03-Oct-2016 10:28 AM
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महानदी के पानी को लेकर छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच जारी विवाद में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती की मध्यस्थता भी कोई काम नहीं कर पायी। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री अपने-अपने तर्कों के साथ अड़े हुए हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने ओडिशा की उस मांग को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें महानदी जल विवाद का समाधान निकलने तक छत्तीसगढ़ से महानदी पर निर्माणाधीन सभी प्रोजेक्टों को बंद करने के लिए कहा था। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा कि ओडिशा को ओर से खड़ा किया जा रहा विवाद पूरी तरह अनावश्यक है। छत्तीसगढ़ महानदी का मात्र 15 फीसदी ही पानी लेता है। वहीं, छत्तीसगढ़ के तीखे तेवर से नाराज ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कहा कि विवाद के समाधान तक प्रोजेक्ट बंद करने की बात भी छत्तीसगढ़ ने नहीं मानी है।
दरअसल, दोनों प्रदेशों में विवाद यही है कि इस नदी के जल पर सबसे पहली जमींदारी किसकी है? छत्तीसगढ़ का दावा है कि नदी का उद्गम उनके राज्य से होता है इसलिए सबसे ज्यादा अधिकार उनका है। ओडिशा सरकार का कहना है कि नदी का जल सारंगढ़ से होकर संबलपुर में निर्मित किए गए हीराकुंड में स्वाभाविक ढंग से पहुंचता है तो जल पर उनका भी स्वाभाविक अधिकार है। बीजद सरकार के प्रवक्ता डीएस मिश्रा का आरोप है कि महानदी पर बेतरतीब ढंग से बैराज बन रहे हैं जिसके चलते ओडिशा के लिए जल बचने की संभावना खत्म हो गई है, जबकि छत्तीसगढ़ के जल संसाधन विभाग के अफसरों का कहना है कि बारिश का पानी समुद्र में बह जाता है सो उसे रोकने में कोई बुराई नहीं है। कौन सही हैं और कौन गलत। इस द्वंद्व के बीच यह सवाल कहीं पीछे छूट गया है कि नदी तट पर जीवन यापन करने वाले किसानों और मछुआरों का क्या होगा?
फोरम फॉर पालिसी डायलाग ओन वाटर कांफ्लिक्ट्स इन इंडिया नाम की एक संस्था ने एक शोध के बाद यह तथ्य सामने रखा है कि दो राज्यों की आपसी टकराहट के चलते नदी के लगातार बिगड़ रहे स्वरूप पर बहस अचानक बंद हो गई है जबकि महानदी मौत के मुहाने पर खड़ी कर दी गई है। नदी का प्राकृतिक बहाव बिगड़ा है और उसके जल स्तर में गिरावट देखने को मिल रही है। इतना ही नहीं जो जल उद्योगों को बेचा जा रहा है उसके चलते प्रदूषण का खतरा और भी बढ़ गया है। संस्था के अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण से लेकर ओडिशा के संबलपुर तक नदी के किनारे सब्जी-भाजी और कलिन्दर (तरबूज) की पैदावर करने वाले लगभग बीस हजार किसान-मछुआरे प्रभावित हुए हैं।
महानदी का जल विवाद 32 साल पुराना है। छत्तीसगढ़ जब अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा था तब 1983 में पहली बार जल के बंटवारे पर विवाद की स्थिति बनी थी। मध्य प्रदेश के तात्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और ओडिशा के मुख्यमंत्री जेबी पटनायक ने संयुक्त नियंत्रण बोर्ड के गठन पर जोर दिया था, लेकिन अब तक इस बोर्ड का गठन नहीं हो पाया है। हालांकि हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ ने साफ किया है कि अगर ऐसा कोई बोर्ड गठित होता है तो वह समर्थन करेगा। राजनीतिक हलको में यह भी कहा जा रहा है कि ओडिशा में संपन्न होने वाले पंचायत चुनाव के बाद शायद इस बात पर ध्यान दिया जाए कि बोर्ड का गठन कैसे और किस तरीके से होगा। जल संसाधन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कहते हैं, महानदी को लेकर छत्तीसगढ़ का नजरिया पारदर्शी है। सरकार पहले भी ओडिशा को पत्र लिखकर पूरी जानकारी दे चुकी है, मगर ओडिशा सरकार ही बातचीत से कतरा रही है।
नदी की मौत के लिए बनी योजना
अभी हाल के दिनों में देशभर के जल विशेषज्ञ छत्तीसगढ़ की राजधानी में जुटे तो उन्होंने माना कि उद्योगों को लाभ पहुंचाने के लिए जो बैराज बनाए गए हैं उसने नदी के स्वरूप को काफी बदल डाला है। बैराजों की वजह से नदी का प्राकृतिक बहाव कमजोर हो गया है। प्रसिद्ध जल विशेषज्ञ श्रीपाद अधिकारी कहते हैं, विवाद के दौरान नदी पर होने वाले प्रदूषण के मसले को नजरअंदाज कर दिया गया है। दोनों सरकारें इस मसले पर बातचीत करने को तैयार नहीं है कि बड़े पैमाने पर उद्योगों को दिए जाने वाले जल से नदी कैसे और किस तरह से दम तोड़ रही है। दोनों सरकारों ने महानदी की मौत के लिए योजनाबद्ध ढंग से सहमति दे दी है और उस पर बड़ी चालाकी से अमल कर रही है। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला का मानना है कि महानदी का विवाद केवल और केवल औद्योगिक घरानों को उपलब्ध कराए जाने वाले जल के चक्कर में उलझा दिया गया है। छत्तीसगढ़ में 70 हजार मेगावाट का बिजली घर लगाने का लक्ष्य रखा गया है तो ओडिशा में 55 से 60 हजार मेगावाट का संयंत्र लगाया जाना है।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला