हम बोलते नहीं करके दिखाते हैं
18-Oct-2016 06:28 AM 1235081
विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र भारत में न धन की कमी थी, न बल की, न ज्ञान की, न विज्ञान की, न शस्त्र की न शास्त्र की, कमी थी तो सिर्फ मजबूत इरादों और एक बेहतर नेतृत्व की। जैसी जनता होगी वैसा नेता होगा ये जरूरी नहीं है लेकिन जितना अच्छा नेता होगा उतना ही उत्तम उस देश का भविष्य होगा। यह अक्षरस: सत्य है। और इसे कर दिखाया है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने। सौ सुनार की और एक लोहार की कहावत को चरितार्थ करते हुए उन्होंने ऐसी चोट की है कि देश के बाहरी दुश्मन चारों खाने चित हो गए हैं। यही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अक्टूबर को भोपाल में आयोजित शौर्य सम्मान सभा में अपने आलोचकों का भी मुंह यह कह कर बंद कर दिया है कि हम बोलते नहीं करके दिखाते हैं। 29 सितंबर को हुई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पहली बार सैनिकों से जुड़े किसी कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोदी ने इशारों-इशारों में सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर कहा कि पिछले दिनों हुई घटना (उरी में आतंकी हमला) के बाद हर कोई मेरे बाल नोच रहा था कि मोदी सो रहा है, कुछ नहीं कर रहा। लेकिन बोलने से क्या होता है? जैसे सेना नहीं बोलती, वैसे ही रक्षा मंत्री नहीं बोलते, लेकिन दोनों ने करके दिखा दिया। और आगे भी जब जरूरत पड़ेगी करके दिखाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के हृदय प्रदेश से देशवासियों की नब्ज पर हाथ रखकर जिस तरह सेना का मनोबल बढ़ाया उससे बेहतर वर्तमान माहौल में कुछ और हो नहीं सकता था। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद इसे मौका कहें या दस्तूर लेकिन शायद यह कहना भी गलत नहीं होगा कि सेना के प्रति समर्पण, संजीदगी दिखाकर यदि प्रधानमंत्री ने खासतौर से नई पीढ़ी को संस्कारित कर अपने कर्तव्यबोध का एहसास कराया तो भाजपा नेता के तौर पर सेना को साधकर अपने सियासी हित बखूबी साधे। जिस पर सवाल खड़ा करना विरोधियों के लिए भी आसान नहीं होगा। अगर देखा जाए तो पिछले ढाई साल में प्रधानमंत्री संवेदनशील मुद्दों पर कम बोलते हैं और जब बोलते हैं तो सबकी बोलती बंद कर देते हैं। उनकी मौन रणनीति, कूटनीतिक चाल और सेना के साहसिक कमाल का ही परिणाम है कि आज देश का भाल गर्व से लाल हो गया है। और उसमें चार चांद लगाया है मप्र की शिवराज सिंह सरकार ने। शौर्य स्मारक की परिकल्पना को साकार करके। पाकिस्तान और उसके द्वारा पोषित आतंकवाद के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से भारत में सेना के प्रति गौरव का अभूतपूर्व वातावरण बन गया है। समूचा देश राष्ट्रीयता की भावना से भरा हुआ है। ऐसे में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बनाए गए शौर्य स्मारकÓ को सैनिकों को समर्पित करना अपने आप में गौरव है। सेना और शहीदों के प्रति सम्मान प्रकट करने की यह ऐतिहासिक घटना है। और इस घटना और ऐतिहासिक बना दिया प्रधानमंत्री के उद्बोधन ने। प्रधानमंत्री ने कहा कि सैनिकों को सिर्फ युद्ध से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। हमारे सैनिकों ने दुनियाभर में मानवता की मिसाल पैदा की है। उनकी मानवता ने कश्मीर की बाढ़ में यह नहीं देखा कि ये वही लोग हैं जो कभी पत्थर मारते हैं, कभी आंख फोड़ते