उड़़ान भरती लड़कियां
03-Oct-2016 10:52 AM 1234846
रिजल्ट चाहे हाई स्कूल का आए या इंटर का या फिर आईएएस जैसे प्रतिष्ठित इम्तिहान का, अकसर पढऩे को मिलता है कि किशोरियों ने फिर बाजी मारी या लाड़लियां अव्वल रहीं। मोटे-मोटे अक्षरों वाले इन शीर्षकों में समाज के एक सुखद बदलाव का अतीत और भविष्य की तसवीर भी छिपी है कि कैसे किशोरियां इस मुकाम तक पहुंचीं और वे कौन सी वजह हैं जिन के चलते वे किशोरों को हर स्कूली और प्रतियोगी परीक्षा में पछाड़ रही हैं। जान कर हैरानी होती है कि लगभग 30-40 साल पहले तक किशोरियां प्रतियोगी परीक्षाएं तो दूर स्कूल कालेज भी न के बराबर ही जाया करती थीं। किशोरों के मुकाबले स्कूल कालेजों में उन की संख्या 10 प्रतिशत भी नहीं थी। पर पढऩे और कैरियर बनाने का मौका मिलने पर उन्होंने न केवल खुद का लोहा मनवाया बल्कि साबित कर दिया कि वे लड़कों से बढ़कर हैं। पढऩे-लिखने और कैरियर बनाने का मौका किशोरियों को यों ही नहीं मिल गया, बल्कि इस के पीछे कई पारिवारिक और सामाजिक कारण हैं। जैसे-जैसे लोग छोटे परिवार का महत्व समझते गए तो परिवार सीमित होने लगे। इससे पहले जब एक माता-पिता की अधिक संतानें पैदा होती थीं तो किशोरियों को ज्यादा नहीं पढ़ाया जाता था। वे घर का कामकाज करती थीं और फिर शादी के बाद दूसरे भरेपूरे घर में जाकर अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारी निभाती थीं। छोटे परिवारों के चलन में आते ही किशोरियों की पढ़ाई पर भी खास ध्यान दिया जाने लगा, क्योंकि अभिभावक उन्हें लेकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते थे। नतीजतन, किशोरियां आत्मनिर्भर होने लगीं और इतनी तेजी से नौकरियों में आईं कि देखते ही देखते हर जगह उन का वर्चस्व दिखने लगा। पहले कुछ बड़े और शिक्षित परिवारों में ही किशोरियों को पढ़ाई की छूट थी जो अब बढ़ती जागरूकता के चलते सभी वर्गों की किशोरियों को मिल रही है और अच्छी बात यह है कि शिक्षा और कैरियर में वे खुद को साबित भी कर रही हैं, इसलिए ऐसे शीर्षक पढ़ कर हैरानी होना स्वाभाविक बात है कि मजदूर की बेटी बनी आईएएस या फिर गरीब पिता की लड़की ने 10वीं या 12वीं में टॉप किया। किशोरियां क्यों किशोरों से अव्वल साबित हो रही हैं इसके पीछे कई अहम वजह हैं जिनमें से पहली यह है कि वे पढ़ाई लिखाई और प्रतियोगी परीक्षा में मिले मौके का पूरा फायदा उठाती हैं। दूसरी वजह भी बड़ी दिलचस्प और सबक सिखाने वाली है जो बताती है कि कैसे आप बाजी मार सकते हैं। किशोरियां किशोरों के मुकाबले पूरी ईमानदारी और लगन से पढ़ाई करती हैं, वे वक्त की बरबादी कम करती हैं। वे दोस्तों के संग घूमने-फिरने, मौस्ती करने और अन्य व्यसनों में नहीं पड़तीं, जो पढ़ाई पर बुरा प्रभाव डालते हैं। अभी भी किशोरियां रसोई में दखल रखती हैं हालांकि अब यह उनकी मजबूरी नहीं रही है, लेकिन एक शौक तो है ही। रसोई के काम करते वे अच्छी प्रबंधक हो जाती हैं। टाइम मैनेजमैंट पर इन दिनों खासा जोर दिया जा रहा है, किशोरियां इस में माहिर होती हैं। मसलन, दैनिक क्रियाओं से लेकर वक्त पर सोने तक का वे खयाल रखती हैं, जिससे पढ़ाई के लिए उन्हें ज्यादा वक्त मिलता है या वे पढ़ाई के लिए ज्यादा वक्त निकाल लेती हैं। किशोरियां मिडिल कक्षाओं से ही कैरियर का महत्व समझने लगती हैं, कम उम्र में ही उन्हें यह वास्तविकता समझ आने लगती है कि समाज में स्वाभिमान और सम्मानजनक तरीके से जीने के लिए जरूरी है कि आत्मनिर्भर बना जाए, जो शिक्षा और कैरियर में आगे रह कर ही संभव है। यह भले ही सामाजिक व आर्थिक असुरक्षा के चलते हो, लेकिन बात उनके लिहाज से उनके हक की ही है, जबकि सभी लड़के शिक्षा और नौकरी को लड़कियों जितनी गंभीरता से नहीं लेते। -ज्योत्सना अनूप यादव
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^