सोने में उतार-चढ़ाव से दहशत
30-Apr-2013 11:33 AM 1234791

सोना भी दहशत पैदा करता है। इसके दाम बढ़े तो जवान बेटे-बेटियों के माता-पिता चिंतित हो उठते हैं और दाम घटे तो सोने से लकदक रहने वाले करोड़ पतियों के चेहरे की हवाइयां उडऩे लगती हैं। निवेश के तमाम विकल्प होने के बावजूद भारत में आज भी सोने को सर्वाधिक सुरक्षित निवेश समझा जाता है। एक दृष्टि से देखा जाए तो यह सच भी है। पिछले एक दशक में सोने के दामों ने जो झलांग लगाई है वैसी छलांग किसी और कीमती धातु या अन्य सामग्री ने नहीं लगाई। 2003 में सोना 5700 रुपए प्रति 10 ग्राम मिला करता था। जो अब बढ़कर हाल ही में 29 हजार रुपए तक पहुंच चुका था, लेकिन बाद में घटकर 26 हजार तक डाउन हुआ और अब 28 हजार के करीब स्थिर है। भारत भले ही सोने का सबसे बड़ा खरीददार हो लेकिन सोने के दामों को नियंत्रित करना भारत के वश में नहीं है। इसका कारण यह है कि सोने का उत्पादन भारत में अन्य देशों के मुकाबले कम होता है और बहुत से देश ऐसे हैं जिन्होंने सुरक्षित धातु के रूप में सोने के भण्डार जमा कर रखे हैं। भारत सोने के भंडार जमा करने के मामले में बहुत पीछे है। हालांकि जेवरों की दृष्टि से देखा जाए तो यहां के लोगों के पास जितना सोना है उतना शायद ही विश्व के किसी अन्य देश में हो। इसके बाद भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जब-जब अनिश्चितता का वातावरण पैदा होता है भारतीय बाजारों में उथल-पुथल मच जाती है। वैसे यह सच है कि 1950 के बाद से लेकर अब तक सोने के दाम कभी नहीं गिरे। 1950 में सोना 99 रुपए प्रति 10 ग्राम मिला करता था और अब उसकी कीमत 29 हजार रुपए प्रति 10 ग्राम है। इतना भारी अंतर इस कीमती धातु की लोगों के बीच चमक का प्रत्यक्ष उदाहरण है। लेकिन एक कारण यह भी है कि बहुत से देशों में सोना तरलता का महत्वपूर्ण आधार है। दुनिया की अर्थव्यवस्था में ज्यों ही तेजी आएगी सोने के दाम स्थिर होने के साथ-साथ गिर भी सकते हैं। क्योंकि तब निवेशक शेयर बाजार में निवेश करने लगेंगे और वह समय अब आ चुका है।
यह अचानक नहीं है कि दुनिया भर के शेयर बाजारों की स्थिति सुधरने लगी है। निवेश मांग न होने के कारण वायदा बाजार में सोने की पूछ स्वाभाविक ही कम होने लगी है। दूसरे, आर्थिक मुश्किलों में फंसे यूरोपीय देश अपना स्वर्ण भंडार बेचकर यूरो खरीदने में लगे हैं। साइप्रस ने शुरुआत कर दी है, देर-सबेर इटली और दूसरे देश भी इस रास्ते पर चल सकते हैं।
यानी फिलहाल विश्व बाजार में सोने की बिकवाली ज्यादा हैं, जबकि खरीदार कम होते जा रहे हैं। जो लोग सोने को लगातार ऊपर जाते देख हताश थे, उनके लिए यह अच्छी खबर है। सोने के भाव गिरते रहें, तो वह जरूरतमंदों की पहुंच में आएगा। अब वे लोग भी गाढ़े वक्त में काम आने के लिए थोड़ा सोना खरीदने का साहस कर पाएंगे, जो ऊंचे भाव के कारण उम्मीद छोड़ चुके थे। लेकिन केवल उनके लिए नहीं, सोने का गिरना विश्व अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ी राहत की तरह है।
अमेरिका के साथ-साथ यूरोप की अर्थव्यवस्था भी अगर गति पकड़ती है, तो जल्दी ही तस्वीर बदलेगी। नतीजतन हमारे यहां भी उद्योगों में मांग बढ़ेगी और निर्यात बढऩा शुरू होगा। इससे हमारी आर्थिक विकास दर से जुड़ी आशंकाओं को विराम लगेगा। सोने में निवेश घटने के साथ ही अपने यहां इसकी आयात मांग कम होगी, नतीजतन धीरे-धीरे चालू खाते का घाटा भी कम होगा। लेकिन सोने के दाम घटने से यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकते कि उसकी चमक अब वाकई खत्म हो गई है। इतिहास बताता है कि तलहटी पर पड़ा सोना भी कई बार शिखर छू  चुका है। दुनिया की चमकीली धातु सोना हर किसी को आकर्षित करती है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इसकी चमक में कुछ ज्यादा ही फीकापन आया है।
डॉ. माया राठी

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