03-Oct-2016 10:32 AM
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आचार्य चाणक्य ने चाणक्य सूत्र में लिखा है...
कृते प्रतिकृतिं कुर्यात् हिंसेन प्रतिहिंसनम्।
तत्र दोषो न पतति दुष्टे दौष्ट्यं समाचरेत्॥
...यानी उपकारी के साथ उपकार, हिंसक के साथ प्रतिहिंसा करनी चाहिए तथा दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिए। इसमें कोई दोष नहीं है। यही नहीं राम, कृष्ण, अर्जुन, चाणक्य, चंद्रगुप्त, सम्राट अशोक, राणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी के जीवनवृत से भी हमें यही संदेश मिलता है। इस संदेश को अभी तक केवल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आत्मसात किया था और अब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने। पहले पठानकोट और फिर उड़ी हमले के बाद तो ऐसा लगने लगा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहले वाली तासीर ठंडी पड़ गई है। लेकिन किसे मालूम था कि तूफान से पहले की वह शांति थी। देर से ही सही लेकिन दुरुस्त कदम उठाकर भारतीय सेना के विशेष दस्ते ने जिस तरह नियंत्रण रेखा पार कर आतंकियों के ठिकानों को निशाना बनाया और उनके सात कैंपों को नेस्तानाबूद कर 38 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया, उससे तो एक बात साबित हो गई है कि भारत सामरिक शक्ति पाकिस्तान से लाख गुना अधिक है।
फिर ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर भारत अभी तक पाकिस्तान की करतूतों और उसकी गीदड़ भभकियों से क्यों डर रहा था। पाकिस्तानी सेना को 1948 से लेकर 1965, 1971 और 1999 में भारतीय सेना से हर जंग में मुंह की खानी पड़ी है। अगर पाकिस्तान इस इतिहास को भूल गया है तो भारतीय सेना ने 28-29 अक्टूबर की दरम्यानी रात अपनी कार्रवाई से उसे फिर से यह याद दिला दी। 1971 के बाद यह पहला अवसर है जब भारतीय सशस्त्र बलों ने नियंत्रण रेखा पार की है। यहां तक कि 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भी भारतीय सेना को नियंत्रण रेखा न पार करने के निर्देश दिए गए थे। हमारे सशस्त्र बल पूरे देश से बधाई और प्रशंसा के हकदार हैं, क्योंकि उन्होंने अत्यंत पेशेवर और कुशल तरीके से अपने अभियान को अंजाम दिया, जिसमें न केवल दो पाकिस्तानी सैनिक मारे गए, बल्कि बड़ी संख्या में आतंकी भी मारे गए और उनके लिए किए गए बंदोबस्त भी ध्वस्त हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इसका पूरा श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने इस तरह का साहसिक फैसला लिया। सेना की इस सफल कार्रवाई से घरेलू स्तर पर मोदी सरकार की छवि भी मजबूत होगी। यानी हम किसी भी स्थिति परिस्थिति में पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब देने में सक्षम हैं।
फिर ऐसी क्या मजबूरी है की पीठ पीछे वार! और ऐसे छद्म हमलों में अपने वीर सैनिकों की शहादत हम सहते आ रहे हैं? यह कोई पहला आतंकवादी हमला नहीं है। लेकिन काश! हम सभी एक-दूसरे से प्रण करते कि यह पहला तो नहीं है किंतु आखिरी अवश्य होगा। काश! इस देश के सैनिकों और आम आदमी की जानों की कीमत पहली शहादत से ही समझ ली गई होती तो हम भी अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस, और कनाडा की श्रेणी में खड़े होते। काश! हमने पहले ही हमले में दुश्मन को यह संदेश दे दिया होता कि इस देश के किसी भी जवान की शहादत इतनी सस्ती नहीं है! काश! हम समझ पाते कि हमारी सहनशीलता को कहीं कायरता तो नहीं समझा जा रहा?
