16-Apr-2013 06:36 AM
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राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल के प्रारंभिक दिनों में ही दया याचिकाओं पर शीघ्रता से निर्णय लेकर यह सिद्ध कर दिया है कि वे भारतीय इतिहास के सबसे सख्त और समयसिद्ध राष्ट्रपति हैं। यूं तो राष्ट्रपति का पद भारत में दिखावे का ही होता है किंतु कुछ कर गुजरने के जज्बे से संपन्न राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सिद्ध किया कि आदमी जानदार हो तो राष्ट्रपति जैसे शक्तिहीन और बेजान पद में भी जान डाली जा सकती है। प्रणब मुखर्जी ने रबर स्टेम्प होने की राष्ट्रपति की छवि को भी बदल डाला है। उन्होंने पहले अजमल कसाब और उसके बाद अफजल गुरु की दया याचिकाओं को ठुकराकर यह स्पष्ट कर दिया था कि भारत जैसा स्वाभिमानी राष्ट्र अब आतंकवाद के समक्ष घुटने नहीं टेकेगा। हालांकि उन्होंने जहां आवश्यक है वहां दया भी प्रकट की और दो लोगों की फांसी को घटाकर उम्रकैद में तब्दील कर दिया। लेकिन कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन के साथियों सहित आठ अन्य लोगों की दया याचिकाओं का निपटारा करते हुए उन्होंने सारी पेंडिंग फाइल्स समाप्त कर दी है। इनमें शामिल हैं सुरेश, रामजी, गुरमीत सिंह, प्रवीण कुमार सोनिया और उनके पति संजीव, सुंदर सिंह और जफर अली। राष्ट्रपति के निर्णय के बाद अब इन लोगों को जल्द ही फांसी दे दी जाएगी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल राष्ट्रपति द्वारा इन अपराधियों का क्षमा दान ठुकरा देने के बाद उनके फांसी पर चार हफ्ते के लिए रोक लगा दी है। राष्ट्रपति द्वारा फांसी की माफी ठुकराए जाने के बाद भी न्यायालय की शरण में जाया जा सकता है। इसी का फायदा उठाकर हरियाणा के बलात्कार प्रकरण के दोषी धरमपाल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। धरमपाल ने पैरोल पर रिहा होकर बलात्कार पीडि़ता के परिवार के पांच लोगों की हत्या कर दी थी, फिलहाल उसकी फांसी हाईकोर्ट का निर्णय आने तक रोकी गई है। जहां तक अन्य छह की फांसी का सवाल है राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 72 के अधीन दी गई शक्तियों का उपयोग करते हुए उनकी फांसी की सजा बरकरार रखी है।
1991 में सोनीपत में एक लड़की का बलात्कार करने वाले धर्मपाल को 1993 में 10 साल के लिए जेल भेज दिया गया था। उस पर रेप पीडि़त को कोर्ट में गवाही न देने के लिए धमकाने का भी आरोप लगा था। 1993 में ही पांच दिन की पैरोल पर जेल से बाहर आने पर धर्मपाल ने रेप पीडि़त लड़की के माता-पिता कृष्णा और तेलीराम, बहन नीलम और भाइयों प्रवीण और टीनू को मार दिया था। उसने इन सभी की हत्या रात में सोते समय की थी। धर्मपाल के भाई निर्मल ने उसकी इन हत्याओं में मदद की थी। धर्मपाल के साथ ही उसके भाई को भी मौत की सजा सुनाई गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में धर्मपाल की सजा को ठीक ठहराया था और उसके भाई निर्मल की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। निर्मल ने कई बार पैरोल जंप किया और उसे 2001 में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। धर्मपाल की सजा माफी की अपील 1999 में की गई थी और अगले साल 2000 में ही खारिज हो गई थी। इसके बाद 2005 में फिर से सजा माफी की अपील की गई जो दिसबंर 2012 तक लटकी रही।
उधर पूर्व विधायक रेलूराम हत्याकांड में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास पड़ी सोनिया व संजीव की दया याचिका खारिज होने के बाद देश में पहली बार किसी महिला को फांसी की सजा दी जाएगी। दया याचिका खारिज करने के फैसले को न्याय की जीत मानते हुए फांसी की सजा के याचिकाकर्ता व अधिवक्ता अब जल्द फांसी की तारीख तय करने के लिए अदालत में अर्जी लगाने की तैयारी कर रहे हैं। सोनिया-संजीव फिलहाल अंबाला जेल में बंद हैं। राजीव गांधी हत्याकांड में दोषी नलिनी सिंह को उच्चतम न्यायालय द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व गांधी परिवार ने हस्तक्षेप कर नलिनी सिंह को फांसी से राहत दिलवाई थी। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के पास पहुंची दया याचिका पर उन्होंने पैरवी की थी। राष्ट्रपति के दया याचिका खारिज कर देने के बाद सोनिया को फांसी होना तय हो गया है, जो यह सजा पाने वाली देश की पहली महिला होगी। यह ऐतिहासिक केस था। प्रॉपर्टी की लालच में किए गए घिनौने अपराध की सजा फांसी ही है। इससे दिवंगत आत्मा को भी शांति मिलेगी। राष्ट्रपति के फैसले से न्याय की जीत हुई है। उधर, रेलूराम के भाई व याचिकाकर्ता राम सिंह ने भी दया याचिका खारिज होने पर संतोष जताया है। पूर्व विधायक की हत्या के मामले में अंबाला जेल में बंद संजीव-सोनिया ने पाकिस्तानी जासूस व कुछ अन्य कैदियों के साथ सुरंग खोद कर भागने की कोशिश की थी। उनकी इस कोशिश में पाकिस्तान के साहिवाल के मसूद अख्तर, पश्चिम बंगाल के आनंद पिंटो व राजन गौड़ सहित कुछ अन्य कैदी भी शामिल थे। अंबाला के बलदेव नगर थाने में यह मुकदमा दर्ज किया गया था। 17 फरवरी 2009 को सोनिया ने राष्ट्रपति को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में यह जिक्र किया गया था कि उसकी प्रति मिनट मौत हो रही है। इसलिए दया याचिका पर शीघ्र फैसला लिया जाए। सोनिया व संजीव का एक बेटा भी है और फिलहाल उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में दादा-दादी के परिवार के साथ है। 23 अगस्त 2001 को जिले के प्रभुवाला गांव में पूर्व विधायक रेलूराम व उसके परिवार के आठ लोगों की हत्या कर दी गई थी। इसमें रेलूराम पूनिया के अलावा उनकी पत्नी कृष्णा, बेटे सुनील, बहू शकुंतला, बेटी प्रियंका, चार साल के पोते लोकेश, ढाई साल की पोती शिवानी और डेढ़ महीने की प्रीति की बेरहमी से हत्या की गई थी। 31 मई 2004 को सेशन जज की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। 2 अप्रैल 2005 को हाई कोर्ट ने सजा को उम्रकैद में बदला। 15 फरवरी 2007 को सुप्रीम कोर्ट ने सेशन जज की सजा बरकरार रखने का फैसला दिया। 23 अगस्त 2007 को समीक्षा याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज हुई। सेशन जज ने 26 नवंबर 2007 को फांसी देने की तिथि मुकर्रर की। समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद सोनिया व संजीव ने राष्ट्रपति के पास दया के लिए याचिका लगाई। 3 अप्रैल 2013 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दया याचिका खारिज कर दी।
श्यामसिंह सिकरवार