18-Oct-2016 08:18 AM
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कहा जाता है राजनीति में कोई भी दांव शतरंज की चाल से भी चौकस होकर चलना चाहिए। अगर आपका एक दांव उल्टा पड़ा तो फिर पांच साल के वनवास से कोई रोक नहीं सकता। लेकिन कांग्रेस के युवराज यानी पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं। वे बार-बार गलत दांव लगा रहे है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि केंद्र के साथ ही एक-एक करके राज्यों की सत्ता भी हाथ से निकलती जा रही है। अभी कांग्रेस की स्थिति कुछ सुधरती नजर आ रही थी कि उन्होंने एक और दांव गलत लगा दिया। यानी राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश की सेना से जुड़ा एक निंदनीय बयान दिया है। ऐसे समय में जब देश के लोग ही नहीं, बल्कि दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक एवं स्थिर देश भारत के समर्थन में हैं, राहुल गांधी ने ऐसी बहस को जन्म देने का काम किया है, जिससे न सिर्फ सरकार बल्कि सेना का भी अपमान होता है।
दरअसल, पता नहीं किन सन्दर्भों और प्रमाणों के आधार पर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा पर जवानों के खून की दलालीÓ करने का आरोप लगाया है। जब तक आतंकियों द्वारा हमलों में सेना के जवान शहीद हो रहे थे और कांग्रेस की संप्रग सरकार कड़ी निंदाÓ से मामले को निपटा रही थी, तब तक राहुल गांधी को सेना के जवानों की याद नहीं आई। अब जब उरी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को मुहतोड़ जवाब दिया और सर्जिकल ऑपरेशन पीओके में घुसकर किया, तो राहुल गांधी इस स्तर की राजनीति पर उतर आए।
दरअसल, खून की दलालीÓ का आरोप लगाने से पहले राहुल गांधी को इतिहास जान लेना चाहिए था। हालांकि उनकी इतिहास समझ का अंदाजा उनके आलू की फैक्ट्रीÓ जैसे बयानों से सवालों के घेरे में पहले से है। इस देश ने पाकिस्तान से अनेक लड़ाइयां लड़ी हैं, पहली लड़ाई बंटवारे की लड़ाई थी, जिसके एक छोर पर राहुल गांधी के परनाना पंडित नेहरु खड़े थे और दूसरे छोर पर जिन्ना। सत्ता के लिए देश बंटा तो, न जाने कितने देशवासियों का खून बहा। तो क्या उसे सत्ता के लिए देशवासियों के खून की दलालीÓ कहा जाए?
इसी तरह सन् 1971 में पाकिस्तान से युद्ध हुआ, तब राहुल गांधी की दादी यानी इंदिरा जी प्रधानमंत्री थीं। उस लड़ाई में न सिर्फ पाकिस्तान बुरी तरह परास्त हुआ बल्कि बांग्लादेश (तबका पूर्वी पाकिस्तान) का विभाजन भी हुआ। उसका श्रेय राहुल गांधी और कांग्रेस जब इंदिरा गांधी को देती है, तो क्या इसे कांग्रेस द्वारा हजारों सेना के जवानों के खून की दलालीÓ कहेंगे? 1971 का ऑपरेशन भी तो कांग्रेसियों द्वारा नहीं, बल्कि देश की सेना द्वारा ही लड़ा गया था, लेकिन उसे कांग्रेस अपने श्रेय का विषय बनाकर आज भी पेश करती है। हालांकि इसमें कुछ बुरा नहीं है। नेतृत्व को श्रेय मिलना भी चाहिए, लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस की समस्या ये है कि श्रेय के मामले में वे निहायत स्वार्थी हैं। अपने कुल खानदान से इतर नेहरु परिवारÓ किसी कांग्रेसी को भी अच्छे कार्यों का श्रेय नहीं देना चाहता, मोदी तो फिर भी गैर-कांग्रेसी हैं, वरना पटेल, शास्त्री, कामराज, नरसिम्हा राव सहित न जाने कितने नाम हैं, जो अपनी योग्यता के योग्य प्रतिष्ठा तक कांग्रेस की सरकार रहते नहीं प्राप्त कर सके और संदिग्ध रूप से हाशिये पर चले गए। कांग्रेस आज भी उन्हें अछूत की तरह देखती है। खैर, जब बात खून के दलालीÓ की चल रही है, तो राहुल गांधी से पूछा जाना चाहिए कि 1984 कैसे भूल जाएं। इंदिरा की हत्या के बाद दिल्ली में सिक्खों का कत्लेआम किए जा रहे थे, तो राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी ने कहा था कि जब बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती हिलती है। यहां सिक्खों की लाशों पर पर्यावरण और भू-विज्ञानी का पाठ जनता को पढ़ाकर चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीत कर आए राजीव गांधी ने क्या इंदिरा गांधी के खून की दलाली की थी?