हम समझे या न समझे लेकिन पाकिस्तान और उसके समर्थित आतंकी इस बात को भलीभांति जानते हैं कि भारत की सरकारें दब्बू रही हैं। वे डरी रहती हैं कि युद्ध छिड़ जाएगा। आखिर यह डर किस बात का? क्या भारत पाकिस्तान से सैन्य शक्ति में कमजोर है? क्या हमारी सेना युद्ध से डरती है? क्या सरकार और सैनिकों को देशवासियों का समर्थन नहीं मिला है? इन सब सवालों का जवाब हमारी सेना और सरकार ने दे दिया है। भारत के जोरदार जवाब से पाकिस्तान बैकफुट पर आ गया है। क्योंकि वह जानता है कि भारत का मुकाबला वह कभी भी आमने-सामने के युद्ध में नहीं कर सकता है। हम विश्व के शक्तिशाली राष्ट्रों में चौथे नंबर पर हैं। आज भारत की सामरिक शक्ति का विश्व लोहा मान रहा है। हमारी सेना के अदम्य साहस का ही परिणाम है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की सवा सौ करोड़ की आबादी चैन की नींद सोती है। और यह आबादी सैनिकों के मान-सम्मान और संरक्षण के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। इसका नजारा पूरे विश्व ने उड़ी सेक्टर में हुए 18 सैनिकों के शहीद होने के बाद देखा है। इस घटना के बाद पूरा देश क्षुब्ध और उद्वेलित है। सबकी पुकार थी कि भारत पाकिस्तान के ईंट का जवाब पत्थर से क्यों नहीं दे रहा। लेकिन किसको मालूम था कि आग अंदर ही अंदर सुलग रही है। किसी को उम्मीद नहीं थी कि सरकार के अंदर अपने सैनिकों की शहादत को लेकर जो आग सुलग रही है वह इतना भयानक रूप ले लेगी कि पाकिस्तान को उसके घर में घुसकर जवाब दिया जाएगा।
ज्ञातव्य है कि 2013 में नरेंद्र मोदी ने जब पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा एक सैनिक का सिर काटे जाने पर हुंकार भरी थी कि अगर उनकी सरकार होती तो एक सिर के बदले वे दस पाकिस्तान सैनिकों का सिर कटवा कर मंगवाते। उनकी इसी हुंकार पर भारतीय जनसमुदाय ने 2014 में उन्हें सत्ता सौंपी। लेकिन पठानकोट और उसके बाद लगातार सीमा पर हो रहे हमले और फिर उड़ी की घटना से लगने लगा था कि सत्ता मिलते ही मोदी की हुंकार गायब हो गई।
देशभर में सवाल उठने लगे थे कि आखिर क्यों? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी सैन्य क्षमता पर संदेह है? तो ऐसा भी नहीं था, क्योंकि आजादी से लेकर आज तक पाकिस्तान के साथ हुए 3-3 आमने-सामने के युद्ध में हमारे सैनिकों ने उसे धूल चटा दी है। हर बार हारने के बाद पाकिस्तान याचक की भूमिका में गिड़गिड़ाकर सैनिकों द्वारा हथियाई गई जमीन, गिरफ्तार सैन्यबल को वापस मांग लेता है। और हम दरियादिली दिखाते हुए उसे वापस कर देते हैं। लेकिन जब दरियादिली की इन्तेहा हो गई, पानी सर से ऊपर हो चुका और उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान भारत को लगातार गीदड़ भभकी दे रहा था कि वह परमाणु हमला कर देगा, तो मोदी और उनकी सरकार ने 56 इंच के सीने का दम दिखाने की ठान ली। उन्होंने पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक करके पूरे विश्व को दिखा दिया कि जब पाकिस्तान युद्ध से डर नहीं रहा और अप्रत्यक्ष रूप से भारत को ललकार रहा है तो हम शांत क्यों रहें। उसके मुकाबले हमारी फौजी ताकत, हमारी जनसंख्या, हमारा क्षेत्रफल और हमारी एकता कई गुना ज्यादा है।
