18-Oct-2016 06:37 AM
1234759
मध्य प्रदेश में दलितों और आदिवासियों के साथ छल-कपट करना अब परिपाटी बन गया है। आए दिन वन क्षेत्र से आदिवासियों को बेदखल करने की बात सामने आती है। वैसे तो वन क्षेत्र और वन्य प्राणियों को बचाने के नाम पर आदिवासियों को सुनियोजित योजना के तहत जंगलों से विस्थापित किया
जाता है। लेकिन इस विस्थापन योजना का फायदा रसूखदार उठा रहे हैं। इसी तरह दलितों को जमीन का मालिक बनाने के नाम पर ठगा जा रहा है।
दलितों को ठगने की एक ऐसी ही बात करीब 15 साल पहले से शुरू होती है। देवास जिले के मोखा पिपलिया गांव में रहने वाले सिद्धूजी बेहद खुश थे कि वे भी अब जमीन के मालिक बनेंगे। दूसरों के खेत में मजदूरी करते हुए उनकी कई पीढिय़ां गुजर चुकी थीं। एक दलित परिवार के मुखिया सिद्धूजी ने सोचा कि देर से ही सही, उनके भाग जग गए। उनका ऐसा सोचना लाजमी था। उन्हें सरकार ने बाकायदा पट्टा लिखकर अपने ही गांव की पांच बीघा जमीन का मालिक करार दे दिया था। लेकिन सरकारी कागज मिलने के अगले ही दिन 60 साल के सिद्धूजी के सारे सपने तार-तार हो गए। उन्हें सरकार ने जो जमीन दी थी, वहां तो नदी बह रही थी। उन्हें समझ में नहीं आया कि वे बहती हुई नदी में खेती कैसे करें। तब से अब तक उन्होंने गांव से जिले तक सब तरफ कोशिश की, पर समस्या वहीं की वहीं है।
मध्यप्रदेश में यह अकेले सिद्धूजी की कहानी नहीं है। प्रदेश के 30 से ज्यादा जिलों में रहने वाले करीब सवा दो लाख दलित और आदिवासी परिवारों का यही हाल है। 1999 से 2002 के बीच सरकार ने निर्धन भूमिहीन दलित आदिवासी परिवारों को खेती के लिए जमीन के पट्टे बांटे थे। ये पट्टे उनके ही गांव की सरकारी जमीन में से दिए गए थे। तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने प्रदेश के अनुसूचित जाति और जनजाति के तीन लाख 24 हजार 329 परिवारों को छह लाख 98 हजार 524 एकड़ जमीन आवंटित की थी। लेकिन 15 साल बीत जाने के बाद भी हाल यह है कि इनमें से 70 फीसदी लोग अपनी जमीन पर काबिज नहीं हो सके हैं। खुद सरकार ने विधानसभा में यह बात मानी है। फरवरी 2013 में तत्कालीन राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा ने कांग्रेस विधायक केपी सिंह के एक सवाल के जवाब में बताया था कि प्रदेश के कई जिलों में पट्टेधारकों को उनकी जमीन पर काबिज नहीं कराया जा सका है। हालांकि उन्होंने विधानसभा में इस आंकड़े को 60 प्रतिशत ही बताया था लेकिन, प्रदेश भर में सर्वे करने वाली संस्था भू- अधिकार अभियान का दावा है कि यह 70 फीसदी है। यानी लोगों के हाथों में पट्टे के कागज तो हैं पर उनकी नियति वही है जो पहले थी।
भू-अधिकार अभियान के गजराज सिंह कहते हैं, कुछ लोगों को तो यह तक पता नहीं था कि सरकार ने उनके नाम कोई जमीन की है। सूचना के अधिकार से उन्हें अब इस बात का पता चल पा रहा है। कई लोगों को पट्टे तो मिल गए पर उन्हें आज तक कब्जा नहीं मिला। उनकी जमीनों पर आज भी दबंग या प्रभावी लोग ही खेती कर रहे हैं। गजराज अपनी बात आगे बढ़ाते हैं, कुछ को जमीन तो मिल गई पर उनकी जमीन तक जाने का कोई रास्ता ही नहीं दिया गया। ऐसे में वे खेती नहीं कर पा रहे। कई जगह जंगल की जमीन आवंटित कर दी है, वहां वन विभाग खेती नहीं करने दे रहा। वहां राजस्व और वन विभाग के बीच दलित दो पाटन के बीच की तरह पीस रहे हैं। किसी को नदी -नालों पर ही पट्टे दे दिए। किसी को पहाड़ पर तो किसी को रास्ते पर। किसी को आधी तो किसी को चौथाई हिस्सा जमीन ही मिल पायी है। गजराज यह भी बताते हैं कि जब सरकार ने सारी कृषि जमीनों का विवरण कंप्यूटराइज्ड किया तब कई जिलों में पट्टे की जमीनों को कंप्यूटर रिकार्ड में चढ़ाया ही नहीं गया। बाद में जब इसकी शिकायत हुई तो सुधार किया गया।
ऐसे में प्रभावितों को शासकीय रिकार्ड कैसे मिलता? कुल मिलाकर कहें तो सरकारी अमले की निष्क्रियता से पूरी योजना ही मटियामेट हो चुकी है। कुछ को जमीन तो मिल गई पर उनकी जमीन तक जाने का कोई रास्ता ही नहीं दिया गया। कई जगह जंगल की जमीन आवंटित कर दी है, वहां वन विभाग उन्हें खेती नहीं करने दे रहा। सबसे बुरी स्थिति छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह, उज्जैन, देवास, शाजापुर, नीमच, मंदसौर, विदिशा, सागर और इंदौर जिलों की है।
दबंगों के डर से पट्टे की जमीन लेने को तैयार नहीं
पट्टे की जमीन पर बरसों से कब्जा जमाए दबंग अब किसी की सुनने को तैयार नहीं है। कई बार तो वे कब्जा दिलाने खेत पर पहुंचे सरकारी अमले पर भी हमला करने से भी बाज नहीं आते। छतरपुर जिले में महाराजपुर के सैला गांव में 55 वर्षीय अजोध्या अहिरवार ने पट्टे की जमीन पर दबंगों के कब्जे को लेकर न्यायालय में गुहार लगाई तो फैसला उनके पक्ष में आया। फैसले से उत्साहित अजोध्या ट्रैक्टर लेकर तिल्ली बोने अपने खेत पर गए तो वहां मौजूद दर्जनभर से ज्यादा दबंगों ने उनकी लाठियों से पीट-पीट कर हत्या कर दी। देवास जिले के बागली में बडियामांडू के 70 साल के दोलूजी से गांव के ही दबंग लोगों ने पट्टे की जमीन पर काबिज होने की बात पर दो बार खून-खराबा किया। आखिरकार परिवार सहित उन्हें गांव से भागना पड़ा। कुछ समय पहले देवास जिले के खेड़ा माधौपुर में एक परिवार के लिए जमीन का सीमांकन कर उसे कब्जा दिलाने गए पटवारी विनोद तंवर, चौकीदार और कालू को 30 -40 दबंगों ने पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। इससे अब दलित पट्टे की जमीन लेने की कोशिश भी नहीं कर रहे हैं।
-भोपाल से राजेश बोरकर