इधर, भोपाल गैस त्रासदी में आरोपी वारेन एंडरसन को भगाने वालों से राहुल गांधी क्यों नहीं पूछते कि उस समय उनकी पार्टी के लोग किसकी दलाली कर रहे थे? मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का इकबालिया बयान है कि एंडरसन को सुरक्षित देश से बाहर निकालने का फैसला उनका नहीं केंद्र सरकार का था। अब केंद्र में तो राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी बैठे थे।
दरअसल, राहुल गांधी बताएं कि क्या भोपाल गैस त्रासदी में मारे गये मासूमों के खून की दलाली किसने खाई थी? राहुल गांधी को अपने अतीत में झांककर बयान देना चाहिए। जब पठानकोट और उरी हमला हुआ, तो यही लोग प्रधानमंत्री मोदी को 56 इंचÓ की उलाहना दे रहे थे। यानी नाकामी के लिए मोदी जिम्मेदार और कामयाबी के लिए श्रेय भी नहीं? हालांकि मोदी सरकार ने तो सर्जिकल ऑपरेशन की प्रेस कांफ्रेंस भी रक्षामंत्री से न कराकर सेना के डीजीएमओ से कराई। दरअसल, इसका साफ मतलब है कि मोदी सरकार पूरा श्रेय सेना को देना चाहती है, लेकिन दिक्कत यहां हुई कि इस देश की जनता सेना के साथ-साथ मोदी सरकार को भी श्रेय का हिस्सेदार बताने लगी और राहुल गांधी को यह बर्दाश्त ही नहीं कि इस देश में उनके खानदान के अलावा किसी को कोई श्रेय दिया जाए। अगर भाजपा की बात करें तो भाजपा हमेशा से अन्तराष्ट्रीय मुद्दों पर विपक्ष में रहकर भी सरकार के साथ रही है।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं की देश में ओछी राजनीति का चलन चल पड़ा है। वह कहते हैं कि एक बार जब तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु को लेकर किसी ने अभद्र टिप्पणी कर दी थी, तब जनसंघ के नेता दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था कि देश के हर मंच से इसकी निंदा की जानी चाहिए। इस पर कुछ लोगों ने कहा कि अभी चुनाव का समय है और हम विपक्ष में हैं, इसका लाभ कांग्रेस को मिलेगा, पंडित उपाध्याय ने कहा कि जो भी हो हम अपने प्रधानमंत्री के लिए ऐसी भाषा बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। आज राहुल गांधी को दीनदयाल उपाध्याय के उन विचारों से कुछ सीखना चाहिए। राहुल गांधी के इस निम्न स्तर की भाषा की आलोचना जब चारों तरफ हुई और भाजपा ने भी इसका प्रेस कांफ्रेंस से जवाब दिया, तो कांग्रेस के पुराने दिग्गज बौखला गए। उन्होंने मामले को राहुल गांधी के खून की दलालीÓ वाले बयान से भटकाते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को अपराधी और तड़ीपार बता दिया। शायद जब यह बयान कपिल सिब्बल दे रहे थे, उस समय उनको इस बात की याद नहीं आई कि खुद उनके उपाध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी सर्वकालिक अध्यक्ष सोनिया गांधी नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर हैं, जो खुद जमानत पर घूम रहे हों उन्हें दूसरों को अपराधी नहीं बताना चाहिए। फिर कपिल सिब्बल तो वकील हैं, सो उन्हें पता होना चाहिए कि अमित शाह को तो सर्वोच्च न्यायालय से क्लीन चिट मिल गई है, लेकिन राहुल गांधी और सोनिया गांधी तो जमानत भर के खुद को बचा रहे हैं। इनके उपाध्यक्ष राहुल गांधी हाल में ही संघ और गांधी पर दिए ऐसे ही एक गलतबयानी के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपने बयान से पलट चुके हैं। यानी कांग्रेस के हर दांव उलटे पड़ रहे हैं।
कांग्रेस ने बनाया ये नया प्लान!
26 दिनी किसान यात्रा के बाद अब यूपी के लिए कांग्रेस ने नया प्लान बनाया है! इसमें हरियाणा और मध्य प्रदेश के कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को लगा दिया गया है। राहुल गांधी की किसान यात्रा का मैसेज गांव-गांव तक पहुंचाया जाएगा। इसीलिए इसका नाम राहुल संदेश यात्रा दिया गया है। कांग्रेस के पूर्व मंत्रियों और विधायकों को प्रभारी बनाकर 75 जिलों में भेजा गया है। इसके तहत कांग्रेसी 17 सीटर बस में जिलों के प्रमुख नेताओं के साथ बैठकर 29 अक्टूबर तक गांव-गांव की यात्रा करेंगे। इसमें भी सबसे बड़ा मुद्दा किसानों को ही जोडऩे का है। नारा दिया गया है कर्ज माफ करो, बिजली बिल हाफ करो।
महीनेभर का संघर्ष मिट्टी में मिल गया
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राहुल गांधी ने जिस अंदाज में पीएम नरेंद्र मोदी पर खून की दलाली का आरोप लगाकर हमला किया, उसके बाद इस मुद्दे पर जारी सियासत पूरी तरह बदल गई। राहुल ने यूपी में 25 दिनों की किसान यात्रा की थी। पार्टी यहां गंभीरता से चुनाव लडऩे की कोशिश कर रही है। उसे उत्तराखंड में सरकार बनाने की चुनौती है। पंजाब और गोवा में सत्ता में वापसी के लिए भी पार्टी संघर्ष कर रही है। ऐसे में राहुल का बयान पार्टी के लिए मुसीबत बन सकता है। पार्टी के रणनीतिकारों के अनुसार, अभी चुनाव में समय है और धारणा को ठीक किया जा सकता है। पार्टी के एक नेता ने माना कि इन दिनों चुनाव में परसेप्शन का बहुत बड़ा रोल होता है और इस तरह का बयान नुकसानदेह हो सकता है। जानकारों के अनुसार, राहुल के इस बयान ने भाजपा को वह मौका दे दिया जिसके आधार पर अब वह यूपी, पंजाब सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में इसको जोरदार तरीके से उठाएगी।
-रजनीकांत पारे