कुपोषण नहीं तो फिर मौत कैसे?
18-Oct-2016 06:54 AM 1234770
कुपोषण मध्य प्रदेश सरकार के लिए ऐसी समस्या बन गया है जिससे निपटने का समाधान सरकार के पास नहीं है। पिछले एक महीने से जिस तरह से कुपोषण के नए मामले सामने आ रहे हैं, उसने सरकार के ऊपर गंभीर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। अकेले श्योपुर जिले में ही बीते कुछ दिनों के भीतर 70 से ज्यादा बच्चों की मौत कुपोषण से हो चुकी है। लेकिन सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है। सरकार किसी और कारण से बच्चों की मौत होना बता रही है। लेकिन किस कारण यह अभी तक स्पष्ट नहीं किया जा सका है। उधर, श्योपुर जिले में लगातार हो रही कुपोषित बच्चों की मौतों का कारण कुपोषण बताने वाले सीएमएचओ डॉ. आरपी सरल को हटा दिया गया है। इतना ही नहीं उनका डिमोशन करके श्योपुर जिला अस्पताल में ही पोस्टेड किया गया है। बच्चों की मौतों पर यह दूसरी बड़ी कार्रवाई है। इससे पहले महिला बाल विकास के डीपीओ जयवंत वर्मा को पद से हटाया जा चुका है। इससे सरकार की कार्य प्रणाली पर सवाल उठने लगे है। जिले की विजयपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक रामनिवास रावत कहते हैं कि महिला एवं बाल विकास विभाग और स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से जिले में बच्चों की मौत हो रही है। प्रदेश में कुपोषण को लेकर हाल बुरे हैं। हमारे यहां तो यह भयावह स्थिति में है। कई दफा सरकार को हकीकत बता दी है लेकिन फिर भी कोई एक्शन प्लान नजर नहीं आ रहा है। सरकार आखिर क्या चाहती है? महिला एवं बाल विकास विभाग प्रमुख सचिव जेएन कंसोटिया कुपोषण से कभी मौत नहीं होती है। श्योपुर में मौतें हुई हैं, उसकी वजह कुपोषण नहीं है। मौतें गरीबी और सेनिटेशन के प्रति जागरुकता नहीं होने के कारण हुई हैं। उधर, कुपोषण से मौत के मामले में सरकार और स्वास्थ्य विभाग कटघरे में है। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने श्योपुर के सीएचएमओ के उस बयान के बाद ये नोटिस जारी किया है। जिसमें उन्होंने खुद ही कुपोषण से बच्चों की मौत को स्वीकार करते हुए ये कहा था कि जिले में सिर्फ तीन पोषण पुनर्वास केंद्र हैं, जहां क्षमता से ज्यादा बच्चे भर्ती हैं। प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस ने गलती मानी है और हालात बेहतर करने की बात कही है। वह कहती हैं कि मप्र में पिछले दस सालों में मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में बहुत अच्छी कमी आई है, यह इस बात का संकेत है कि शिवराज सिंह सरकार के नेतृत्व में महिला बाल विकास और स्वास्थ्य विभाग सुदूर गांव तक अपनी पहुंच स्थापित कर चुका है। दरअसल, कुपोषण मध्यप्रदेश के लिए कोई नया विषय नहीं हैं। यहां हर साल हजारों बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती है। यह बात और है कि सरकार या सिस्टम इन मौतों को बीमारियों से जोड़कर किनारा कर लेती है। वहीं एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में 13 लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कुपोषण के फंड से किसका पोषण हो रहा है। विधानसभा में पेश किए गए सरकारी आंकड़ों पर भरोसा करें तो प्रदेश में हर रोज करीब 60 बच्चों की मौत हो रही है। यह छह साल से कम उम्र के बच्चे हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। विधानसभा में श्योपुर जिले की विजयपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक और पूर्व मंत्री रामनिवास रावत के सवाल के जवाब में सरकार ने विधानसभा में बताया था कि प्रदेश में फिलहाल 13,31,088 बच्चे कुपोषित हैं। अकेले श्योपुर जिले में 19,724 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। महत्वपूर्ण यह है कि इस कुपोषण से सिर्फ दूर-दराज के जिले ही प्रभावित नहीं हैं, बल्कि शहरी क्षेत्र के कई जिलों का भी हाल बुरा है। राजधानी भोपाल में 26,164 बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं। कारोबारी शहर इंदौर में भी करीब 22,326 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। मध्य प्रदेश का एक भी जिला ऐसा नहीं है, जहां कुपोषित बच्चों का आंकड़ा हजारों में न हो। बच्चों की मौतों पर बात करें तो जनवरी 2016 से मई 2016 के बीच में करीब 9,167 बच्चों की मौत हुई है जो औसत 60 बच्चे रोजाना है। सबसे ज्यादा परेशान करने वाले आंकड़े श्योपुर जिले के हैं। यह राज्य का आदिवासी बहुल जिला है। इस जिले में बच्चों की लगातार हो रही मौतों ने सरकार की व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है। समय रहते बचाया जा सकता था मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री रुस्तम सिंह भी स्वीकारते हैं कि मौतें हुई हैं। लेकिन उनकी वजह कुपोषण नहीं बल्कि कुछ और है। हालांकि वह स्वीकारने से गुरेज नहीं करते हैं कि अगर समय रहते इन बच्चों को इलाज मिल गया होता तो उन्हें बचाया जा सकता था। सिंह साफ तौर पर स्वीकारते हैं की चूक सिस्टम में है, इसे कैसे और बेहतर बनाया जाए इसको लेकर प्रयास होने चाहिए। हालांकि वह दूसरी ओर कहते हैं कि सरकार ने इस मुद्दे पर श्वेतपत्र लाने का ऐलान किया है। एक कमेटी बनाई है जो पूरे मुद्दे पर काम कर रही है। जल्द ही श्वेतपत्र आएगा, उसमें इससे निपटने का एक्शन प्लान भी होगा। छोटे बच्चे बीमारियों का शिकार हो रहे हैं और कुपोषित होने के कारण उन बीमारियों से लड़ नहीं पा रहे हैं। वह सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं कि अगर कुपोषण से मौतें हो रही हैं तो सिर्फ श्योपुर में क्यों हो रही हैं, दूसरे जिलों में भी होनी चाहिए। कुपोषित बच्चे तो पूरे प्रदेश में हैं। -सिद्धार्थ पाण्डे
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