मराठा आरक्षण की सियासत
03-Oct-2016 10:50 AM 1234819
महाराष्ट्र की सड़कों पर इन दिनों घमासान मचा हुआ है। कोपर्डी रेप कांड और एट्रोसिटी कानून के खिलाफ  चुपचाप शुरू हुआ मराठा आंदोलन अब पूरे महाराष्ट्र में फैल गया है। आंदोलनकारियों की मांग है कि आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े मराठाओं को आरक्षण दिया जाए। एट्रोसिटी कानून को खत्म किया जाए। क्योंकि एट्रोसिटी कानून का सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल मराठा लोगों के खिलाफ  हुआ है। मराठा आंदोलन में शामिल लोग कोपर्डी रेप कांड के आरोपियों को फांसी की सजा देने की मांग कर रहे हैं। कोपर्डी रेप कांड की पीडि़त मराठा थी जबकि अत्याचार करने वाले दलित। मराठवाड़ा में दलित और मराठा संघर्ष का पुराना इतिहास रहा है। अब एट्रोसिटी कानून को हटाने के मुद्दे पर एक बार फिर दलित और मराठा आमने-सामने हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस-राकांपा की पिछली सरकार ने 2014 में मराठा समाज को चुनाव से ठीक पहले 16 फीसदी आरक्षण दिया था। लेकिन विधानसभा चुनावों में इस गठबंधन की बुरी तरह हार हुई और भाजपा-शिवसेना सरकार बनी। अभी की फडणवीस सरकार ने भी मराठा आरक्षण का समर्थन किया और जब अदालत ने आरक्षण के खिलाफ फैसला दिया, तो उसे विधानसभा से पारित करवाया। राज्य में पहले से ही 49 फीसदी आरक्षण है। लिहाजा हाईकोर्ट ने मराठाओं को दिए गए इस आरक्षण को रद्द कर दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। 20 सितम्बर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के मामले में सुनवाई से इनकार कर दिया। कोर्ट और मराठाओं के बीच फंसे इस घमासान ने महाराष्ट्र में सियासी पार्टियों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है। क्योंकि एक तरफ 32 फीसदी वोट बैंक वाला मराठा समाज है तो दूसरी ओर करीब 11 फीसदी वोट बैंक वाला दलित समाज। महाराष्ट्र में अगले साल निकायों के चुनाव होने हैं, जिसे मिनी विधानसभा चुनाव के तौर पर भी देखा जाता है, राजनीतिज्ञ मान रहे हैं कि इन आंदोलनों का इस्तेमाल उन चुनावों के लिए जमीन तैयार करने के लिए किया जा रहा है। इस आंदोलन का इस्तेमाल कई लोग महाराष्ट्र में 2017 में होने वाले स्थानीय निकायों के चुनाव में अपना निशाना साधने में भी लगे हुए हैं।  अभी तक देश में आरक्षण को लेकर जो बड़े आंदोलन हुए हैं वे निम्नांकित हैं :- पाटीदार आंदोलन: गुजरात में जुलाई 2015 में पटेल आंदोलन शुरू हुआ। अप्रैल 2016 में गुजरात की बीजेपी सरकार ने आंदोलन के दबाव में सामान्य वर्ग में पाटीदारों सहित आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की, जिस पर पहले गुजरात हाई कोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी। जाट आरक्षण: हरियाणा सरकार ने 29 मार्च 2016 में जाटों और अन्य पांच समुदायों को सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के लिए विधेयक पास किया। इसके तहत पिछड़े वर्ग की नई कैटेगरी सीÓ को जोड़कर कोटे का प्रावधान किया गया था। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने जाट आरक्षण पर 21 जुलाई तक की अंतरिम रोक लगा दी थी। अब 30 सितंबर को मामले में अगली सुनवाई होगी। यूपीए सरकार ने 2014 में सेंट्रल सर्विसेस में जाटों को आरक्षण दिया था, जिसे 17 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया था। गुर्जर: राजस्थान की बीजेपी सरकार ने 22 सितंबर 2015 को विधानसभा में गुर्जर और अन्य समुदायों को पांच फीसदी आरक्षण देने का विधेयक पास किया। इन्हें विशेष पिछड़ा वर्ग में रखा गया है। सवर्णों को खुश रखने के लिए राज्य सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग को भी 14 फीसदी आरक्षण देना तय किया है। 49 फीसदी आरक्षण पहले से था, 19 प्रतिशत नया आरक्षण आया है, यानि कुल मिलाकर राजस्थान में रिजर्वेशन 68 फीसदी। लेकिन अब महाराष्ट्र में आरक्षण की जो लहर उठी है उसका परिणाम क्या होगा यह देखने लायक है। -मुंबई से ऋतेन्द्र माथुर
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