02-Nov-2016 07:22 AM
1234840
जनता दल यूनाइटेड की ताजा बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीएम बनने का साफ इशारा कर दिया है। मगर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य समेत अन्य राज्यों के नेता क्या उनकी अगुवाई स्वीकार करेंगे?
खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से बाहर बताने वाले नीतीश कुमार ने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा साफ कर दी है। मौका बिहार के राजगिर में हुई जनता दल की बैठक का था जहां मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री बनने की हसरत का जिक्र आधिकारिक तौर पर नहीं किया लेकिन इसे जताने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी। पार्टी महासचिव केसी त्यागी ने तो यहां तक कह गए कि बिहार के साथ देश को भी नीतीश कुमार की जरूरत है। इस बैठक में पार्टी ने बीजेपी को पुरानी सोच वाली पार्टी का तमगा देते हुए उसे गंगा-जमुनी तहजीब के लिए खतरा भी बताया।
राजग वादों को भूला
जदयू ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में बने राजग और मोदी वाले राजग की तुलना करते हुए कहा कि उनकी पार्टी तीन वादों के चलते एनडीए में शामिल हुई थी। पहला यह कि अयोध्या का मुद्दा आपसी सहमति या न्यायिक निर्णय के बाद हल होगा। दूसरा यह कि समान नागरिक संहिता मनमाने ढंग से लागू नहीं होगी और तीसरा कि धारा 370 का कोई निराकरण होगा।
मगर मौजूदा भाजपा सरकार ने यूसीसी और अयोध्या मुद्दे को आगामी चुनाव में धु्रवीकरण करने के लिए उठाया। साथ ही बीजेपी जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरंतर वैधता के बारे में संदेह पैदा कर रही है। पूर्व पार्टी अध्यक्ष शरद यादव ने भी भाजपा की खिंचाई की। उन्होंने कहा कि धर्म और जाति के नाम पर लोगों को बांटना ही बीजेपी की नीति थी। घरवापसी, लव जिहाद, गौरक्षक, धारा 370 और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दे देश के नागरिकों को सुकून से नहीं रहने देंगे। यहां मौजूद झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा के प्रमुख बाबूलाल लाल मरांडी ने कहा कि लोग नीतीश कुमार के नाम पर भरोसा करते हैं और देश को उनकी जरूरत है।
जदयू का नीतीश को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाना एक साहसिक कदम होगा। नीतीश एक एंटी एनडीए फ्रंट के नेता के रूप में उभरना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि कई अन्य मजबूत दल, जिनकी कमान उनके नेताओं के हाथ में है, उन्हें एक नेता के रूप में कुबूल कर लें। वैसे नीतीश कुमार की पार्टी का बिहार के बाहर कोई अस्तित्व नहीं है। संगठन के तौर पर भी बिहार में जनता दल यूनाइटेड कमजोर है। नीतीश ने तीन बार लगातार बिहार में सत्ता हासिल की है लेकिन उन्होंने कभी भी चुनाव पूर्व गठबंधन के बिना जीत दर्ज नहीं की। 2019 में नीतीश को कांग्रेस और लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल के साथ अपना गठबंधन जारी रखना पड़ेगा। इसके बाद आती हैं क्षेत्रीय चुनौतियां। इसमें अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप, नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और करुणानिधि की डीएमके है जिसका सामना उन्हें करना होगा। मगर जो सबसे बड़ा डर है वो यह कि क्या लालू खुद नीतीश को पीएम उम्मीदवार के पद पर देखना चाहेंगे?
वरिष्ठ राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने इशारा किया है कि अगर एक एंटी बीजेपी मोर्चे का गठन होगा, तो नेता का चुनाव सभी दलों को मिलकर करना होगा। सिंह ने कहा कि अगर सभी दलों ने अपने-अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा शुरू कर दी, तो भाजपा के खिलाफ एक संयुक्त संघर्ष संभव नहीं होगा।
उत्तर प्रदेश चुनाव से बदलेगी तस्वीर
उत्तर प्रदेश में अगले कुछ महीनों के भीतर विधानसभा का चुनाव होना है, जिनके नतीजों के आधार पर 2019 के आम चुनाव की चुनौतियां खड़ी होंगी और सामना भी करना होगा। अगर यूपी चुनावों में बीजेपी की जीत होती है तो वह दूसरी सभी पार्टियों के लिए चुनौती होगी। अगर मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी सत्ता में वापस आती है, तो भी नीतीश के लिए यह चुनौती होगी कि वह अपने पूर्व सहयोगी को अपने पाले में कैसे करते हैं। इन सारे समीकरणों से इतर बीएसपी है। अगर मायावती यूपी चुनाव मे जीत दर्ज करती हैं तो उनके लिए नीतीश को पीएम पद के लिए अपना नेता स्वीकार कर पाना मुश्किल होगा। कुल मिलाकर नीतीश के लिए प्रधानमंत्री पद का सपना देखना तो आसान है लेकिन उसे सच्चाई में बदलना उतना ही मुश्किल। नीतिश कुमार के लिए पीए पद का सपना देखना तो आसान है लेकिन उसे कर पाने के बीच में कई चुनौतियों का सामना करना होगा।
-कुमार विनोद