18-Oct-2016 06:32 AM
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राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने पांच सिंतबर को शिक्षक दिवस के मौके पर दिल्ली के डॉ राजेन्द्र प्रसाद सर्वोदय विद्यालय में छात्रों को संबोधित करते हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का जिक्र किया था। इसके दो दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने सात सिंतबर को राष्ट्रपति के विचार का समर्थन किया था। मोदी ने भी मार्च में भाजपा की एक बैठक में 2014 के चुनाव घोषणा पत्र के मुद्दे को रेखांकित करते हुए अधिकारिक तौर पर पंचायत नगर निकायों, विधानसभाओं और लोकसभा का चुनाव एक साथ कराए जाने का विचार व्यक्त किया था।
गौरतलब है कि 2014 के भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में संस्थागत सुधार के विषय में कहा था कि भाजपा दूसरी पार्टियों के साथ बातचीत के जरिए एक ऐसा तरीका निकालना चाहेगी, जिससे लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकें। सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी का मानना है कि देश में बार-बार होने वाले चुनाव के कारण आचार संहिता लागू हो जाती है और विकास के काम रुक जाते है और नीतिगत फैसलों को भी टालना पड़ता है। सरकार का मानना है कि एक देश एक चुनाव से देश में चुनाव के दौरान बेतहाशा होने वाले खर्चो में कमी आएगी और कालेधन के इस्तेमाल पर भी लगाम लगेगी।
एक अनुमान के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव पर 35 हजार करोड़ रुपये का खर्च विभिन्न राजनैतिक दलों ने किया था। सरकार का भी आंकलन है कि लोकसभा और विधानसभा पर अगर एक ही दर से खर्च होता है और अगर इसके साथ विधानसभा, नगरपालिका और पंचायत चुनावों का खर्च भी जोड़ दिया जाए तो यह आंकड़ा एक लाख करोड़ के करीब बैठता है। यदि एक देश एक चुनाव की व्यवस्था लागू हो जाती है तो कालेधन पर लगाम लगाने के साथ कम पैसों में चुनाव कराए जा सकेंगे। चुनाव आयोग ने भी केन्द्र और राज्य के चुनाव को साथ-साथ कराए जाने के विचार पर गंभीरता से सोच रही है। सूत्र बताते है कि प्रधानमंत्री मोदी इस मामले में आम सहमति बनाकर फिर संविधान संशोधन की दिशा में कदम बढ़ाएंगे जैसे केन्द्र सरकार ने जीएसटी के लिए किया था।
सूत्र बताते है कि सरकार के रणनीतिकार एक देश एक चुनाव को अमलीजामा पहनाने के लिए सभी दलों से बातचीत शुरू करेंगे। सरकार इस संबंध में सर्वदलीय बैठक बुला सकती है। भाजपा के एक बड़े नेता का कहना है कि हम इस दिशा में तेजी से बढ़ेंगे और हमारी कोशिश होगी की 2019 के चुनाव के समय एक देश एक चुनाव को लागू किया जा सकें।
क्या है सरकार की कोशिश : सूत्र बताते है कि मोदी सरकार एक देश एक चुनाव को लागू करने के लिए संविधान संशोधन करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। इस संबंध में सरकार ने कानून मंत्रालय और विधि विभाग से प्रस्ताव तैयार करने को कहा है।
सरकार अनुच्छेद 83 (संसद का कार्यकाल), अनुच्छेद 85 (संसदीय सत्र को स्थगित करना और खत्म करना), अनुच्छेद 172 (विधानसभा का कार्यकाल) और अनुच्छेद 174 (विधानसभा सत्र का स्थगन करना और खत्म करना) में संविधान संशोधन करने पर विचार कर रही है, जिससे एक देश एक चुनाव को मूर्त रूप दिया जा सके।
अतीत में आयोग कर चुके है विचार : मोदी सरकार के गठन के पहले भी एक देश एक चुनाव पर विचार हुआ है। अतीत में भी लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराए जाने के मुद्दे पर विभिन्न नेताओं की ओर से उठाए विचार पर कुछ सरकारी आयोग भी चर्चा कर चुके हैं। 2002 में वेंकट चलैया आयोग और 2015 में नचियप्पन आयोग ने इस संबंध में केन्द्र सरकार को विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है। ऐतिहासिक रूप से देखें तो देश में स्वतंत्रता के बाद हुए पहले चार लोकसभा चुनाव 1952, 1957, 1962 और 1967 राज्य विधानसभाओं के साथ-साथ कराए गए थे, इक्के दुक्के अपवादों को छोड़कर 1968 और 1969 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले कांग्रेस शासन की ओर से कई राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों को बर्खास्त किए जाने के बाद चुनाव का चक्र बदल गया। और एक साथ चुनाव संभव नहीं हो सका।
एक साथ चुनाव के पक्ष में तर्क
- वक्त और पैसे की बचत होगी।
- आचार संहिता के कारण प्रभावित होने वाले विकास कार्य नहीं रुकेंगे। सरकार की नीतियां तेजी से लागू होंगी।
- भ्रष्ट्राचार, माफिया और कालेधन पर लगाम लगेगी।
- नीतिगत शिथिलता दूर होगी।
- चुनावी सुधार की राह बनेगी।
एक साथ चुनाव के विपक्ष में तर्क
- यह संविधान की मूल भावना को चुनौती देता है।
- पांच साल के निश्चित कार्यकाल में मध्यावधि चुनाव की जगह नहीं रह जाएंगी।
- इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों पर शुरूआत में भारी खर्च करना पड़ेगा।
- एक देश एक चुनाव में अत्याधिक मात्रा में सुरक्षाबलों की जरूरत पड़ेगी जो सरकार के लिए आसान नहीं होगा।
- लोकतंत्र की भावना कमजोर होगी।
- नचियप्पन आयोग के सुझाव पर आगे बढ़ेगी सरकार!
-इन्द्र कुमार