03-Oct-2016 10:26 AM
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बुंदेलखंड की व्यथा ही कुछ ऐसी है कि वह कम होने का नाम नहीं ले रही है। इस समय बुंदेलखण्ड में हर तरफ पानी ही पानी है। यानी खेती के लिए अच्छा माहौल, लेकिन क्षेत्र में लोगों के पलायन के बाद यहां अवैध उत्खनन जोरों पर है। उत्तरप्रदेश में चुनावी माहौल के बीच बुंदेलखण्ड में अवैध उत्खनन को लेकर माहौल गर्म है। महोबा से करीब 10 किमी झांसी-मिर्जापुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलने के बाद सड़क के दोनों किनारों पर दिखने वाले हरे-भरे पेड़ अचानक सफेद रंग में तब्दील हो जाते हैं। वातावरण में एक धुंध-सी दिखने लगती है जो यह संकेत देती है कि हम महोबा के सबसे बड़े ब्लॉक कबरई की सीमा में दाखिल हो रहे हैं। अपनी पहाडिय़ों के लिए जाना जाने वाला कबरई इलाका पूरे बुंदेलखंड में हो रहे अवैध खनन से सबसे ज्यादा छलनी हुआ है।
इस इलाके की सीमा पर सड़क के दाहिनी ओर गुगौरा चैकी गांव के आसपास हो रहे पत्थर के खनन से निकलने वाली गर्द से ढका हुआ है। गांव से गुजरने वाली काले तारकोल की सड़कें सफेद पड़ चुकी हैं। झोपडिय़ों के खपरैल पर भी सफेद धूल की परत है। ऐसी ही एक झोपड़ी में रहने वाले 80 वर्षीय कालका प्रसाद पिछले दस सालों से टीबी की बीमारी से पीडि़त हैं। इसी बीमारी से पिछले साल उनकी पत्नी भी चल बसी थीं। जानलेवा धूल के चलते दो बेटों का भरा-पूरा परिवार गांव छोड़कर महोबा में रह रहा है।
गांव से होते हुए कुछ दूर चलने पर अवैध खनन के विकराल रूप के दर्शन होते हैं। यहां कबरई की प्रसिद्ध डहर्रा की पहाडिय़ां हैं, जिन्हें खनन माफियाओं ने पाताल तक खोद डाला है। डहर्रा ही नहीं, इसी महोबा-हमीरपुर रोड पर थोड़ा आगे चलते ही मटौंध और कबरई की पहाडिय़ां भी अवैध खनन के चलते छलनी हो चुकी हैं। खनन विभाग के मुताबिक, पूरे कबरई इलाके में 50 से अधिक छोटी-बड़ी पहाडिय़ां हैं, जो अवैध खनन के चलते अपना अस्तित्व खोने की कगार पर हैं।
अवैध खनन की आंच सरकार तक पहुंचने की आशंका को देखते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सरकार के सबसे विवादास्पद खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को बर्खास्त कर दिया। हालांकि एक बड़ा सवाल यह भी खड़ा हुआ है कि नदियों में अवैध बालू खनन की सीबीआई जांच क्या खनन माफियाओं के हौसले पस्त कर पाएगी? पूरे प्रदेश में पत्थर की 3,800 खदानें हैं, जो जांच की जद में नहीं और यहां अवैध खनन अभी भी बदस्तूर जारी है।
पिछले साल अक्टूबर में हाइकोर्ट ने रमेश मिश्र के सभी 49 पट्टों पर हो रहे खनन को रोकने का आदेश दिया। इस फैसले को नजीर मानते हुए पूरे प्रदेश में खनन में लगे लोगों ने अपने प्रतिद्वंदियों के खिलाफ हाइकोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर दीं। हाइकोर्ट ने सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़कर सुनवाई की और 28 जुलाई को पूरे प्रदेश में अवैध बालू खनन की सीबीआई जांच का आदेश दे दिया। असल में यूपी के हर जिले में अवैध खनन का एक सिंडिकेट काम कर रहा है। खनन विभाग के एक अनुमान के मुताबिक, पूरे प्रदेश में इसी सिंडिकेट की निगरानी में हर साल करीब 12 से 15 करोड़ ट्रक माल की अवैध ढुलाई होती है। वैध और अवैध खनन का सबसे बड़ा अड्डा बुंदेलखंड है और यहां बालू के पट्टा खदानों की संख्या 100 से ज्यादा है। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बाकायदा अवैध बालू खनन के रंगीन फोटो और वीडियो भी सौंपे हैं। खास बात यह भी है कि इनमें से ज्यादातर वे इलाके हैं, जहां के बारे में स्थानीय डीएम और खनन अधिकारी ने कोर्ट में शपथ पत्र के जरिए अवैध खनन न होने की जानकारी दी है। क्या इसका नतीजा यह निकाला जाए कि अधिकारी भी इसमें शामिल हैं? सीबीआई अधिकारियों और खनन माफियाओं के बीच लिंक तलाशने की कोशिश कर रही है।
वर्चस्व की जंग का परिणाम
खनन पर वर्चस्व के लिए माफियाओं के बीच छिड़ी जंग का नतीजा हाइकोर्ट से सीबीआई जांच के आदेश के रूप में सामने आया है। हमीरपुर में बालू पट्टा धारक विजय द्विवेदी और बालू खनन में एकाधिकार रखने वाले समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य रमेश मिश्र के बीच अरसे से प्रतिद्वंदिता है। मिश्र को निशाने पर रखते हुए द्विवेदी ने अपने करीबी विजय बहादुर सिंह से इलाहाबाद हाइकोर्ट में अवैध खनन के खिलाफ जनहित याचिका दायर करवाई।
हाईकोर्ट के निर्देष के बाद मचा सियासी बवाल
हाइकोर्ट ने अवैध बालू खनन की जांच सीबीआई को क्या सौंपी, खनन माफिया बचाव के लिए नए सियासी ठिकाने तलाशने निकल पड़े हैं। बांदा पूरा शहर इस वक्त बीजेपी नेताओं की होर्डिंग से पटा है। बालू खनन में लगे विशंभर सिंह उर्फ लल्लू सिंह पहले सपा में थे। पिछले साल जब अवैध खनन के खिलाफ हाइकोर्ट में याचिकाएं दाखिल हुईं तो नतीजों को भांपकर उन्होंने कमल थाम लिया और जिला पंचायत सदस्य बने।
-सिद्धार्थ पाण्डे