03-Oct-2016 11:15 AM
1234769
मप्र में हर स्तर के चुनावों को जीत कर शिवराज सिंह चौहान जीत का पर्याय बन गए हैं। प्रदेश में जब भी कोई चुनाव या उप चुनाव होता है तो कहा जात है कि यह शिवराज के लिए अग्निपरीक्षा है। लेकिन वास्तव में देखा जाए तो शहडोल संसदीय सीट पर होने वाले उपचुनाव में शिवराज की असली परीक्षा होने वाली है। साथ ही कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव की भी अग्निपरीक्षा है। यानी शहडोल अरुण का भविष्य तय करेगा। इसलिए सब की नजरें शहडोल उपचुनाव पर जा टिकी हैं। भाजपा को जहां शिवराज की लोकप्रियता के साथ-साथ दलबदल का आसरा है, वहीं कांग्रेस झाबुआ की पुनरावृत्ति को बेताब है।
भले ही अब तक शहडोल लोकसभा के उपचुनाव का कार्यक्रम घोषित नहीं हुआ हो लेकिन एक साल बाद भी झाबुआ लोकसभा के उपचुनाव खौफ दलों पर इस कदर हावी है कि उनकी नींद उड़ी हुई है। शहडोल को लेकर नेता सहमे-सहमे से हंै, क्योंकि पार्टी आलाकमान ने शहडोल से नेताओं का भविष्य जो जोड़ दिया है सो दोनों दलों के प्रादेशिक नेतृत्व को अब हर हाल में शहडोल में जीत ही चाहिये। दरअसल, प्रदेश के दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस के लिये शहडोल लोकसभा का उपचुनाव बेहद अहम हो गया है। कांग्रेस, भाजपा को जहाँ झाबुआ जैसा झटका देना चाह रही है तो भाजपा अब किसी मुगालते में न रहते हुये हर हाल में शहडोल जीतना चाह रही है। दोनों की जीत के प्रति आसक्ति भरी चाहत ने ही शहडोल में बहुत पहले से चुनावी सरगर्मी बढ़ा दी है। इस चुनाव में कई नेताओं की अग्निपरीक्षा होगी।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगभग आधा दर्जन बार शहडोल का दौरा कर चुके हैं। प्रदेश में जैसे ही किसी चुनाव की सम्भावना बनती है तो उसके साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर चुनावी जुनून पूरी तरह छा जाता है और वे अपना सारा ध्यान उसे जीतने पर लगा देते हैं। अक्टूबर में नियत शहडोल लोकसभा उपचुनाव को जीतने के लिए अभी से शिवराज ने जमीन-आसमान एक कर दिया है। वहां घोषणाओं व आश्वासनों की बाढ़ जैसे हालात पैदा कर दिये हैं। मंत्रियों की फौज अभी से तैनात कर दी गयी है। शहडोल की जितनी भी योजनाएं लंबित हैं या जो घोषणाएं की जा रही हैं, उनके क्रियान्वयन के लिए आला अधिकारियों ने भी पहल प्रारंभ कर दी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का दावा है कि झाबुआ की तर्ज पर शहडोल का चुनाव भी कांग्रेस ही जीतेगी और सम्भावित हार की आशंका में अभी मुख्यमंत्री लगातार दौरे कर रहे है। बहरहाल, शहडोल में शिवराज जिस रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं उसे देखते हुए लगता है कि झाबुआ की हार से शायद उन्होंने कोई सबक नहीं लिया है। ऐसे भी संकेत मिल रहे हैं कि चुनाव के पूर्व कांग्रेस से किसी संभावित मजबूत प्रत्याशी को भाजपा में शामिल कराकर उसे उम्मीदवार बनाया जाए। इस प्रकार चुनावी जीत के लिए दलबदल का तड़का भी लगाया जा सकता है। एक तो सर्वे रिपोर्ट मिली-जुली आ रही है। दूसरे भाजपा को अब तक मन का प्रत्याशी भी नहीं मिल पाया है। देश की एकमात्र सीट पर हो रहे उपचुनाव के परिणाम पर देश भर की निगाह टिकी है। न केवल विभिन्न राजनैतिक दल बल्कि मीडिया में भी इस चुनाव को लेकर उत्सुकता बनी हुई है। बिहार के बाद झाबुआ उपचुनाव में भाजपा की करारी पराजय और प्रदेश के तीन नगरीय निकाय चुनाव में शिकस्त से पार्टी चिंतित है।
भाजपा के हाथ नहीं आईं हिमाद्री सिंह
पहले दौर में भाजपा ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. नंदिनी सिंह की बेटी हिमाद्री सिंह को भाजपा में शामिल कर प्रत्याशी बनाने के प्रयास किये थे लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली सो, अब पार्टी दलबीर सिंह के बड़े भाई के पुत्र नर्मदा सिंह के नाम पर भी विचार कर रही है। वैसे तो पार्टी के पास पुष्पराजगढ़ के पूर्व विधायक सुदामा सिंह संग्राम, नगर पंचायत अमरकंटक अध्यक्ष रज्जू सिंह नेताम, मध्यप्रदेश शासन के मंत्री ज्ञानसिंह, निगम अध्यक्ष नरेन्द्र मरावी, जैनपुर विधायक जयसिंह मरावी एवं रूपमति सिंह जैसे नाम प्रत्याशी बनाये जाने वाली सूची में हैं लेकिन डंके की चोट पर चुनाव जिसके नाम पर जीत सके ऐसा प्रत्याशी अब तक पार्टी को नहीं मिल पाया है। उधर, दूसरी ओर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पर भी झाबुआ की तरह शहडोल जीतने का खौफ है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि यदि कांग्रेस शहडोल लोकसभा का चुुनाव हारी तो प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव को हटाया भी जा सकता है। यही कारण है कि अरुण यादव ने पूरी कोशिश करके शहडोल के लिए बेहतर प्रत्याशी के रूप में हिमाद्री सिंह की सहमति भी करा ली है और हिमाद्री सिंह ने मां नर्मदा की पूजा-अर्चना करके जनसंपर्क भी शुरू कर दिया है। झाबुआ जीतने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में आई ऊर्जा को 2018 तक बढ़ाने के लिए कांग्रेस हर हाल में शहडोल को जीतने की कोशिश करेगी।
-नवीन रघुवंशी