30-Apr-2013 11:24 AM
1234824
15 अप्रैल को दिल्ली के गांधी नगर से पांच वर्ष की गुडिय़ा लापता हो गई। बदहवाश पिता ने आसपास पता लगाया। गुडिय़ा को तलाशने की कोशिश की जब वह मासूम नहीं मिली तो पुलिस की
शरण में गया। पुलिस ने मामला दर्ज ही नहीं किया। बाद में जब पिता को एक गैरेज में कराहती दरिंदगी की शिकार हो चुकी गुडिय़ा मरणासन्न स्थिति में मिली तो वह फिर पुलिस के पास गया इस
बार पुलिस ने ही 2000 हजार रुपए की रिश्वत की पेशकश कर दी। कहा मुंह बंद रखो और इलाज कराओ। एक मासूम बच्ची का बचपन रौंदा जा चुका था और इस देश की राजधानी की पुलिस का यह रवैया था। इसके बाद तो मानो सारे देश में गुडिय़ाओं को रौंदने की घटनाओं की बाढ़ सी आ गई। मध्यप्रदेश, राजस्थान, असम, बिहार, उत्तरप्रदेश से लेकर देश के अनेक जिलों, कस्बों, गांवों से मासूम बच्चियों की चीत्कार सुनाई देने लगी। विडम्बना की बात तो यह थी कि देश में उस समय नवदुर्गा चल रही थी। छोटी-छोटी बच्चियों को तलाशकर उनके पैर धुलाकर कन्या भोजन कराया जा रहा था और उन्ही कन्याओं को दरिंदे रौंद रहे थे। कितना पाखंड कर रहा था यह देश। एक बार नहीं वर्ष में दो-दो बार यह पाखंड दोहराया जाता है। लोग उपास रखते हैं, भूखे रहते हैं, नंगे पैर रहते हैं, कठोर साधनाओं का दिखावा करते हैं, लेकिन उन्हीं लोगों के बीच के कुछ दरिंदे मासूम बच्चियों को रौंद डालते हैं।
दिल्ली की उस घटना के बाद एक बार फिर जनसैलाब संसद से लेकर राजपथ तक उमड़ पड़ा किंतु बेशर्म राजनीतिज्ञों और ढीठ हो चुकी पुलिस को न तो कोई कदम उठाना था न ही उन्होंने कोई कदम उठाने की जुर्रत की। बल्कि दर्द से तड़पती उस बिटिया के लिए आवाज उठाने वालों को थप्पड़ मारने का पराक्रम जरूर दिखाया और 17 साल की बीनू रावत को कान में थप्पड़ मारकर एसीपी स्तर के एक अधिकारी ने लहुलुहान कर दिया। उधर उत्तर प्रदेश में भी बेटियों के हक की मांग कर रही 60 वर्षीय वृद्धा को घसीट कर मारा गया। जहां पुलिस अक्षम्य हो, अकर्मण्य हो, भ्रष्ट हो, चरित्र हीन हो और उसके साथ-साथ पौरुष हीन भी हो वहां ऐसी घटनाएं नहीं देखने को मिलेंगी तो फिर क्या दिखाई देगा। यही कारण है कि बलात्कार के इन पाश्विक प्रकरणों की बार-बार पुनरावृत्ति हो रही है। बड़ी महिलाओं और वयस्क बेटियों ने इन दरिंदों की खूंखार नजरों को पहचान कर थोड़ी सतर्कता बरतना शुरू कर दी है तो अब इनकी नजर उन मासूम बच्चियों पर है जिनके बारे में कोई कल्पना ही नहीं कर सकता कि इनका बलात्कार भी किया जा सकता है। सिर्फ बलात्कार नहीं बल्कि ऐसी पाश्विकता कि जिसका वर्णन करते ही आत्मा दहल जाती है। दिल्ली में उस बेटी के साथ जो कुछ हुआ वह क्रूरता की पराकाष्ठा ही कहलाएगी। उसके नाजुक अंगों में मोमबत्ती और बोतल डाल दी गई। जरा कल्पना कीजिए कैसे सहा होगा उसने ये दर्द और कैसे उन दरिंदों ने उस बचपन को मसलते वक्त जरा भी दया नहीं दिखाई होगी। क्या हो गया है हमारे समाज को? पुलिस तो बदनाम है ही पुलिस का चरित्र गुलाम भारत का चरित्र है। जहां जनता को नियंत्रित करने के लिए अंग्रेजों ने पुलिस फोर्स का गठन किया था। पुलिस में न तो व्यक्ति की स्वतंत्रता की कद्र है और न ही यह सुनिश्चित करने की काबिलियत कि एक स्वतंत्र देश में नागरिकों को किस तरह की सुरक्षा दी जानी चाहिए। इसलिए पुलिस से उम्मीद करना बेमानी है। लेकिन समाज को आइना दिखा रही हैं ये घटनाएं। दिल्ली की घटना के बाद ऐसी ही कई दरिंदगी की घटनाएं सुनाई पड़ी। मध्यप्रदेश में सिवनी में एक बिटिया के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ जिसके चलते वह कोमा में चली गई। बलात्कारों के इस सैलाब में मानवता चीत्कार करती दिखाई दी। दिल्ली के तिलक नगर में 8 साल की मासूम बच्ची से उसका पिता ही बलात्कार करता था। गुडग़ांव में पार्किंग में खड़ी गाड़ी में सो रही तीन मासूम बच्चियों से दरिंदे ने बलात्कार किया। फरीदाबाद में एक लड़की को अगवा करके बलात्कार किया गया। 