17-Sep-2016 06:52 AM
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सत्ता का संचालन निश्चित रूप से आम आदमी के बस की बात नहीं है। सत्ता के लिए खास होना जरूरी है। दिल्ली की अरविंद केजरीवाल की सरकार को देखकर तो ऐसा ही लगता है। आम आदमी की पार्टी जितनी जल्दी सत्ता में आई थी उसका पतन भी उसी तेजी से हो रहा है। आलम यह है कि तथाकथित बुद्धिजीवियों की इस पार्टी के नेताओं में बुद्धि किसी के पास नजर नहीं आ रही है। इसका परिणाम यह हुआ है कि करीब डेढ़ साल के शासनकाल में ही आप के 14 विधायक किसी न किसी विवाद कि शिकार हो गए हैं। अभी-अभी कर्नल देवेंद्र सहरावत को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया है। यही नहीं दिल्ली हाईकोर्ट ने आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त करने का आदेश रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद क्या अरविंद केजरीवाल अपने 21 विधायकों की सदस्यता को बचा पाएंगे?
दिल्ली में कुल 70 विधायक हैं, जिनमें से 10 फीसदी ही मंत्री बन सकते हैं, जिसके अनुसार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फरवरी, 2015 में छह मंत्रियों के साथ सरकार बनाई। सत्ता-सुख के दबाव के फलस्वरूप एक महीने के भीतर ही केजरीवाल ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त कर दिया, जिसके लिए उपराज्यपाल की मंजूरी भी नहीं ली गई। दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती मिलने पर विधानसभा द्वारा संसदीय सचिव पद को लाभ के दायरे से बाहर रखने के लिए आनन-फानन में जून, 2015 में कानून पारित कर दिया गया, जिसे राष्ट्रपति ने मंजूरी देने से इंकार कर दिया। इसके बाद हाईकोर्ट द्वारा इन नियुक्तियों को गैर-कानूनी घोषित होना ही था।
मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की तरफ से कई अजब दलीलें दी गईं, जो राजनीतिक तौर पर स्वीकार्य होने के बावजूद कानूनी दृष्टि से लचर थीं। दिल्ली की पूर्व सरकारों यथा शीला दीक्षित तथा मदनलाल खुराना द्वारा संसदीय सचिवों की नियुक्ति के दृष्टांत को हाईकोर्ट ने मानने से इंकार कर दिया, क्योंकि उन नियुक्तियों के लिए उपराज्यपाल द्वारा सहमति व्यक्त की गई थी। बीजेपी-शासित हरियाणा, गुजरात और राजस्थान में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के तर्क को भी नहीं माना गया, क्योंकि अन्य राज्यों में संसदीय सचिव पद को लाभ के पद से बाहर रखने के लिए कानून पारित किए गए हैं, जो वर्तमान नियुक्तियों से पहले नहीं किया गया था।
दिल्ली सरकार के अनुसार संसदीय सचिवों को कोई भी आर्थिक लाभ नहीं दिया जा रहा तथा इन विधायकों के माध्यम से विकास कार्यों को गति मिल रही है। आरोपों के अनुसार इन 21 संसदीय सचिवों को स्टाफ, कार, सरकारी ऑफिस, फोन, एसी तथा इंटरनेट आदि की सुविधाएं दी जा रहीं थी। दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद इन विधायकों से संसदीय सचिव पद के लाभ की वसूली भी हो सकती है।
सांसद और विधानसभा सदस्य अपनी जिम्मेदारियों को ठीक तरह से निभाएं, इसके लिए उन पर तमाम बंदिशें लगी हैं। कानून के अनुसार लाभ का पद लेने पर विधायक और सांसदों की सदस्यता रद्द हो सकती है। ऐसे में अब यह देखने लायक होगा की केजरीवाल अपने विधायकों को किस तरह इस संकट से निजात दिलाते हैं। या कहीं ऐसा न हो जाए कि वे नए संकट में फंस जाए।
दलील के दलदल में आशुतोष
संदीप कुमार की सीडी पर आशुतोष ने सवाल उठाया था, दो बालिग लोगों का रजामंदी से सेक्स करना क्राइम कैसे हो सकता है? हालांकि, आशुतोष का ये ब्लॉग संदीप पर बलात्कार का आरोप लगने और उन्हें जेल भेजे जाने से पहले लिखा था। आशुतोष ने सीडी के बहाने इंसान की मूलभूत जरूरतों को लेकर खूब तर्क पेश किये, सेक्स हमारी मूल प्रवृत्ति का हिस्सा है। जैसे हम खाते हैं, पीते हैं और सांस लेते हैं, ठीक उसी तरह से सेक्स भी प्राकृतिक क्रिया है। अपनी दलील को मजबूत और मसालेदार बनाने के लिए आशुतोष ने गांधी, नेहरू, वाजपेयी और जॉर्ज फर्नांडिस के नाम भी लिये-और लिखा, भारत का इतिहास ऐसे नेताओं और नायकों के उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिन्होंने समाज के बंधनों के इतर जाकर अपनी इच्छाओं की पूर्ति की। एडविना माउंटबेटन के साथ नेहरू के रिश्ते के बारे में पूरी दुनिया जानती है। नेहरू का आखिरी सांस तक एडविना से लगाव बना रहा। क्या यह पाप था? नेहरू पर विस्तार से प्रकाश डालने के बाद आशुतोष ने गांधीजी को भी नहीं छोड़ा। लेकिन आशुतोष की ये सारी दलीलें मिट्टी में मिल गईं जब सीडी वाली महिला ने संदीप पर रेप का केस कर दिया और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। यही नहीं आशुतोष भी अपनी दलील के दलदल में फंस गए हैं और महिला आयोग ने उन्हें भी नोटिश थमा कर जवाब मांगा है।
-इन्द्र कुमार