हैं। यमन में जब हमारे सैनिक अपने देश के नागरिकों को बचा रहे थे तो उन्होंने पाकिस्तान के लोगों को भी बचाया। मोदी ने कहा कि इस देश में एक महान परंपरा चली आ रही है कि महात्मा गांधी और सेना दोनों मानवता के लिए जान देते हैं। यदि सभी पैरामीटर्स पर आंके तो हमारी सेना दुनियाभर की सेनाओं में प्रथम पंक्ति में खड़ी होगी। देश को समर्पित शौर्य स्मारक के लोकार्पण से पहले पूर्व सैनिकों की मौजूदगी में आयोजित शौर्य सभा के मंच से मोदी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए की गई सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय सेना को देकर देश का भरोसा और जनता का समर्थन हासिल कर सियासत में देश के अंदर अपने विरोधियों को भी चारों खाने चित्त किया जा सकता है। मोदी भले ही विरोधियों द्वारा खड़े किये जा रहे सवालों पर अभी तक खुल कर न बोले हों लेकिन भोपाल से उन्होंने सेना और अपनी चुप्पी पर विपक्ष को करारा जवाब दिया। वो अच्छी तरह समझ चुके हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक ने जो माहौल बनाया है उससे देश के लिए सेना भगवान से कम नहीं। मध्यप्रदेश की इस यात्रा को प्रधानमंत्री की अभी तक की दूसरी यात्राओं से अलग देखा जाएगा क्योंकि इस बार आमसभा का मंच भले ही सियासी था लेकिन नरेंद्र मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पहली बार सेना के मुद्दे पर देश की जनता से संवाद किया और संजीदगी इतनी कि आम जनता को देश के लिए समर्पित शहीद ही नहीं जांबाज सैनिकों के लिए जरूरी मनोबल बढ़ाने की आवश्यकता यह कहकर जताई कि जब भी कोई फौजी नजर आए तो तालियां बजाकर उसका उत्साह बढ़ाएं। मोदी ने अपने उद्बोधन की शुरुआत और समापन भी शहीदों अमर रहोÓ से की। प्रधानमंत्री का उद्बोधन सेना के इर्द-गिर्द ही रहा। मोदी ने अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित सेना की प्राकृतिक आपदा में बड़ी भूमिका को रेखांकित किया तो बिना कश्मीर का नाम लिए पत्थर खाने और सिर फोडऩे की याद दिलाकर उनके अनुशासन और व्यवहार में विनम्रता की मिसाल भी सामने रखी। प्रधानमंत्री की हैसियत से खुद को वैश्विक नेता और दुनिया पर नजर रखने की आवश्यकता को महसूस करते हुए मोदी ने पश्चिम एशिया में लगातार हो रहे बम धमाकों का दृश्य सामने रखकर हिंदुस्तान की सेना की भूमिका चाहे फिर वह दो विश्व युद्धों से जुड़ी रही हो उनके महत्व के साथ आम जनता के कर्तव्य की भी याद दिलाई। 1962 के युद्ध के दौरान गुजरात की एक बेटी द्वारा सरहद पर तैनात सेना के एक जवान को मिठाई भेजे जाने का वाक्या सुनाते  समय मोदी मानो कुछ क्षण के लिए भावुक हो गए और उन्होंने खुद को संभाला। यह कहना गलत नहीं होगा कि जब विपक्ष सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय सेना को देना चाहता है और वह जिसकी हकदार भी है, मोदी ने भी दो कदम आगे बढ़ाते हुए कुछ इस तरीके से सेना की शौर्य गाथा को सामने रखा कि लोग यह सोचने को मजबूर हो जाएं कि यह मोदी सरकार में ही संभव क्यों हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न तो चुनाव का जिक्र किया और न ही सियासत को साधने के लिए खुलकर कुछ बोला बल्कि इससे उलट मंच पर मौजूद अपने सहयोगी रक्षा मंत्री मनोहर परिकर के बारे में यह कह दिया कि वह भी सेना की तरह कुछ बोलते नहीं हैं, बल्कि सही समय पर फैसले लेकर इतिहास लिखते हैं। शौर्य स्मारक की परिकल्पना आठ साल पहले की बात है। 10 जुलाई, 2008 के दिन। यह भारतीय सेना के कर्नल मुशरान की जयंती पर आयोजित होने वाली संगोष्ठी का अवसर था। दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में। इस मौके पर तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल दीपक कपूर भी मौजूद थे। विषय बहुत वाजिब था, युवा भारतीय सेना के प्रति आकर्षित क्यों नहीं होते? इस सवाल का जवाब देने के लिए जनरल दीपक कपूर मंच पर आते हैं। और जवाब से पहले वो एक सवाल वहां मौजूद लोगों से करते हैं। आज आप लोग बताइए कि सेना को आम आदमी और युवाओं के बीच आकर्षण का मुद्दा बनाए रखने के लिए हम सबने किया ही क्या है? सेना प्रमुख यहीं नहीं रुके। उनके सवालों का सिलसिला लंबा होता गया। जांबाज सैनिकों की शौर्य गाथाएं शहादत के वक्त तो याद रहती हैं, उसके बाद उन्हें कितने लोग याद रखते हैं? क्यों नहीं सेना और उनके जवानों के कामों को आम आदमी के बीच में लाया जाता है? क्यों नहीं उनकी शहादत को अमर करने का प्रयास होता है? क्यों नहीं दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अब तक हम एक भी वॉर मेमोरियल बना पाए? इन सवालों के बाद सभागार में सन्नाटा पसर गया, तब सेनाध्यक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खड़े होते हैं। उन्होंने वहीं पर खड़े-खड़े ऐलान किया कि मध्यप्रदेश अपने जांबाज सैनिकों की याद में वॉर मेमोरियल (शौर्य स्मारक) जरूर बनाएगा। ऐलान हो गया और तालियां भी बज गईं। मुख्यमंत्री लौटकर भोपाल आ गए, एक और चुनाव जीतकर सत्ता में फिर से आ गए। लेकिन वार मेमोरियल का सवाल बना रहा। जवाब खोजने का काम किया, मुख्यमंत्री के तत्कालीन अघोषित कानूनी सलाहकार और वर्तमान में कांग्रेस के सांसद विवेक तन्खा ने। उन्होंने सलाह दी कि क्यों नहीं बन सकता, हम अपने प्रदेश के शहीदों की याद में वॉर मेमोरियल बनाएंगे। उसके बाद इस परिकल्पना को साकार करने का काम शुरू हुआ। संयोग या राजनीति? शौर्य स्मारक को बनने में आठ साल से ज्यादा का वक्त लगा। 41 करोड़ से ज्यादा रुपया खर्च हुआ और मंत्रालय एवं विधानसभा के बगल में उसे जगह दी गई। लेकिन यह संयोग की बात है कि मध्यप्रदेश का शौर्य स्मारक देश को उस समय समर्पित हो रहा है, जब पूरे देश में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राजनीतिक नफा-नुकसान की बातें हो रही हैं। हर राजनीतिक दल उसे अपने फायदे-नुकसान के हिसाब से भुना रहा है। लेकिन मध्यप्रदेश में शौर्य स्मारक के उद्घाटन की तारीख तय करते वक्त तक सर्जिकल स्ट्राइक जैसी बातें जेहन में भी नहीं थी। इसे महज एक संयोग भर माना जाए कि शौर्य स्मारक के शुभारंभ की तारीख तय होने के बाद सर्जिकल स्ट्राइक की घटना हुई। हालांकि अटकलें लोग इस पर भी लगा रहे हैं कि क्या यह सब कुछ पहले से तय था? यह सवाल इसलिए भी खड़ा होता है कि आखिर जब पूरे देश में सेना की इस कार्रवाई के नफा-नुकसान की बात हो रही है। ऐसे में भोपाल में वॉर मेमोरियल का उद्धाटन। सेना के पूर्व जवानों और उनके परिजनों की रैली को प्रधानमंत्री का संबोधन। इतना ही नहीं, रैली में इस बात की भी कोशिशें हो रही हैं कि कैसे भी उरी आतंकी हमले के शहीद परिवारों को भी लाया जाए। मतलब, सवाल खुद-ब-खुद ही खड़े हो रहे हैं। शिवराज रच रहे कीर्तिमान पर कीर्तिमान विश्व हिंदी सम्मेलन के बाद भोपाल के लाल परेड मैदान पर प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की मौजूदगी के अपने मायने हैं तो मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी के साथ मध्य प्रदेश की धरती पर लगातार मंच साझा करते आ रहे शिवराज के लिए शौर्य गाथा से जुड़ा यह मंच कुछ ज्यादा ही मायने रखता है। जिसने उन्हें फिर कंफर्ट जोनÓ में लाकर खड़ा कर दिया है। मुख्यमंत्री के तौर पर 11 साल पूरा कर एक नया कीर्तिमान लिखने से करीब 3 पखवाड़े पहले शिवराज का इस बार जो अंदाज नजर आया वो उनके आत्मविश्वास को बयां करता है तो प्रधानमंत्री की मौजूदगी में दिए गए दूसरे उद्बोधन बेहतर और ज्यादा परिपक्व नजर आया। इस बार न कोई हड़बड़ाहट, उतावलापन न मेजबान के तौर पर प्रधानमंत्री की सुविधा और समर्पण के लिए सब कुछ अपने हाथ में लेने की ललक।  लेकिन एक बेहतर प्रबंधन की मिसाल पेश की। शहीदों के परिवार से मुलाकात हो या फिर पूरे प्रदेश से लाए गए कलश में विशेष मिट्टी को एक धरोहर बनाने के लिए पत्नी साधना सिंह के साथ शिवराज की संजीदगी और समर्पण गौर करने लायक रहा। शिवराज के उद्बोधन की बात की जाए तो ओजपूर्ण जिन्होंने मंच के सामने बैठे  सैनिक और उनके परिजनों से खुद को कनेक्ट रखा और उन्हें भावुक कर दिया। मुख्यमंत्री के तौर पर शहीदों के माता-पिता को 5 हजार की आजीवन पेंशन के ऐलान ने एक बड़ी जिम्मेदारी का एहसास कराया। तो दूसरी ओर खुद को दूसरी सरकारों चाहे फिर वह केंद्र की हो या राज्य की यह कहकर आड़े हाथ लेने में भी देर नहीं लगाई कि जिन्होंने देश में राज किया उन्होंने अपने परिवार के स्मारक तो बना लिए लेकिन वह सैनिकों को भूल गए। मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी तीसरी पारी में शिवराज के लिए इससे बेहतर फैसला कोई और नहीं हो सकता था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दिन पर दिन कीर्तिमान रच रहे हैं जिससे मध्यप्रदेश ही नहीं भारत का भी मान बढ़ रहा है। तालियों की ऐसी गूंज कहीं और सुनाई नहीं दी शौर्य स्मारक के लोकार्पण अवसर पर जब प्रधानमंत्री ने मंच से माखनलाल चतुर्वेदी की लिखी कविता... चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं,..... मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक! मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने, जिस पथ पर जावें वीर अनेक! ... को इस बेहद खास मौके पर देश के वीर जवानों के बलिदान,पराक्रम और कर्तव्यनिष्ठा को चिह्नित करते हुए दोहराया, तो वहां मौजूद सभी लोग भाव विभोर हो गए। और तालियों की गूंज ऐसी सुनाई दी कि हर कोई गर्वित हो गया। देश के वीर सपूतों की कुर्बानी की जयकार करते हुए मंच से पीएम ने रामधारी सिंह दिनकर की लिखी कलम, आज उनकी जय बोल कविता भी पढ़ी... जला अस्थियां बारी-बारी,चटकाई जिनमें चिंगारी, जो चढ़ गए पुण्यवेदी पर, लिए बिना गर्दन का मोल, कलम, आज उनकी जय बोल ... तो केवल भोपाल ही नहीं, केवल मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरा देश सैनिकों की जय-जयकार बोलने लगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि हम एक नई परंपरा शुरू करें। जिस भी जगह से हमारे सैनिकों का दल निकले, वहां सब इकठ्ठे होकर एक साथ तालियों की गडग़ड़ाहट से उनका सम्मान करें। विदेशों में यह चलन है, हम भी अपनी सेना का मनोबल बढ़ाएं। सेना का सबसे बड़ा शस्त्र उसका मनोबल होता है जो सवा सौ करोड़ देशवासियों से मिलेगा। मप्र से 20 साल गहरा नाता है मोदी का बहरहाल, इस अवसर पर हृदयप्रदेश के प्रति नरेन्द्र मोदी के लगाव को भी समझने का प्रयास करते हैं। मध्यप्रदेश से नरेन्द्र मोदी का गहरा नाता है। लगभग 20 साल पहले नरेन्द्र मोदी को मध्यप्रदेश भाजपा संगठन में कार्य करने की जिम्मेदारी मिली थी। तब उन्होंने शिवराज सिंह चौहान के साथ प्रदेश के गांव-गांव में दौरे किए थे। अपनी वक्तृत्व कला से सबको मंत्र मुग्ध करने वाले नरेन्द्र मोदी ने भोपाल में ही आयोजित भाजपा कार्यकर्ता महाकुम्भÓ में स्वयं यह स्वीकार किया है कि उन्हें एकात्म मानवदर्शन पर शिवराज सिंह चौहान का धाराप्रवाह भाषण सुनना बड़ा प्रिय लगता था। संभव है कि आज मोदी-शिवराज के संबंधों में जो गर्माहट महसूस हो रही है, उसका आधार बीस साल पहले एक साथ किया गया संगठन का काम ही हो। एक बात और हमें ध्यान रखनी चाहिए कि वर्ष 2013 में जिस वक्त प्रधानमंत्री की कुर्सी/भाजपा के नेतृत्व के लिए मोदी और शिवराज को प्रतिद्वंद्वी बनाने के प्रयास प्रारंभ हो रहे थे, उस वक्त इसी मध्यप्रदेश की धरती पर, इसी भोपाल में नरेन्द्र मोदी के लिए विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक सभा का आयोजन किया गया था। दीनदयाल उपाध्याय की जयंती 25 सितंबर, 2013 को मध्यप्रदेश की करीब साढ़े सात लाख जनता ने प्रत्यक्ष उपस्थित होकर नरेन्द्र मोदी का स्वागत किया था। संभव है जनता के इसी अभूतपूर्व समर्थन ने नरेन्द्र मोदी के मन में मध्यप्रदेश के लिए विशेष प्रेम जगा दिया हो। मोदी-शिवराज संबंधों का अध्ययन करते समय यह स्पष्ट दिखाई देता है कि मोदी ने लगातार शिवराज को मजबूत ही किया है। योजना आयोग को समाप्त करने के बाद जब उसके विकल्प के तौर पर नीति आयोग का गठन किया गया, तब प्रधानमंत्री मोदी ने उसकी अध्यक्षता शिवराज सिंह चौहान को सौंपी। यानी देश के सभी मुख्यमंत्रियों के बीच उन्होंने शिवराज और मध्यप्रदेश को वरीयता दी। बलिदानियों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने की परंपरा देशहित में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले बलिदानियों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का कोई अवसर भाजपा जाने नहीं देती। आजादी के 70 साल, जरा याद करो कुर्बानीÓ का उद्घोष भी प्रधानमंत्री ने 9 अगस्त को महान क्रांतिकारी शहीद चन्द्रशेखर आजाद की जन्मभूमि भाभरा (अलीराजपुर) से किया था। अब आजादी के 70 साल बाद शहीदों के शौर्य की स्मृति में बने देश के पहले स्मारक का उद्घाटन भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मध्यप्रदेश में करेंगे। ढाई साल में सबसे अधिक वाहवाही कोई माने या न माने अपना मानना है कि पीओके में सेना के मारक आपरेशन ने नरेंद्र मोदी और भाजपा की जैसी वाहवाही कराई है वैसी पिछले ढाई साल के मोदी कार्यकाल में और किसी काम पर नहीं हुई। इससे अपनी यह थीसिस फिर सही साबित हुई है कि हिंदू राष्ट्रवाद की राजनीति ही नरेंद्र मोदी- अमित शाह- भाजपा और संघ परिवार की प्राण वायु है। यही हवा बनाती है और इसी में लापरवाही हवा बिगाड़ती है। अपना मानना है कि 22 सितंबर को उरी छावनी पर हमले के बाद भाजपा का ग्राफ पैंदे पर पहुंच गया था। भाजपा यूपी में चौथे नंबर पर चली गई थी। भाजपा का कोर समर्थक कार्यकर्ता भी मोदी सरकार से निराश था, हताश था और गुस्से में था। यदि वह स्थिति बनी रहती, मोदी सरकार पठानकोट की तरह कूटनैतिक तौर-तरीकों में उलझी रहती तो भाजपाई कार्यकर्ता भी चुनाव में प्रचार के लिए नहीं निकलता।
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