24 घंटे के भीतर बलात्कार की 9 घटनाएं यह तस्वीर है हमारे दिल्ली की। दिल्ली पुलिस के कमिश्नर को यह आंकड़े बताए गए तो उन्होंने साफ कहा कि पुलिस बलात्कार नहीं रोक सकती। समाज को बलात्कार रोकने होंगे। कमिश्नर गलत नहीं बोल रहे थे। उनकी बात में कहीं न कहीं सच्चाई थी, लेकिन कमिश्नर के पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि जो पिता अपनी बेटी के साथ हुई दरिंदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने आया था उसे 2000 रुपए की रिश्वत देकर मुंह बंद रखने की सलाह देना कहां तक उचित है। पुलिस मीडिया में अपनी बदनामी से इतनी ही डरती है तो फिर मामलों की सही तरीके से तफ्तीश क्यों नहीं करती। उस मासूम बेटी गुडिय़ा के बचपन को रौंदने वाले आरोपी मनोज और प्रदीप में से एक ने कुछ वर्ष पूर्व ही एक लड़की के साथ बलात्कार किया था बाद में जब मामला पुलिस तक पहुंचने की बात हुई तो उसके घरवालों ने पीडि़ता से उसकी शादी कराकर मामला वहीं रफा-दफा कर दिया। यदि उस वक्त उसे सजा हो जाती तो शायद गांधी नगर की गुडिया के साथ दरिंदगी करने की उसकी हिम्मत नहीं होती पर उसके घरवालों ने ही उसे शह दी नतीजा सामने आ गया। आज वे घरवाले ही उसके लिए फांसी की मांग कर रहे हैं। लेकिन उसने जो कुछ किया और जिस तरह उस मासूम बचपन को कुचल डाला उसकी भरपाई फांसी देने से भी नहीं होने वाली। पर फांसी देना आवश्यक है। संसद में हाल ही में जो कठोर कानून बलात्कार के खिलाफ लाया गया है उसमें कठोर सजा देने का प्रावधान तो है लेकिन छोटी बच्चियों के साथ दरिंदगी करने वालों को अनिवार्य रूप से फांसी की सजा दी जानी चाहिए ताकि अपराधियों में भय उत्पन्न हो सके। अभी तो वे बेखौफ हैं। उत्तरप्रदेश में एक 15 वर्षीय बच्ची को रास्ते में रोककर कुछ युवकों ने उसके साथ बलात्कार किया और पास के जंगल में फेककर चले गए। इस वारदात के 4 दिन बाद मुकदमा दर्ज किया गया। वह भी एक एनजीओ के दबाव बनाने के बाद। पुलिस की अकर्मण्यता का एक और उदाहरण।
बलात्कार की घटनाओं के बाद पुलिस के बर्बर और मूर्खतापूर्ण रवैये में कोई बदलाव देखने में नहीं आया है। वे बलात्कार के प्रकरणों को अभी भी गंभीरता से नहीं लेते। उड़ीसा के एक गांव में एक छोटी सी बच्ची से बलात्कार किया गया। पुलिस ने बड़ी मुश्किल से मामला दर्ज किया। यह 7 वर्ष की बच्ची परिजनों के साथ नाटक देखने गई थी। लघुशंका के लिए बाहर निकली तो उसे दबोच लिया गया और बलात्कार करके फेक दिया गया। बाद में बच्ची जंगल से अचेत अवस्था में बरामद हुई। इस घटना से क्रोधित किसानों ने पुरी-कोणार्क मार्ग पर चक्काजाम कर दिया। लोग आक्रोश प्रकट करने के सिवा और कर भी क्या सकते हैं। कारण यह है कि समाज में जागरुकता के प्रसार के लिए सरकार के द्वारा कोई ठोस कदम उठाया नहीं जा रहा है। सरकारें कानून बनाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं, लेकिन सारे देश में पाठ्यक्रमों से लेकर हर स्तर पर बदलाव की आवश्यकता है, यह सरकार को समझ में नहीं आता। इस तरह की दर्दनाक घटनाओं को अंजाम देने वाले मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार लोग हैं जिन्हें पहचान कर सही समय पर इलाज देने की आवश्यकता है पर इस तरह की पहल इतनी घटनाओं के बाद भी होती दिखाई नहीं दे रही। बल्कि ऐसी घटनाओं के बाद असंवेदनशील और निरर्थक बयान जरूर सुनाई पड़ते हैं। मध्यप्रदेश के शहरी प्रशासन और विकास राज्यमंत्री मनोहर ऊंटवाल ने कहा कि राज्य की आबादी साढ़े सात करोड़ से ज्यादा है। हर साल सिर्फ 45 सौ दुष्कर्म हो रहे हैं। यह आबादी के हिसाब से कम ही हैं। ऊंटवाल ने यह बयान जिस समय दिया उस समय मध्यप्रदेश में ही तीन बेटियों से बलात्कार किया जा चुका था।
दिल दहलाने वाले आंकड़े
* दिल्ली गैंगरेप के बाद बड़ा सवाल ये है कि क्या इस घटना के बाद किसी के साथ कोई बलात्कार नहीं हुआ..? या किसी महिला की अस्मत इसके बाद नहीं लूटी गई..? दिल्ली पुलिस की वार्षिक
रिपोर्ट के मुताबिक साल 2012 में राजधानी में 706 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए।
* गौरतलब है कि 2012 के बलात्कार आंकड़ें 2011 के मुकाबले 24 प्रतिशत ज़्यादा थे। साल 2011 में दिल्ली में बलात्कार के 572 मामले सामने आए थे।
* एनसीआरबी के 1953 से लेकर 2011 तक के अपराध के आंकड़े चौंकाने वाले हैं।
* 1971 के बाद से देश में बलात्कार की घटनाएं 873.3 फीसदी तक बढ़ी हैं।
* 1971 में जहां देशभर में 2 हजार 487 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए वहीं 2011 में 24 हजार 206 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए।
* इसके अलावा उन मामलों की फेरहिस्त भी काफी लंबी है जिनकी शिकायत थाने तक पहुंची ही नहीं या पहुंचने ही नहीं दी गई..!
* बलात्कार के मामलों में 40 साल में करीब 800 फीसदी तक का इजाफा हैरान करने वाला है।
* देश की विभिन्न अदालतों में बलात्कार एवं यौन अपराध से जुड़े 24,117 मामले लंबित है जिसमें सबसे अधिक 8215 मामले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हैं।
* विधि एवं न्याय मंत्री अश्विनी कुमार ने कहा कि 30 सितंबर 2012 तक देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में बलात्कार से जुड़े 23,792 और उच्चतम न्यायालय में 325 मामले लंबित है।
* 2009 से 11 नवंबर 2012 तक तीन वर्ष के दौरान बलात्कार से जुड़े 8,772 मामलों का निपटारा किया गया है।
* सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में बलात्कार से जुड़े 8215 मामले, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में 3,758 पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में 2,717, छत्तीसगढ़
उच्च न्यायालय में 1,533, उड़ीसा उच्च न्यायालय में 1,080, राजस्थान उच्च न्यायालय में 1,164 तथा बम्बई उच्च न्यायालय में 1,009 मामले लंबित हैं।
* दिल्ली उच्च न्यायालय में बलात्कार से जुड़े 924 मामले लंबित हैं। झारखंड उच्च न्यायालय में बलात्कार से जुड़े 822, पटना उच्च न्यायालय में 797, केरल उच्च न्यायालय में 420,
आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय में 269, कर्नाटक उच्च न्यायालय में 243, गुजरात उच्च न्यायालय में 230 मामले लंबित हैं।
* वहीं, मद्रास उच्च न्यायालय में 179, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में 177, गुवाहाटी उच्च न्यायालय में 174, जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में 28, कोलकाता उच्च न्यायालय में 27 और
उत्तराखंड उच्च न्यायालय में 26 मामले लंबित हैं।
* सिक्किम उच्च न्यायालय में बलात्कार से जुड़ा कोई मामला लंबित नहीं है।
कुमार सुबोध