17-Sep-2016 07:10 AM
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स्त्री का अकेलापन जब शोककाल में अपनों के भावनात्मक लगाव की अपेक्षा करता है तो उसे संपत्ति के लालची परिवारजनों की धूर्त चालें मिलती हैं। लिहाजा, पति ने जो आर्थिक स्तंभ शेष जीवन को सकुशल गुजारने के लिए खड़ा किया था वह भी अपनों की लूटखसोट में ढह जाता है। इसलिए हर पत्नी को अपने पति की संपत्ति के बारे में जानकारी रखनी चाहिए। वर्ना पूरी जिंदगी उसे कष्ट में काटनी पड़ सकती है।
भारत का सामाजिक तानाबाना न्यूनाधिक रूप से आज भी ऐसा है जिस में अधिकांश महिलाएं पिता या पति पर ही आर्थिक रूप से निर्भर होती हैं। वक्त की मार से वे पतिहीन हो जाएं तो उसके बाद उन्हें पुत्र व पुत्रवधू के शरणागत होना पड़ता है। कुछ ऐसे उदाहरण भी देखने को मिलते हैं कि कुछ पति-पत्नी, जो स्वाभिमानी किस्म के होते हैं अथवा परिस्थितिवश अकेले रहने हेतु बाध्य होते हैं, उन में पति की मृत्यु होने के बाद पत्नी अकेले रहने को अभिशप्त हो जाती है और अवसादवश विक्षिप्तता की शिकार बन जाती है। बहुत बार तो ऐसी एकाकी स्त्रियां नौकरों, चोर-लुटेरों, स्वजनों या असामाजिक तत्वों की शिकार बन कर जान से हाथ धो बैठती हैं।
एक सर्वेक्षण के मुताबिक, देशभर में लगभग 2 करोड़ महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें पति की मृत्यु के बाद पति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति, दायित्व का स्वयं ही प्रबंधन करना होता है। नैसर्गिक रूप से यह सहारा वे पुत्र-पौत्रों से प्राप्त करने का प्रयास करती हैं स्त्री की यही निर्भरता कई बार उस के लिए घातक सिद्ध होती है जब भावी मालिक, पहले ही मालिक बन जाने की आकांक्षा में सब कुछ हड़प जाते हैं। यह तो हुई स्थायी संपत्ति की बात, जहां तक तरल कोष (नकद, बैंक खाते, पौलिसी, शेयर, फंड, भविष्य निधि आदि) की बात है, उन में भी नामांकन किया जाना आवश्यक है और इन सब की जानकारी कम से कम पत्नी को अवश्य होनी चाहिए। भावुकता का दामन छोड़ कर नामांकन में बच्चों के बजाय पत्नी का नाम ही करवाना श्रेयस्कर है।
देखने में आया है कि कई बार भवन, वाहन या अन्य संपत्ति पर पति द्वारा बैंक, बीमा कंपनी या वित्तीय संस्थान से कर्ज लिया हुआ होता है और उसके चुकता किए बिना ही पति की मृत्यु हो जाती है। ऐसी स्थिति में पत्नी को ही पति द्वारा लिया गया कर्ज चुकाना पड़ता है। यदि कर्ज चुकाने की स्थिति नहीं है तो बेहिचक वित्तीय संस्थान को बता दिया जाना चाहिए ताकि संपत्ति अधिगृहीत कर उसके बेचने से कर्ज चुकता होने के बाद शेष बची राशि आप को मिल सके। यदि कोई संपत्ति ऐसी है जिस की वसीयत नहीं है तो जागरूकता का परिचय देते हुए यथोचित समयावधि में सक्षम अधिकारी के समक्ष पति के मृत्यु प्रमाणपत्र सहित दावा पेश करें क्योंकि पति द्वारा अर्जित संपत्ति में पत्नी व बच्चों का समान हक होता है। पिछले कुछ सालों में बने 2 कानूनों ने संपत्ति का हक दिलवाने के मामलों में महिलाओं की राह और भी आसान कर दी है। विधवाओं के लिए तो ये विशेष हितकारी सिद्ध हुए हैं। उनमें से एक तो है, घरेलू हिंसा अधिनियमÓ, जिसने उनके आवास और संपत्ति में हक पाने के अधिकार को मजबूत किया है और दूसरा है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (2005)।Ó इसके अंतर्गत विवाहित महिलाओं को भी पूर्वजों (मायके) की संपत्ति में बराबर का हक दे दिया गया है जबकि इससे पहले संपत्ति में यह अधिकार केवल अविवाहित महिलाओं के लिए ही था। इसलिए अधिकार के साथ कायदे-कानून की समझ भी महिलाओं में होनी चाहिए।
अपनी चल-अचल संपत्ति के बारे में जाने महिलाएं
भोपाल के एक विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन केंद्र के अनुसार, धीरे-धीरे क्षरित हो रही संयुक्त परिवार प्रथा के चलते 90 के दशक के बाद से सामाजिक परिस्थितियों व सोच में तेजी से बदलाव आया है। पारिवारिक अवलंबनÓ के घटते आधार के परिणामस्वरूप अधिकतर पुरुष असुरक्षा के भय से जमीन जायदाद, पैंशन या फंड आदि के रूप में इतनी संपत्ति अवश्य छोड़ जाना चाहते हैं जिस से आश्रिता पत्नी या अन्य आसानी से भरणपोषण कर सकें और उन्हें आर्थिक रूप से किसी की दया पर निर्भर न रहना पड़े। आर्थिक नियोजन संस्थान के सलाहकारों के आंकलन के अनुसार, उच्चमध्यम परिवार का मुखिया जो सामान्यतया 50 हजार रुपए महीना कमाता है, औसतन 25 लाख रुपए तक का मकान और 10-15 लाख रुपए का कोष परिवार के लिए छोड़ कर जाता है। यदि पति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति व कोष का विवेक पूर्ण नियोजन कर इस्तेमाल किया जाए तो महिला का शेष जीवन सुगमता से गुजारने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है लेकिन दुख की बात है कि मुश्किल से 2-3 फीसदी महिलाएं ही ऐसा कर पाने में सफल होती हैं। 98 फीसदी महिलाएं तो सब कुछ होकर भी धनहीन रहने को विवश होती हैं। कनक प्रभा जैसी धर्मभीरुओं के उदाहरण भी देखने को मिलते हैं जिन की संपत्तियां अनाधिकृत रूप से धर्मगुरुओं द्वारा हरण कर ली जाती हैं। इसलिए आवश्यक है कि पति अपने जीवनकाल में ही पत्नी को अपनी चल-अचल संपत्ति के अधिकार पत्रों, उनके नामांकन आदि से परिचित रखे।
-माया राठी