चमकदार पार्टी चार साल में पस्त
03-Oct-2016 10:34 AM 1234801
नवम्बर 2016 में आम आदमी पार्टी अपने चार साल पूरे करने जा रही है। इन चार सालों में पार्टी के नेताओं पर जिस तरह के आरोप लगे हैं वो बताते हैं पार्टी किस तरह अपने संस्थापक सिद्धांतों और उद्देश्यों से भटकती जा रही है। आम आदमी पार्टी हमेशा ही विवादों में रही है चाहे वो इसके शुरूआती साल रहे हों या अब जब की पार्टी पंजाब और गोवा जैसे दूसरे राज्यों में मुख्य विकल्प बनने के सपने देख रही है। और ये विवाद स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सब कुछ सही नहीं है। आम आदमी पार्टी 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन से निकली पार्टी है जिसने राजनीतिक बदलाव के उच्च मानदंडों को स्थापित करने के उद्देश्य के साथ 4 साल पहले नवम्बर 2012 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा था। दिल्ली उस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का गढ़ था और पार्टी को इसका फायदा भी मिला। अपने गठन के एक साल बाद ही पार्टी दिल्ली में सरकार बनाने में सफल रही। यद्यपि अरविन्द केजरीवाल ने 49 दिनों में ही इस्तीफा दे दिया था, दिल्ली की जनता ने एक बार फिर आम आदमी पार्टी पर भरोसा जताते हुए उसे प्रचंड बहुमत दिया और दिल्ली में फिर से आम आदमी पार्टी की सरकार फरवरी 2015 में बन गई। आम आदमी पार्टी के शुरूआती विवाद वैचारिक मतभेदों पर केंद्रित थे। इंडिया अंगेस्ट करप्शन, संस्था जिसका गठन 2011 के आंदोलन को संचालित करने के लिए हुआ था, के कई कार्यकर्ता राजनीतिक दल बनाने के विरोध में थे। जो समर्थन में थे उन्होंने पार्टी बनाई बाकी अलग हो गए। नवम्बर 2012 से फरवरी 2015 तक कई लोगों ने पार्टी ज्वाइन की या पार्टी से इस्तीफा दिया। कैप्टेन गोपीनाथ, एसपी उदय कुमार, शाजिया इल्मी जैसे लोगों ने अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के तौर तरीकों पर सवाल खड़े करते हुए पार्टी से इस्तीफा दिया। किरण बेदी ने तो आम आदमी पार्टी में शामिल होने से ही इंकार कर दिया था। लेकिन ये सभी विवाद मुख्यत: वैचारिक थे जिनका जनता के भरोसे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। हालांकि विपक्षी पार्टियों ने बहुत कोशिश की कि आम आदमी पार्टी को भ्रष्टाचार के आरोपों के लपेटे में लिया जा सके लेकिन ये आरोप कभी भी वित्तीय अनियमितताओं से ज्यादा कुछ सिद्ध नहीं कर पाए। आम आदमी पार्टी अभी भी एक पार्टी थी जिसके नेता भ्रष्टाचार के व्यक्तिगत आरोपों से परे थे। आम आदमी पार्टी अब अरविन्द केजरीवाल केंद्रित पार्टी के रूप में देखी जाती है जिसके नेता हर उस आरोप में फंसे हैं जो आम आदमी पार्टी के संस्थापक सिद्धांतों के खिलाफ हैं। दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री और आम आदमी पार्टी एमएलए जीतेन्द्र सिंह तोमर फर्जी शिक्षा और डिग्री के केस में फंसे और जेल गये। अक्टूबर 2015 में आम आदमी पार्टी को अपने खाद्य मंत्री असीम अहमद खान को भ्रष्टाचार के आरोपों में हटाना पड़ा था। खान पर घूस लेने के आरोप लगे थे और एक ऑडियो क्लिप सामने आयी थी। जून 2016 में परिवहन मंत्री गोपाल राय को भ्रष्टाचार के आरोपों में इस्तीफा देना पड़ा था। अभी पिछले महीने ही आम आदमी पार्टी को अपने पंजाब संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर को बर्खास्त करना पड़ा था जब एक स्टिंग विडियो ने छोटेपुर को टिकट आवंटित करने के बदले पैसा लेते हुए दिखाया था। दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ आम आदमी पार्टी नेता सोमनाथ भारती को घरेलू हिंसा के मामले में तिहाड़ जाना पड़ा था। पंजाब में अगले कुछ महीने में चुनाव हैं और आम आदमी पार्टी वहां मुख्य प्रतिद्वंदी के रूप में देखी जा रही है और टिकट वितरण का काम जोरों पर है। अब वहां से भी टिकट आवंटन के बदले यौन शोषण के गंभीर आरोप सामने आ रहें हैं और पार्टी को विवश होकर आतंरिक जांच शुरू करनी पड़ी है। किसी को यह समझ में नहीं आ रहा है कि आम आदमी की पार्टी को खास लोगों का रोग कैसे लग गया। हर तरह के दाग आप पर आम आदमी पार्टी महिलाओं से छेड़छाड़ के मामलों और सेक्स स्कैंडल्स से अभी अछूती नहीं रही है।  कुमार विश्वास अनैतिक संबंधों का आरोप झेल रहे हैं और केस कोर्ट में है। दिल्ली  के महिला और बाल कल्याण मंत्री संदीप कुमार को बर्खास्त करना पड़ा था जब उनकी सेक्स सीडी मीडिया के हाथ लग गई थी।  पार्टी के नरेला एमएलए शरद चौहान पर पार्टी की एक महिला कार्यकर्ता ने आरोप लगाया था के उन्होंने महिला द्वारा एक आदमी पर लगाए गए यौन उत्पीडऩ की शिकायत को वापस लेने के लिए दबाव डाला था।  ओखला से एमएलए अमानतुल्लाह खान पर फिरसे छेड़छाड़ का मामला दर्ज किया गया है। जुलाई 2016 में भी अमानतुल्लाह खान पर एक दूसरी महिला ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया था और उन्हें जेल जाना पड़ा था और फिलहाल वो जमानत पर रिहा हैं। -इन्द्र कुमार
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