18-Oct-2016 06:39 AM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के बारे में कहा जा सकता है कि वह अपने चुनावी घोषणापत्र के वादे पूरे नहीं कर पाई है। लेकिन अघोषित संपत्ति यानी कालेधन को बाहर निकलवाने के मामले में उसे बड़ी सफलता मिली है। दीवाली से पहले 64 हजार से ज्यादा टैक्स डिफॉल्टरों ने 65 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा की अघोषित संपत्ति की घोषणा करके आयकर विभाग और सरकार को खुश होने की वजह दे दी है। हालांकि यह आंकड़ा अब भी सागर के सामने बूंद जैसा लगता है। इस साल की शुरुआत में सरकार ने संदिग्ध टैक्स चोरों को सात लाख से भी ज्यादा चि_ियां भेजी थीं। इस लिहाज से देखें तो जो प्रतिक्रिया आई है वह बहुत छोटी है।
इससे पता चलता है कि अब भी कितनी विशाल रकम वसूली जानी बाकी है। यह देखना बहुत दिलचस्प होगा कि सरकार उन लाखों लोगों पर क्या कार्रवाई करती है जो अब भी नहीं सुधरने को तैयार नहीं है। वित्तमंत्री अरुण जेटली साफ-साफ कह चुके हैं कि अब भी जिन लोगों ने कालेधन की घोषणा नहीं की है उन्हें बहुत गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। अपनी इस कवायद में उन्हें निश्चित रूप से सभी का समर्थन मिलेगा। यह वास्तव में हैरानी की बात है कि सरकार के ऐसा कहने के बाद भी लोगों में इस तरह की संपत्ति को छिपाने की हिम्मत बची हुई है। लेकिन टैक्स चोरों का पता लगाना इस पूरी कवायद का सिर्फ एक हिस्सा है। अब सरकार को कालेधन के मूल पर ही चोट करने पर भी उतनी ही गंभीरता से ध्यान देना होगा। रियल एस्टेट से लेकर निर्माण उद्योग तक कालाधन जिन रास्तों से पैदा होता है उनके बारे में सरकार को पता है और बड़ी मछलियों पर बिना कोई नरमी दिखाए कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन रेस्टोरेंट कारोबारियों से लेकर डॉक्टर और वकील जैसे तमाम पेशेवरों तक भारत में लाखों मछलियां अब भी शिकंजे से बाहर हैं। उदाहरण के लिए छोटे-मोटे व्यापारी या रेस्टोरेंट मांगे बिना अब भी बिल नहीं देते। उन तक पहुंचना बहुत मुश्किल काम है और आयकर विभाग को यह काम करने के लिए एक विशाल फौज चाहिए होगी।
लेकिन अब सरकार के पास इस दिशा में आगे बढऩे के अलावा कोई चारा नहीं है। उसे स्वच्छ भारत और सामाजिक कल्याण की ऐसी कई अहम योजनाओं के लिए पैसा चाहिए। उस पर आरोप लग रहे हैं कि वह सामाजिक क्षेत्र पर अपने खर्च में भारी कटौती कर रही है जिसमें नरेगा के बजट में हुई कटौती भी शामिल है। अगर और भी कालाधन बाहर आता है तो सरकार की दलित उत्थान से जुड़ी योजनाएं महज प्रतीकवाद से आगे बढ़ सकती हैं। इससे बेहद जरूरी महिला सशक्तिकरण की योजनाएं भी आगे बढ़ाई जा सकती हैं। यह पैसा उन उद्यमियों को पैदा करने के लिए भी जरूरी है जो बेरोजगारों की बढ़ती फौज को काम दे सकें। मोदी सरकार के पास तीन साल और हैं और अगर उसके पास पैसा हो तो वह बहुत कुछ हासिल कर सकती है। अगर 64 हजार लोगों ने 65 हजार करोड़ रु. की घोषणा की है तो कल्पना की जा सकती है कि जिन बाकी 6 लाख 40 हजार लोगों को नोटिस मिले हैं उनसे कितना पैसा आ सकता है।
बहरहाल, इससे भी बड़ी बात लोगों को अपने छिपे धन को सामने लाने के लिए प्रोत्साहित करने में मिली कामयाबी है। इससे संकेत मिलता है कि देश में काला धन के खिलाफ माहौल बना है। सूचना तकनीक तथा स्थायी खाता संख्या के बढ़ते उपयोग और अगले साल से वस्तु एवं सेवा कर लागू होने की संभावना का भी इसमें योगदान है। रुपयों के इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर और एक खास सीमा से ऊपर लेन-देन पर पैन बताना अनिवार्य होने के कारण बिना कर चुकाए रकम रखना लगातार अधिक कठिन होता जा रहा है। इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि ऐसा करने में लोगों के लिए जोखिम बढ़ा है। जीएसटी लागू करने के लिए देश में आईटी आधारित नेटवर्क तैयार हो रहा है। जीएसटी का ढांचा ऐसा होगा, जिसमें कर चोरी मुश्किल हो जाएगी। बहरहाल, अभी एक साल पहले भी ये तमाम बातें मौजूद थीं। मगर तब ऐसी सरकारी योजना ज्यादा सफल नहीं रही। तब सिर्फ 638 घोषणाएं हुई थीं, जिनसे 4,164 करोड़ रुपए का खुलासा हुआ। इसकी रोशनी में गुजरे साल में आया अंतर खासा उल्लेखनीय हो जाता है। 65 हजार करोड़ उसका बहुत छोटा हिस्सा है। फिर यह भी गौरतलब है कि ये योजना आयकर, धनकर और बेनामी लेन-देन से संबंधित मामलों में हुई कर चोरी के लिए थी। इसमें वो कर चोरी शामिल नहीं है, जो विदेशी मुद्रा, मनी लॉन्ड्रिंग, उत्पाद, सीमा शुल्क, सेवा कर, वैट आदि चुकाने के क्रम में होती हैं। ऐसी कर चोरियों का संबंध धन को बिना टैक्स दिए विदेश ले जाने से होता है।
नीयत हो साफ तो निकल आएगा कालाधन
देश में कालेधन को निकालने के प्रयास कई बार हुए हैं। 1986 में आय घोषणा स्कीम लाई गई। इसमें आमजन से 10 प्रतिशत दर पर टैक्स जमा कराने के प्रयास हुए। 2003 में गोल्ड व सिल्वर की स्वत: घोषणा करने की स्कीम लाई गई। 2014 के लोकसभा चुनाव में स्विस बैंकों में जमा कालाधन बड़े मुद्दे के रूप में सामने आया। हालांकि कितना धन जमा है वहां, यह आंकड़े आज तक विशेषज्ञों की राय में अपुष्ट ही हैं। इसी के तहत केंद्र सरकार ने जून में आइडीएस की घोषणा की और 30 सितंबर अंतिम तिथि रखी गई। करीब 64 हजार लोगों ने 65200 करोड़ रुपये की आय घोषित भी की। जिसका 45 फीसदी सरकार को टैक्स के रूप में मिलेगा। इससे साबित होता है कि अगर सरकार और लोगों की नीयत साफ हो तो कालाधन बाहर आ सकता है।
-बिंदु माथुर