लेकिन भारत को अब ऐसा ही रुख बनाए रखना चाहिए। क्योंकि यदि हमको डर है कि पाक के पास परमाणु बम है तो क्या पाक को पता नहीं है कि भारत के पास उससे कहीं ज्यादा परमाणु बम हैं? क्या पाक को यह डर नहीं होगा कि परमाणु युद्ध हो गया तो पाक का नामो-निशान भी नहीं बचेगा? यदि हम इसी तरह डरते रहे तो भारत की संसद, मुंबई की ताज होटल, पठानकोट और उड़ी जैसे हमले होते रहेंगे। इसलिए जिस तरह उड़ी हमले का जोरदार जवाब दिया गया है, वैसे ही आगे भी पाकिस्तान को जवाब दिया जाना चाहिए।
पूरा देश सरकार के साथ
पठानकोट और उड़ी में आतंकी हमले के बाद जनता की भावना बन गई थी कि पाकिस्तान पर कार्रवाई की जाए और विपक्ष का दबाव भी सरकार पर था। ऐसी स्थिति में सभी चाहते थे कि पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। सर्जिकल स्ट्राइक जैसे अभियान को अंजाम देना राजनीतिक जरूरत भी बन गई थी। भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में जो सर्जिकल स्ट्राइक किया है उसकी रणनीति पिछले कई दिनों से बनाई जा रही थी। सर्जिकल स्ट्राइक में कई संस्थाएं शामिल होती हैं। इसकी टाइमिंग बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसमें खुफिया एजेंसियों के इनपुट से आर्मी स्ट्राइक करती है। इसमें कई लोगों की टीम होती है। हाईटैक सर्विलांस की मदद ली जाती है। सैटेलाइट को सीमा पर फोकस रखा जाता है। ऐसे अभियान बहुत खतरनाक और जोखिम भरे होते हैं। लेकिन ये जरूरी भी था। इससे पाकिस्तान को जवाब मिला कि अब हम चुप नहीं बैठेंगे। सर्जिकल स्ट्राइक में बैकअप रखकर चलना पड़ता है।
ओसामा बिन लादेन का खात्मा सर्जिकल स्ट्राइक का ही उदाहरण था लेकिन उसमें भी अमरीका का एक हेलीकॉप्टर नष्ट हो गया था। कुछ ही देश सर्जिकल स्ट्राइक में सक्षम हंै। इससे पहले भारत ने म्यांमार में भी सर्जिकल स्ट्राइक को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था। लेकिन म्यांमार और पाकिस्तान की परिस्थितियां अलग-अलग हैं। म्यांमार के सर्जिकल स्ट्राइक में निश्चय ही उसकी सहमति रही थी लेकिन पाकिस्तान हमेशा से ही भारत को दुश्मन की दृष्टि से देखता रहा है। ऐसी स्थिति में वहां ऐसे अभियान खासे मुश्किल होते हैं। पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र है। वहां सेना ही एकमात्र संस्था है जो अहम फैसले लेती है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान इस बात को स्वीकार नहीं करेगा कि सर्जिकल स्ट्राइक हुआ है। स्वीकार करने पर पाकिस्तान की सेना की भी वहां साख खराब हो जाएगी। वहां की जनता का सेना के प्रति अभी भरोसा बना हुआ है।
म्यांमार के सर्जिकल स्ट्राइक की तरह हो सकता है कि कुछ समय बाद भारत ही अभियान के सबूत जारी कर दे या न भी करे तो भी। ऐसे अभियानों को आज के युग में छिपाना मुश्किल होता है। कोई दूसरा देश सैटेलाइट चित्र जारी कर दे। ऐसी स्थिति में पाक सेना के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी। पाकिस्तान इस समय सेना पर ही टिका हुआ है और जिस दिन वहां की सेना बिखर गई तो पाक का हाल भी इराक और लीबिया जैसा होते समय नहीं लगेगा। वहां चारों तरफ आतंक फैला हुआ है और सैन्य अभियान चल रहा है। पाक सेना का ध्यान भारत पर लगा रहता है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तानी सेना के लिए अपनी साख बचाए रखना चुनौती से कम नहीं है।
पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों पर भारतीय सेनाओं का हमला देर से उठाया गया दुरुस्त कदम माना जा सकता है। यह एक ऐसा कदम है जिसका देशवासियों को सालों से इंतजार था। इसलिए नहीं कि भारत पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करना चाहता है। बल्कि इसलिए क्योंकि पानी जब सिर से ऊपर बहने लग जाए तो उसका समाधान खोजना ही समझदारी मानी जाती है।
पाकिस्तानी सेना की शह पर आतंककारियों ने कभी भारतीय संसद को लहूलुहान किया तो कभी मुंबई, दिल्ली और जयपुर समेत दूसरे शहरों को दहलाया। सीमा पार से पाक सेना की आए दिन होने वाली गोलीबारी में भारत के हजारों जवान शहीद हो चुके हैं। फिर कभी पठानकोट तो कभी उड़ी जैसे हमले सवा सौ करोड़ देशवासियों के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम ही करते रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसे में धैर्य रखा जाए भी तो कैसे? भारतीय सेना ने पाकिस्तान को उसकी भाषा में जवाब देने के साथ ही दुनिया को भी बता दिया है कि वो चुप बैठने वाला नहीं।
इस सर्जिकल ऑपरेशन के बाद भारत ने पूरे विश्व को दर्शा दिया कि भारत शांतिप्रिय देश है और शांति के साथ रहना चाहता है, इसका मतलब ये नहीं कि वह कमजोर है या युद्ध से डरता है। ये सही है कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है। युद्ध बर्बादी के सिवाय कुछ देता है तो ऐसे जख्म जो सालों नहीं भरते। लेकिन भारत ने जो कदम उठाया वह उन आतंककारियों के खिलाफ था जिनका मानवता में कोई विश्वास नहीं। पाकिस्तान भले ही हमारी तरह परमाणु शक्ति संपन्न है लेकिन वह निहायत ही उद्दंड और गैरजिम्मेदार मुल्क भी है। आर्थिक तौर पर तो वह बर्बाद है ही। उसके पास अपनी बेगुनाह अवाम के अलावा खोने को भी कुछ खास नहीं है। इसलिए उसके साथ युद्ध की स्थिति में जो भी कुछ बिगडऩा है वह भारत का ही बिगडऩा है। वाकई में पाकिस्तान ईमानदारी से आतंकवाद समाप्त करना चाहता है तो वह भी भारत के कदम का समर्थन ही करेगा। यह भी सच है कि आतंककारियों का न कोई देश होता है और न कोई धर्म। भारत ने अपनी कार्रवाई के बारे में दुनिया को बता दिया है। दुनिया भारत के कदम का समर्थन ही करेगी क्योंकि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
मोदी ने कहीं का नहीं छोड़ा पाक को
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कूटनीतिक चाल से आज पाकिस्तान को इस कदर पंगू कर दिया है की उसकी स्थिति धोबी के कुत्ते वाली हो गई है। मोदी ने ऐसी रणनीतिक रूप से पाकिस्तान की घेराबंदी की है कि पाकिस्तान पूरी दुनिया से अलग-थलग पड़ गया। आज पाकिस्तान कुटनीतिक, आर्थिक और सामरिक रूप से कमजोर हो गया है। प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही मोदी ने पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए जो कदम उठाए थे और जिस प्रकार की सहशीलता का परिचय उन्होंने दिया था, आज उनकी यही कूटनीति अन्तराष्ट्रीय समुदाय को भारत का साथ देने के लिए विवश कर रही है। यह प्रधानमंत्री की विदेश नीति, राजनीति और कूटनीति की सफलता ही है कि आज विश्व भारत के साथ है और पाकिस्तान अलग-थलग पड़ चुका है। प्रधानमंत्री की विदेश यात्राएं पहले निरर्थक लग रहीं थी। लेकिन अब एहसास हो रहा है की वह सोची समझी रणनीति थी। तभी तो उड़ी हमले के बाद पूरा विश्व पाक पर टूट पड़ा। अमेरिका में लाखों भारतीयों ने पाकिस्तान की करतूत का विरोध जताया। भारत को मिले अंतर्राष्ट्रीय समर्थन से चीन भी भारत के खिलाफ मुंह खोलने से बच रहा है। यानी नरेंद्र मोदी ने पूरे विश्व में भारत का लोहा तो मनवाया हीं पाकिस्तान को भी बड़ी सादगी से निपटाया है।
युद्ध के साथ छद्म युद्ध भी करें भारत
भारत को पाकिस्तान को दबाएं रखने के लिए छद्म युद्ध का सहारा लेना पड़ेगा। यानी जिस तरह पाकिस्तान आतंकियों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करता है उसी तरह भारत को भी पाकिस्तान के साथ निपटना होगा। यानी पाकिस्तान में बलूचिस्तान जैसे असंतुष्ट राज्यों में पाकिस्तान के खिलाफ सुलग रही आग को हवा देनी होगी। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान ने बलूचिस्तान में बवाल खड़ा कर दिया जिससे पाकिस्तान के आका कांप उठे। यही नहीं अगर हमारी शांति भंग करने के लिए आतंकियों को पाक फौज भेज रही है तो हम भी कांटे से कांटा निकालने की रणनीति तो अपना ही सकते हैं। क्योंकि दुष्ट के साथ दुष्टता करना अपराध नहीं है। फिर देर किस बात की। अगली बार पाकिस्तान को और बड़ा सबक सिखाया जाए।
कूटनीतिक रूप से तो पाकिस्तान को मिली मात
उड़ी में हुए आतंकी हमले का मुंहतोड़ जवाब देने से पहले ही कूटनीतिक दृष्टि से पाकिस्तान सारी दुनिया में बदनाम हो गया है। पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इस बार संयुक्त राष्ट्र यह सोचकर गए थे कि कश्मीर में चल रहे कोहराम को जमकर भुनाएंगे। भारत को बदनाम करेंगे और कश्मीर को अंतरर्राष्ट्रीय मुद्दा बना देंगे, लेकिन लेने के देने पड़ गए। उड़ी ने पाकिस्तान की सारी चौपड़ को हवा में उड़ा दिया। मियां नवाज के हर तर्क का जवाब भारतीय प्रवक्ताओं ने जमकर तो दिया ही, सबसे मजेदार बात यह हुई कि जिस भी विदेशी नेता के सामने मियां साहब ने रोना-धोना किया, उन्होंने उन्हें उल्टी घुट्टी पिला दी। अमेरिका के विदेश मंत्री हों या ब्रिटेन की प्रधानमंत्री हों या संयुक्त राष्ट्र के महासचिव हों, सबने नवाज शरीफ को एक ही बात कही कि अपने पड़ोसी देशों में आतंकी गतिविधियां चलाने से बाज आएं। कश्मीर के सवाल को आपसी बातचीत से हल करें।
और दोनों शरीफों को याद आ गई नानी
उड़ी हमले के 10 दिन बाद इंडियन आर्मी ने पहली बार लाइन ऑफ कंट्रोल पार की और पाक के कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर आतंकियों के लॉन्च पैड्स को तबाह कर दिया। भारत की इस कार्रवाई से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और सेना प्रमुख राहील शरीफ को उनकी नानी याद आ गई है। भारत के इस ऐलान के बाद पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ ने कहा कि हम अमन चाहते हैं। भारत इसे हमारी कमजोरी न समझे। बता दें कि 45 साल में छठी बार ऐसा हुआ है कि हमारी सेना ने सीमाओं से परे जाकर ऐसी साहसिक कार्रवाई की है। उधर पाकिस्तान के सेना प्रमुख राहील शरीफ को पहले उफा और फिर नवाज शरीफ पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से