शराबबंदी की सनक
18-Oct-2016 06:14 AM 1234821
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर शराबबंदी की सनक कुछ इस तरह छाई हुई है कि वो इसे हर हाल में जारी रखना चाहते हैं। हाईकोर्ट के निर्णय से मिले झटके के बाद भी सरकार के तेवर कमजोर नहीं पड़े है। सुशासन बाबू ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया है कि मैं बर्बाद हो जाऊंगा मगर शराबबंदी से समझौता नहीं करूंगा। विपक्ष कहता है कि मैं शराबबंदी के नशे में हूं। हां, मुझ पर शराबबंदी का नशा है। जो पिए बिना नहीं रह सकते, वे कहीं और चले जाएं। क्योंकि अब बिहार में शराब पीने की गुंजाइश नहीं है। जिन्हें जितना मजाक उड़ाना है, उड़ा ले, हम पीछे हटने वाले नहीं हैं। हमेें मालूम है कि हमने बिरनी के छत्ते में हाथ डाला है। ताकतवर लॉबी है शराब की, उसको उकसाया है लेकिन हमें परवाह नहीं है कुछ। हम जिस रास्ते चल पड़ते हैं फिर पीछे मुड़कर नहीं देखते।Ó अब इसे सुशासन बाबू की सरकार की सनक ही तो कहेंगे कि हाईकोर्ट के फैसले के दो दिन बाद ही उसने बिहार मद्यनिषेध एवं आबकारी कानून-2016 की अधिसूचना जारी कर दिया है। हालांकि होटल वाले व रेस्त्रां मालिकों ने दशहरे के तत्काल बाद नए अधिनियम को चुनौती दे दी है। हाईकोर्ट के आदेश का आधार बनी पिछली याचिकाएं भी उन्हीं के फेडरेशन व कुछ अन्य लोगों ने दायर की थीं। नया अधिनियम अधिक सख्त है और इसमें कई ऐसे प्रावधान हैं जो आमतौर पर कठोर बताए जा रहे हैं। इसमें दस वर्ष तक के कारावास, दस लाख रुपए तक का जुर्माना, सम्पत्ति जब्त करने, परिवार के सभी वयस्क सदस्यों को अपराध में शामिल मानकर उनके खिलाफ कार्रवाई करने, सामुदायिक दण्ड, आजीवन कारावास और मृत्युदण्ड का प्रावधान शामिल है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं कई बार इन प्रावधानों का बचाव कर चुके हैं। उनका कहना है कि ये प्रावधान कानून के उल्लंघन कर्ताओं को अपने कार्यों के लिए सीधे तौर पर उत्तरदायी बनाते हैं। एनडीटीवी के लिए लिखे अपने एक लेख में मुख्यमंत्री ने इन सख्त प्रावधानों के बचाव के लिए कम से कम छह मुख्य कारण गिनाए हैं। ये कुछ इस तरह हैं। उनका कहना है कि वे केवल मतदाताओं से किया गया अपना यह चुनावी वादा निभा रहे हैं कि यदि वे सत्ता में आए तो शराबबंदी लागू करेंगे। कुमार के अनुसार, शराब पर प्रतिबंध लगाने की बात आई तो गांधीजी ने भी इसे अपना पहला एजेण्डा बनाया था। उन्होंने गांधी द्वारा 1931 में लिखे एक लेख से उद्धरण देते हुए लिखा कि यदि मुझे एक घंटे के लिए पूरे देश का तानाशाह नियुक्त कर दिया जाए तो पहला काम मैं यही करूंगा कि शराब की सभी दुकानें बिना मुआवजा दिए बंद कर दूंगा। संविधान के भाग चतुर्थ के तहत राज्य के नीति के निर्देशक तत्वों में राज्यों से मद्यनिषेध के प्रयास का अनुरोध किया गया है। कुमार के अनुसार सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि नशे की वस्तुओं का व्यापार-धंधा कोई मौलिक अधिकार नहीं है। राज्य को अपने नियामक अधिकारों के तहत नशे से संबंधित हर गतिविधि पर, इसके उत्पादन, भंडारण, निर्यात, आयात, बिक्री व इन्हें अपने पास रखने पर पूरी तरह रोक लगा देने का अधिकार है। नीतीश कुमार का मानना है कि बिहार की जनता, खासकर महिलाएं शराबबंदी से काफी प्रसन्न हैं। उनका कहना है कि उत्तरप्रदेश व झारखण्ड जैसे दूसरे राज्यों की जनता ने भी शराबबंदी की उनकी अपीलों का स्वागत किया है। उन्होंने इसे जनता की इच्छा बताया। सख्त प्रावधानों के समर्थन में उनका तर्क है कि यदि शराबबंदी अच्छी है तो इसका पूरे दिल से समर्थन करना होगा। इस मामले में किसी भी तरह की प्रशासनिक ढिलाई को सख्ती से रोकना होगा। जहां तक चुनावी वादे का तर्क है तो कुमार साफ तौर पर इसे बहाने के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि जिन लोगों ने महागठबंधन के पक्ष में वोट दिया था उनमें भी अधिकांश के बीच शराबबंदी काफी अलोकप्रिय है। गांधी को ढाल के रूप में इस्तेमाल करना भी पाखण्डपूर्ण है क्योंकि राष्ट्रपिता की तमाम खूबियों के बावजूद उन्हें गांधी की उस बात में ही एक खूबी नजर आई जिसमें उन्होंने तानाशाही की एक छद्म इच्छा प्रदर्शित की है। अधिनियम के कड़े प्रावधानों की हर ओर आलोचना इस अधिनियम में एक धुंधला सा लेकिन खतरनाक प्रावधान भी है कि अधिनियम के उल्लंघन पर जब्त किसी भी सम्पत्ति के बारे में कोई आदेश पारित करने का अधिकार किसी भी अदालत को नहीं होगा। यदि अधिनियम किसी पीडि़त व्यक्ति को न्यायिक उपचार का मार्ग उपलब्ध नहीं कराता है तो इससे अधिक कठोर कुछ नहीं होगा। अधिनियम में जिस तरह के दण्डों का प्रावधान किया गया है वह भी अपराध की तुलना में काफी अधिक दिखाई देते हैं। उदाहरण के तौर पर भारतीय दण्ड संहिता में तेजाब के हमलों व बाल तस्करी जैसे अपराधों में दस साल की सजा का प्रावधान है, इसलिए मृत्युदण्ड को क्रियान्वित करने को लेकर मुश्किलें सामने आने की बात को अतिरंजित नहीं कहा जा सकता। इन सब ज्यादतीपूर्ण प्रावधानों की ओर ध्यान दिलाए जाने के बावजूद कुमार अपने अभियान को जारी रखने पर अड़े हुए हैं। क्या वे ऐसा केवल इसलिए कर रहे हैं क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति में आने के लिए वे कोई नया मुद्दा बनाने की स्थिति में नहीं हैं? इस सवाल का जवाब केवल उन्हीं के पास है। अभी तो केवल एक बात साफ है कि शराब की लत को उन्होंने सरकारी दमन के लिए बहाने में बदल दिया है। यदि उनके इरादे नेक हैं तो स्पष्ट है कि वे दिशाभ्रमित हैं। यदि इसके पीछे देश के सर्वोच्च पद का चुनाव जीतने का इरादा ही काम कर रहा है तो साफ है कि वे इससे ज्यादा आगे नहीं देख पा रहे। -कुमार विनोद
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