03-Oct-2016 10:59 AM
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मप्र में कभी सत्ता से पांच साल भी दूर नहीं रही कांग्रेस को इस बार सत्ता से दूर हुए 13 साल होने को आ गए हैं। इसके पीछे मूल वजह दिग्गजों में वर्चस्व को लेकर वर्षों से चला आ रहा शीतयुद्ध मना जा रहा है। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस में गुटबाजी न कभी खत्म हुई है और न कभी खत्म हो सकती है। इन सबके बीच कांग्रेस एक नए स्वरूप में गठित हो रही है। इसमें सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह शामिल है। बताया जाता है कि इन तीनों नेताओं ने अपने-अपने सेनापतियों के साथ मिशन 2018 की तैयारी शुरू कर दी है।
यानी भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक नई रणनीति के तहत घेरेगी। उसकी कमान सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के हाथ में रहेगी। वैसे देखा जाए तो गुटों में बंटी कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया ही एकमात्र ऐसे नेता हैं जो हर गुट के साथ समन्वय रखते हैं। यही नहीं उनकी युवाओं में अच्छी पैठ है। इसको देखते हुए आलाकमान में भी अंदरूनी तौर पर इस तिकड़ी को हरी झंडी दे दी है।
मिशन 2018 की तैयारी को लेकर बात की जाए तो इस बार कांग्रेस का रुख हर चुनौतियों का सामना करने को तैयार दिखाई दे रहा है। चुनाव में अभी वक्त है। ऐसे में सत्ताधारी पार्टी आखिरी समय का पूरा फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। विरोधी दल प्रदेश में परिवर्तन लहर का इंतजार कर रहे हंै। ऐसे में पूरी चुनावी प्रक्रिया को समझा जाए तो प्रदेश की जनता का रुख स्पष्ट नहीं समझा जा सकता है। ग्वालियर क्षेत्र जो सभी दलों के लिये राजनैतिक रणनीति का अखाड़ा माना जाता है ऐसे में ग्वालियर के महाराज को कांग्रेस पार्टी 2018 के चुनाव का हीरो बना सकती है। यदि ऐसा हुआ तो ग्वालियर चम्बल क्षेत्र जो हमेशा से भाजपा का अभेद्य किला रहा है उसे भेदने की सबसे बड़ी चुनौती महाराज के सामने रहेगी। हालांकि चुनाव अभी दूर हैं। मिशन 2018 से पहले उत्तर प्रदेश और पंजाब दोनों पर भाजपा की नजर है खासकर उत्तर प्रदेश जो केंद्र के लिए नाक का सवाल साबित होगी। लेकिन जानकारों का कहना है कि उत्तरप्रदेश के परिणाम का असर मध्यप्रदेश पर नहीं पडऩे वाला है। क्योंकि मध्यप्रदेश की राजनीति की धारा अपनी गति से ही चलती है। यहां ज्यादा उठापटक के आसार कम ही नजर आते हैं।
इसलिए कांग्रेस आलाकमान ने मध्यप्रदेश के नेताओं को अपने स्तर पर चुनावी तैयारी की हरी झंडी दे दी है। 2018 के चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी के पास कई अहम मुद्दे होंगे लेकिन लगातार कई वर्षों से सत्ता से बाहर रहने के बाद परेशान और हताश पार्टी को स्वयं पर ही भरोसा नहीं रहा। कांग्रेस इस बार आंकड़ों में राजनीति का भविष्य तलाश रही है। प्रदेश की सभी सीटों पर जीत और हार के अंतर से समझते हुये चुनाव की तैयारी की जायेगी।
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि आलाकमान ने ज्योतिरादित्य सिंधिया, अजय सिंह और अरुण यादव पर विश्वास करके यह संकेत दे दिया है कि कांग्रेस भाजपा को उसके गढ़ से ही घेरेगी। उल्लेखनीय है कि ग्वालियर, चंबल संभाग, विंध्य क्षेत्र और मालवा निमाड़ भाजपा का गढ़ बना हुआ है। सिंधिया जहां ग्वालियर चंबल संभाग में मजबूत हैं वहीं अजय सिंह विंध्य में अच्छी पकड़ रखते हैं जबकि अरुण यादव मालवा निमाड़ में दमदार हैं। अगर कांग्रेस इन तीनों क्षेत्रों में भाजपा पर दबाव बनाती है तो निश्चित रूप से उसके पांव लडख़ड़ाने लगेंगे।
भाजपा की सरकार के कामकाज को लेकर प्रदेश में भले ही असंतोष के भाव दिखाई दे रहे हैं, इसके बावजूद कहा जा सकता है कि कांग्रेस के लिये भाजपा के गढ़ को भेदना आसान काम नहीं होगा। हालांकि सांसद सिंधिया ने मिशन 2018 के लिये ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया है। अब देखना यह है कि भाग्य और व्यवस्थाओं की हमेशा अपने करीब रखने वाले शिवराज सिंह चौहान अपनी सरकार को कैसे बचा पाते हंै। उधर भाजपा का दावा है किप्रदेश मुखिया के पास विजन 2018 के लिये फुल प्रूफ प्लानिंग होगी जो वे बचे हुये दिनों में पूरी करने की क्षमता रखते हैं। प्रदेश में मतदाताओं के पास भाजपा और कांग्रेस के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। ऐसे में मतदाता अपने फायदे और नुकसान का अनुमान आसानी से लगा सकता है जिसका पूरा फायदा सत्ताधारी पार्टी को ही मिलने की उम्मीद है। अब देखना यह है कि कांग्रेस आलाकमान अपनी इस तिकड़ी को किस तरह शिवराज सरकार के खिलाफ बिसात पर बिछाता है।
दिग्गी-नाथ होंगे रणनीतिकार
मध्यप्रदेश में पिछले तीन विधानसभा चुनाव हार चुकी कांग्रेस इस बार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और सांसद कमलनाथ को रणनीतिकार की भूमिका में रखेगी। इसके पीछे वजह यह है कि प्रदेश में जितने इन नेताओं के समर्थक नहीं हैं उतने विरोधी हैं। इसलिए पार्टी की मंशा है कि मिशन 2018 के लिए वह प्रदेश में सक्रिय नेताओं को मैदानी जिम्मेदारी दें। यह सर्वविदित हैं कि दिग्विजय सिंह से प्रदेश की जनता खार खाए हुए है। भले ही अपने ऊटपटांग बयानों के कारण दिग्गीराजा सुर्खियों में रहे लेकिन जनता के बीच उनकी पैठ कम हो गई है। वहीं सांसद कमलनाथ को तो मप्र में अप्रवासी माना जाता है। उनका अधिकांश समय दिल्ली में ही गुजरता है। इसलिए इन दोनों नेताओं को वार रूम की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
-भोपाल से अरविंद नारद