भाजपा में मतभेद बनाम मनभेद
17-Sep-2016 07:13 AM 1234763
क्या मध्य प्रदेश में भाजपा कांग्रेस की राह पर चल रही है। यानी पार्टी में  विभीषणÓ पाल रही है! ये सवाल इन दिनों मप्र की राजनीतिक वीथिका में ही नहीं बल्कि देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। सवाल यह भी उठ रहा है कि पार्टी में मतभेद है या नेताओं के बीच मनभेद। यह अभी किसी की समझ में नहीं आ रहा है। प्रदेश भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं की तरफ से आए बयान बताते हैं कि पार्टी के भीतर मतभेदÓ बनाम मनभेदÓ की जंग छिड़ी हुई है। मप्र की राजनीतिक फिजा में इन दिनों अलग-सा प्रलाप सुनाई दे रहा है। आलम यह है कि नेताओं के आलाप-प्रलाप से एक अजीबो-गरीब घमासान मचा हुआ है। इस समय इस राजनीतिक घमासान का केंद्र बिंदु है भाजपा। जी हां, वही भाजपा जिसका चाल, चेहरा और चरित्र सबसे अलग है। यानी समता, एकता, सहभागिता, सदाशयता की आधारशीला पर गठित इस पार्टी के नेताओं में अब सत्ता सुंदरी के लिए आपसी होड़ नजर आने लगी है जो 2002-03 में कांग्रेस में नजर आती थी। कांग्रेस में तो यह होड़ अभी भी बरकरार है और अब भाजपाई भी उसी की राह पर चल पड़ी है। मध्य प्रदेश में 13 साल से सत्ता सुख भोग रही भाजपा के एक विधायक हैं, पन्नालाल शाक्य। गुना विधानसभा क्षेत्र से आते हैं। ये खुद ज्यादा चर्चित हों न हों, इनका बयान जरूर सुर्खियां बटोर रहा है। शाक्य ने कहा था, मुझे पार्टी में रहते हुए विधायक बनने में 37 साल लग गए। जबकि बाहर से आने वाले लोग सीधे मंत्री बन रहे हैं। ऐसे लोग (भाजपा में) आते रहना चाहिए। हमें ऐसे विभीषणों की जरूरत है।Ó शाक्य का इशारा उन नेताओं की तरफ था, जो दूसरे दलों से आए हैं और लाल बत्ती का सुख भोग रहे हैं। दरअसल, भाजपा में आयातित नेताओं की तेज रफ्तार तरक्की, शाक्य जैसे पुराने भाजपाईयों की परेशानी का एक बड़ा कारण है। इसके अलावा एक और वजह, प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव के बयान से जाहिर हुई। भार्गव ने कहा, सरकार और पार्टी संगठन में जमीनी कार्यकर्ताओं की भारी उपेक्षा हो रही है। वे शिकायत करते हैं, लेकिन सुनवाई नहीं होती। इससे कई जगहों पर कार्यकर्ता मुखर हुए हैं और पार्टी को नुकसान हो रहा है। कार्यकर्ताओं का मान-सम्मान बरकरार नहीं रखा गया, उन्हें संतुष्ट नहीं किया गया, तो अगले चुनाव में पार्टी की हालत 2003 की कांग्रेस (तब 10 साल पुरानी कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार तीन चौथाई विधानसभा सीटें गंवाकर सत्ता से बाहर हो गई थी) जैसी हो जाएगी।Ó भार्गव 13 साल से राज्य सरकार में मंत्री हैं। उनका कद, ओहदा दोनों ज्यादा है। इसलिए उनके बयान ने शाक्य से ज्यादा सुर्खी बटोरी। काफी-कुछ इसी तरह के संदेश और संकेत पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के बयानों से भी जब-तब मिलते रहते हैं। शिव के राज-तंत्रÓ यानी मुख्यमंत्री शिवराज की सरकारी मशीनरी के खिलाफ एक और आवाज दिल्ली से भी चली लेकिन सुनी गई भोपाल में। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने ट्वीट करके कहा, जिस तरह तंत्र काम कर रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि मेट्रो 2018 तो क्या 2028 में भी नहीं आ पाएगी।Ó प्रदेश के सालाना जलसे, ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिटÓ, में किए गए निवेश के वादे और दावे सतही साबित होने पर भी कैलाश सवाल उठा रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह याद दिलाते हैं कि राज्य के उद्योग मंत्री रहते हुए विजयवर्गीय खुद इस आयोजन और इन वादों-दावों में सहभागी रहे हैं। पार्टी में उठे मतभेद और मनभेद के बीच संगठन ने नेताओं की जबान पर ताला लगाने की कोशिश की है। अब देखना यह है कि यह ताला काम करता है कि नहीं। क्योंकि पचमढ़ी में जब बेलगाम नेताओं पर लगाम कसने के लिए मंथन हो रहा था उसी दौरान ये सारे बयान सामने आए थे। सूचिता की मिसाल वाली भाजपा में जो प्रलाप सुनने को मिल रहा है, उससे यह साफ लगने लगा है कि पार्टी के भीतर घमासान है। यह घमासान चौथी पारी पर भारी न पड़ जाए। लेकिन ऊपर सब बेअसर जमीनी कार्यकर्ताओं की नाराजगी और बड़े नेताओं के असंतुष्ट सुरों का संगठन और सरकार में किसी पर कोई असर हो रहा है, ऐसा लगता नहीं। विजयवर्गीय के बयान पर बुधवार को ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान पलटवार सा करते दिखे। चौहान ने कहा, वे (विजयवर्गीय) जब से दिल्ली गए हैं, प्रदेश के बारे में कम सोचने-समझने लगे हैं। रही बात ट्वीट या बयानों की, तो इससे पार्टी पर नहीं, टिप्पणी करने वालों पर ही संकट आएगा।Ó इसी तरह, गौर के बयानों और असंतोष पर पहले ही शीर्ष स्तर से स्पष्ट किया जा चुका है कि उन्हें (गौर को) अब कोई गंभीरता से नहीं लेता। जबकि विधायक शाक्य के बयान पर सत्याग्रह ने सीधे प्रदेश के मंत्री संजय पाठक से बात की। उनका कहना था, इस दर्जे की टिप्पणियों (विभीषण वाली) का जवाब देकर मैं अपना स्तर कम नहीं करना चाहता। और जहां तक कार्यकर्ताओं के सम्मान का मसला है, तो दुनिया के किसी भी राजनीतिक दल में कार्यकर्ता को इतनी इज्जत नहीं मिलती होगी, जितनी भाजपा में मिलती है।Ó -भोपाल से अजयधीर
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