वो मौका मिल गया जिसकी वो तलाश कर रहे थे। नवाज शरीफ मई 2013 के ऐतिहासिक चुनावों के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे। हालांकि, चुनावों में वो पूर्ण बहुमत से 6 सीट पीछे रह गए थे लेकिन 19 निर्दलिय उनकी पार्टी में शामिल हुए और उन्होंने साधारण बहुमत से जून 2013 में अपनी सरकार बना ली। नवाज शरीफ का चुना जाना ऐतिहासिक था क्योंकि ये पाकिस्तान के चुनावी इतिहास में पहला मौका था जब एक लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के 5 साल पूरे करने के बाद दूसरी लोकतान्त्रिक सरकार फिर से बनने जा रही थी। चूंकि नवाज शरीफ पाकिस्तान की राजनीति में एक कद्दावर नेता के रूप में जाने जाते थे और पाकिस्तान, जहां ज्यादातर सेना ने ही राज किया है, में लोकतंत्र लगातार अपना छठवां साल देखने जा रहा था, दुनिया को ये उम्मीद की थी नवाज शरीफ लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आगे ले जाने और सेना का राजनीतिक प्रभाव कम करने में सफल होंगे। यही सबसे बड़ी चुनौती साबित होने जा रहा थी पाकिस्तान के नए शरीफ (सेना प्रमुख राहील शरीफ) के लिए कि कैसे वो नवाज शरीफ के पर कतर सकें। राहील शरीफ को अब एक बड़ा मौका हाथ लग गया है। बताया जाता है कि जल्द ही पाकिस्तान में तख्तापलट हो सकता है।
सर्जिकल स्ट्राइक के आगे की नीति क्या?
दरअसल पाकिस्तान जैसा लात खाऊ देश को इस सर्जिकल स्ट्राइक से बहुत असर नहीं पड़ता। सर्जिकल स्ट्राइक तो भारत की आहत भावना के लिए जरूरी था। पाक सेना के लडऩे का तरीका सुरक्षा उद्येश्यों से संचालित नहीं है, बल्कि वैचारिक उद्येश्यों से संचालित है। यह बहुत ही खतरनाक बात है। सुरक्षा उद्देश्यों से संचालित कोई सेना लाभ-हानि, पलटवार, निवेश पर रिटर्न, अंतर्राष्ट्रीय दबाव इत्यादि का खयाल करती है, लेकिन वैचारिक उद्देश्यों से संचालित सेना ऐसा कोई दबाव नहीं मानती। वो तो निरंतर आक्रमण को ही अपना विजय मानती है, भले ही उन आक्रमणों का नतीजा निरंतर हार ही क्यों न हो! पाकिस्तान के लिए भारत के साथ यथास्थिति कायम रखना या भारत को बिना युद्ध में घसीटे छोड़ देना प्राणघातक है, क्योंकि वे मानते हैं कि यथास्थिति भी भारत के लिए जीत है! इसीलिए वे निरंतर हमला करते रहेंगे, इस उम्मीद में कि एक दिन 99 नहीं तो 100वीं वार उन्हें जरूर कामयाबी मिलेगी। भारत की असल चिंता यही है। क्योंकि लगभग हिंदू मानसिकता वाला भारत इस तरह नहीं सोचता। ये उसका चिंतन नहीं है। वो हमेशा लडऩे के लिए चौकन्ना नहीं रहता। लेकिन हमारा दुश्मन हमें वैसा ही बनाना चाहता है। वो चाहता है कि हम खून के आंसू रो-रोकर एक दिन इजरायल बन जाएं। लेकिन इसके अपने घाटे हैं। क्योंकि हम इजरायल जैसा तब तक नहीं बन सकते जब तक कि हम हजारों सालों की अपनी सहिष्णुता, बहुलतावादी संस्कृति, उदारता इत्यादि को त्याग न दें। यह संभव नहीं है। और पाकिस्तान हमें अन्य किसी रूप में जीने नहीं देगा। भारत के साथ कोई भी संभावित मैत्री पाकिस्तान के जन्म के कारण को खत्म कर देगी और वो ऐसा कभी नहीं चाहेगा। भारत के वास्तविक बुद्धिजीवियों, राजनेताओं और रणनीतिकारों को इस बात पर विचार करना होगा कि अगले 100 सालों के लिए हमारी पाकिस्तान नीति क्या होनी चाहिए।