 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
यह पूरा वाकया देखकर यही कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश में नौकरशाही जो न करे, वो कम है। मुख्यमंत्री के प्याज किसानों को मदद देने के आदेश का अफसरों ने इस नजरिए से पालन किया कि सरकार को करोड़ों का चूना लग गया। जून माह में सरकार ने जो प्याज खरीदी वह परिवहन, गोदामों में रखरखाव करने पर सरकार को साढ़े 9 रुपए किलो में पड़ी! सरकारी एजेंसी मध्यप्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ (मार्कफेड) ने प्याज खरीदी के लिए बैंक से कर्ज भी लिया। इसका ब्याज उन्हें देना है। इसके बावजूद यदि किसान खुश नहीं हुए तो सरकार ने ये सारी कवायद किसके लिए की?
सरकार का मकसद ठीक था। लेकिन, पर इस योजना का क्रियान्वयन करने में अफसरों ने भारी लापरवाही की। उन्होंने सिर्फ मुख्यमंत्री के एक लाइन के आदेश को सुना कि किसानों से 6 रुपए किलो में प्याज खरीदना है। इस प्याज को कब तक स्टॉक करना है? इसे कैसे रखा जाएगा? इस प्याज का निपटान किस तरह होगा? ये सब खरीदी के फैसले के साथ ही तय हो जाना था। पर, इस दिशा में न तो उस वक्त सोचा गया और न बाद में कोई योजना बनाई गई। प्याज को कच्ची फसल माना जाता है, जिसका भंडारण आसान नहीं होता। लेकिन, अफसरों के पास कोई इस सोच को लेकर कोई प्लानिंग होगी, ऐसा नहीं लगा। इस कारण प्याज सड़ गया।
अब इस सड़े प्याज को ठिकाने लगाने के लिए सरकार को एड़ी-चोटी का जोर लगाया गया। मार्कफेडÓ ने कलेक्टरों से कहा कि वे चाहें तो राशन की दुकानों पर यह प्याज दो-तीन रुपए किलो बेच दे। बाद में ये स्थिति एक रुपए किलो तक पहुंच गई। इसके अलावा इस प्याज को अनुसूचित जाति, जनजाति के विद्यार्थियों के होस्टल में और जेल में कैदियों की रसोई के लिए 4 रुपए किलो पर बेच गया। व्यापारियों को ये प्याज खुली नीलामी में थोक भाव में दो रुपए किलो में बेचा गया। इस पूरी कवायद में सबसे बुरी स्थिति उन लोगों की हुई, जो राशन की सरकारी दुकान चलाते हैं। कलेक्टर के इशारे पर खाद्य विभाग के अफसरों ने इन दुकानदारों को परेशान करना शुरू कर दिया और जबरन सड़ी-गली प्याज खरीदने पर मजबूर किया। इन लोगों का तो प्याज ढुलाई का खर्च भी एक रुपए किलो प्याज में नहीं निकल पा रहा है। अतिउत्साह में खरीदा गया ये प्याज अब सरकार के गले पड़ गया है। किसानों को मदद देने के लिए की गई मुख्यमंत्री की घोषणा सरकार के खजाने को बड़ी चोट दे गई।
-धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया