मौत के गड्ढे
03-Oct-2016 10:41 AM 1234912
मप्र को अगर खनन प्रदेश कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि प्रदेश में माफिया द्वारा अवैध रूप से जल, जंगल और जमीन पर अवैध रूप से खनन कर मौत के गड्ढ़े तैयार किए जा रहे हैं, जिनमें हर साल दबकर, डूबकर सैकड़ों लोग मौत के मुंह में समा रहे हैं। अभी हाल ही में गुना में एक अवैध खदान के गड्ढे में डूबकर 7 बच्चे मौत के गाल में समा गए। अब जाकर सरकार की नींद खुली है और उसने अवैध खनन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करनी शुरू की है। दरअसल प्रदेश में सरकारी की दोहरी नीति के कारण जहां खनन माफिया तेजी से पनप रहा है। शासन-प्रशासन से साठ-गांठ करके माफिया ने पूरे प्रदेश को खदान में तब्दील कर दिया है। सरकार की दोहरी नीति के कारण प्रदेश के जंगल तेजी से खत्म हो रहे हैं। एक तरफ  तो सरकार जंगल बचाने और बढ़ाने के लिए हर साल करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ  इन्हीं जंगलों में खदानों को अनुमति देकर राजस्व कमा रहे हैं। सरकार की इस दोहरी नीति के कारण जंगल पर एक बार फिर माफिया हावी हो गया है। आलम यह है कि प्रदेश में मुरम, पत्थर, मिट्टी आदि के लिए नियमों को ताक पर रखकर खनन की अनुमति दी जा रही है। तीन साल के अंदर 33590 हेक्टेयर जंगल की जमीन पर वैध रूप से खदानें खुद गई हैं तो माफियाओं ने साल भर में करीब 40,000 अवैध गड्ढे खोद डाले हैं। इतना ही नहीं इन गड्ढों से लाखों घन फुट पत्थर भी निकाला जा चुका है। इस बात का खुलासा एक जांच रिपोर्ट में सामने आई है। बावजूद इसके सरकार ने पूरे मामले पर चुप्पी साध रखी है। हद तो यह है कि जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई के बजाय उसे दबा दिया गया है। इस पूरे मामले में चौंकाने वाली बात यह है कि मैदानी अमले की लगातार रिपोर्ट के बाद भी आला अधिकारियों ने जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए। रिपोर्ट में टीम ने अकेले ग्वालियर-चम्बल संभाग में करीब 3700 अवैध गड्ढे पाये। इन गड्ढों से लाखों घन फुट पत्थर और मिट्टी भी निकाला गया है। इस दौरान सबसे ज्यादा अवैध उत्खनन ग्वालियर के घाटीगांव (उत्तर) रेंज में मिला है। इसके अलावा माफिया के दूसरे निशाने पर रहा सोनचिरैया अभयारण्य क्षेत्र रहा। इस क्षेत्र से भी जांच टीम को सैकड़ों गड्ढे मिले हैं। ऐसे में सवाल यह है कि जंगल कैसे बचेंगे और बढ़ेंगे? आज स्थिति यह है कि प्रदेश के जंगल गंजे होते जा रहे हैं। प्रदेश में खनन किस तरह हो रहा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में तीन साल यानी 2011-12 से 2015-16 के बीच खदानों के लिए 33590 हेक्टेयर जंगल की जमीन परिवर्तित कर दी गई यानी हर साल जंगलों की 11 हजार 196 हेक्टेयर भूमि पर औसतन 123 खदानें शुरू की गईं। जबकि इन्हीं 3 सालों में प्रदेश शासन ने जंगलों के विकास और वन्य गतिविधियों के लिए 15 योजनाओं पर 61966.80 लाख रुपए खर्च किए हैं। यही नहीं, केंद्र सरकार (केंद्र प्रवर्तित योजनाओं के तहत) ने भी प्रदेश के जंगलों के विकास, संरक्षण और प्रबंध आदि मदों के लिए इस अवधि में 60496.25 लाख रुपए आवंटित किए। इसमें से भी मप्र शासन ने 12126.96 लाख रुपए खर्च किए हैं। इसके बावजूद अब इन्हीं जंगलों को खदानों के लिए नष्ट किया जा रहा है। बीते 10 साल में मध्य प्रदेश के वनक्षेत्रों में करीब 2 लाख करोड़ रूपए की कीमत का अवैध उत्खनन किया गया है, और अभी भी जारी है। माफिया ने बना दीं गहरी खाइयां प्रदेश में राजधानी भोपाल हो या गुना, शिवपुरी या ग्वालियर, मुरैना का क्षेत्र माफिया ने हर जगह जमीन को खोदकर गहरी खाइयां बना दी हैं। इन क्षेत्रों में वर्षों से शहर और इसके आसपास मिट्टी व मुरम खनन का कारोबार चल रहा है। लेकिन न अफसरों को चिंता है और न ही जनप्रतिनिधियों को। खास बात यह है कि कई शहरों की सीमा में एक भी मुरम खदान खनिज विभाग की ओर से स्वीकृत नहीं की गई है। लेकिन हर रोज सैकड़ों ट्रॉली मुरम सड़क मरम्म्त कार्य, निजी निर्माण में डाली जा रही है। स्थिति यह हो गई है कि अवैध खनन के चलते यह जमीन तालाब में तब्दील हो गई है। जिसमें आए दिन एक न एक मौत का मामला सामने आता है। खनिज विभाग के एक आला अफसर की माने तो बुंदेलखंड के हालात तो प्रदेश के आदिवासी जिलों से भी ज्यादा बुरे हैं। इन क्षेत्रों में गरीब आदिवासियों की जमीन पर अवैध खनन किया जा रहा है। प्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा नदी के किनारे जंगलों का बेरहमी से कत्लेआम हुआ है। द्यभोपाल से राजेश बोरकर
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