18-Oct-2016 07:18 AM
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महाराष्ट्र सरकार ने बाढ़ प्रभावित मराठवाड़ा के लिए 49,248 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है। लेकिन यह कहीं से भी प्रभावितों को राहत पहुंचाने नहीं जा रहा है। महाराष्ट्र के ऊपर भारी कर्ज है और वह अब और अधिक कर्ज को बर्दाश्त करने की हालत में नहीं है। क्योंकि महाराष्ट्र सरकार का 1.42 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बढ़कर अब 3.80 लाख करोड़ रुपये हो चुका है। ऐसे में यह सवाल उठने लगा है कि फिर राज्य सरकार कैसे मराठवाड़ा के वादे को पूरा करेगा? राज्य सरकार ने भले ही किसानों के लिए बड़े प्रोजेक्ट्स की घोषणा की है लेकिन राज्य सरकार के पास मराठवाड़ा के लिए घोषित की गई परियोजनाओं को पूरा करने के लिए पैसा नहीं है। सरकार के ऊपर 3.80 लाख करोड़ रुपये का वित्तीय बोझ है और अब उसके पास किसी अन्य परियोजना को पूरा करने के लिए पैसे नहीं है। मुंबई के मंत्रालय भवन में मंत्रिमंडल की बैठक की परंपरा को खत्म करते हुए भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने औरंगाबाद में मंत्रालय की बैठक की। बैठक का मुद्दा मराठवाड़ा में आई बाढ़ थी जबकि पिछले तीन साल से यह इलाका सूखे से प्रभावित था। पिछले पंद्रह दिनों से मराठवाड़ा के इलाके में जबरदस्त बारिश हुई है। बाढ़ की वजह से किसानों को कई तरह के नुकसान हुए हैं। यह नुकसान करोड़ों रुपये का है। किसान और विपक्षी दल प्राकृतिक आपदा को देखते हुए सरकार से मुआवाजे की मांग कर रहे हैं।
किसानों के दबाव के आगे घुटने टेकते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने इस क्षेत्र के लिए अभूतपूर्व मुआवजे की घोषणा की। सरकार ने मराठवाड़ा के किसानों के लिए 49,248 करोड़ रुपये के मुआवजे की घोषणा की है। महाराष्ट्र के कर्ज में पिछले 8 सालों में करीब 124 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 2007-08 में यह आंकड़ा 1.42 लाख करोड़ रुपये था जो अब लगभग तिगुना हो चुका है। फाइनेंशियल मामलों के विशेषज्ञ सुनीत जोशी कहते हैं कि राज्य को इस कर्ज के ब्याज के तौर पर 31,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा। यह इसलिए भी चिंताजनक है कि राज्य सरकार को अपने राजस्व का करीब 60 फीसदी हिस्सा वेतन और पेंशन पर खर्च करना पड़ता है।
हालांकि मुख्यमंत्री के सलाहकार इस बारे में अलग सोचते हैं। इनमें से एक सलाहकार ने अपना नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर बताया, जब कभी भी ऐसी परियोजनाओं की घोषणा की जाती है तो बजट में इसके लिए प्रावधान किया जाता है। इन परियोजनाओं के लिए पूरक प्रावधानों की घोषणा वित्त मंत्रालय के सामने रखी जाएगी। सलाहकार ने कहा इन परियोजनाओं के लिए फंड विभिन्न स्रोतों सेे जुटाई जाएगी। उन्होंने कहा, फंड से अधिक इन परियोजनाओं को लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत है। प्रस्ताावित मुंबई नागपुर कम्युनिकेशन एक्सप्रेसवे इसकी मिसाल है। कई सारे ऐसे स्रोत है जिससे सरकार फंड जुटा सकती है। हालांकि वह इस बात का जवाब नहीं दे सके कि सरकार कर्ज के ब्याज की भरपाई कैसे करेगी। जबकि राज्य सरकार पहले से ही वित्तीय दबाव में है। पिछले 8 सालों में राज्य सरकार के राजस्व में हुई बढ़ोतरी भी वित्तीय बोझ को कम नहीं कर सकी है। क्योंकि इस अवधि में राजस्व खर्च में 220 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जोशी का कहना है कि इस वजह से राज्य सरकार बढ़े हुए राजस्व का फायदा नहीं उठा पाई। राज्य का बजट घाटा 9,290 करोड़ रुपये का है। ऐसी स्थिति में जोशी को लगता है मराठवाड़ा के लिए घोषित की गई परियोजनाओं को पूरा नहीं किया जा सकता। उनका कहना है कि आदर्श स्थिति में योजना का आकार राज्य के कुल कर्ज का 24 फीसदी होना चाहिए। महाराष्ट्र में यह डेडलाइन पार हो चुकी है। अब सरकार के पास मराठवाड़ा परियोजना को लागू करने के लिए कर्ज लेने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। राज्य सरकार मुंबई मोनो रेल जैसी गैर व्यावहारिक परियोजनाओं पर पहले से ही भारी रकम खर्च कर चुकी है। इस परियोजना से सरकार को हर दिन करीब 3 लाख रुपये का नुकसान हो रहा है। सरकार वल्र्ड बैंक, आईएमएफ और जापान जैसे देश से पहले ही कर्ज ले चुकी है। अब उसके पास कर्ज लेने का कोई और विकल्प नहीं है।
कहां से आएगा परियोजनाओं के लिए धन
राज्य सरकार ने भले ही किसानों के लिए बड़े प्रोजेक्ट्स की घोषणा की है लेकिन राज्य सरकार के पास मराठवाड़ा के लिए घोषित की गई परियोजनाओं को पूरा करने के लिए पैसा नहीं है। सरकार के ऊपर 3.80 लाख करोड़ रुपये का वित्तीय बोझ है और अब उसके पास किसी अन्य परियोजना को पूरा करने के लिए पैसे नहीं है। मुंबई के एक फाइनेंशियल मामलों के विशेषज्ञ सुनीत जोशी ने बताया, महाराष्ट्र में परियोजनाओं को पूरा करने के लिए कोई व्यावहारिक विकल्प नहीं है। राज्य पर करीब 3 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और ऐसे में कोई इन परियोजनाओं को शुरू किए जाने के बारे में सोच भी नहीं सकता। आप उनके पूरा होने की बात तो छोड़ ही दीजिए। महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस समिति के प्रवक्ता सचिन सावंत कहते हैं कि सरकार ने जिन परियोजनाओं की घोषणा की है वह बेहद गैर व्यावहारिक हैं। आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। पूरे कैबिनेट का लाइ डिटेक्टर टेस्ट कराया जाना चाहिए। सरकार लोगों को गुमराह कर रही है। जैसा कि उन्होंने पहले भी किसानों को गुमराह किया है।
-मुंबई से ऋतेन्द्र माथुर