राहुल की खाट पंचायत
17-Sep-2016 06:42 AM 1234813
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की खाट पंचायत ने भाजपा, बसपा और सपा के होश उड़ा दिया है। राहुल ने उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के रुद्रपुर के दूधनाथ बाबा मंदिर मैदान से खाट पंचायत की शुरूआत की है जो प्रदेश के पूर्वांचल इलाके में 25 दिनों तक चलेगी। हालांकि इनदिनों खाट पंचायत की सबसे अधिक चर्चा देवरिया और मिर्जापुर में सभा के बाद खाट लूटने की घटना की हो रही है। लेकिन कुछ भी हो  इस रणनीति ने कांग्रेस को चर्चा में ला दिया है। 27 साल से यूपी की सत्ता में बाहर रही कांग्रेस को उम्मीद है कि वह अपने इस अभियान से किसानों और गरीबों के बीच अपनी पैठ बना सकती है। नौ अक्टूबर तक चलने वाली देवरिया से दिल्ली तक की इस यात्रा में राहुल गांधी करीब पचीस हजार किसानों से सीधे मुलाकात करेंगे। राहुल इस यात्रा के दौरान न सिर्फ किसानों के साथ चर्चा करेंगे, बल्कि उनकी सबसे बड़ी चिंता यानी कर्ज की समस्या पर भी मरहम लगाने की कोशिश करेंगे। राहुल ने कहा है कि देवरिया से दिल्ली तक 2500 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली इस यात्रा का लक्ष्य सरकारी संसाधनों में गरीबों, किसानों और मजदूरों के हक को सुरक्षित करना है। लेकिन जानकारों का कहना है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में चाय पर चर्चा करवा कर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचाने वाले प्रशांत किशोर अब राहुल गांधी की खाट पंचायत करवा कर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की वापसी करना चाहते हैं। लेकिन लोगों का कहना है कि मोदी के पीछे एक विकास पुरूष की छवि थी, जबकि राहुल के पीछे विफलताओं का पहाड़ है। इसमें कोई विवाद नहीं कि कांग्रेस इस वक्त अपने सबसे बुरे राजनीतिक दौर से गुजर रही है। देश से लेकर राज्यों तक हर जगह जनता द्वारा लगातार उसे खारिज होना पड़ा है। इन लगातार मिली विफलताओं से हताश कांग्रेस ने आगामी यूपी चुनाव के मद्देनजर सफल चुनावी रणनीतिकार माने जाने वाले प्रशांत किशोर की पीआर एजेंसी को यूपी में अपने प्रचार की जिम्मेदार सौंपी है। अब प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को यूपी के लोगों से जमीनी तौर पर जोडऩे के उद्देश्य से प्रेरित होकर अपनी रणनीतियों के क्रम में खाट पर चर्चा नामक एक संवाद कार्यक्रम की शुरुआत की, जिसमे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी खाट पर बैठकर लोगों से संवाद कर रहे हैं। लेकिन देवरिया और मिर्जापुर में हुए कार्यक्रम में लोगों की उपस्थिति कांग्रेस की अपेक्षानुसार नहीं रही, लेकिन मजे की बात ये हुई कि जितने भी लोग थे, उनमें से तमाम लोगों ने कार्यक्रम खत्म होते-होते खाट को लूट लिया। मतलब कि जिसके हाथ खाट लगी, वो उसे लेकर घर रवाना होने की फिराक में लग गया। इन सब में ऐसी भगदड़ मची कि कुछ खाटें टूटीं, कुछ लोग लेकर निकल गए और पूरे कार्यक्रम का बंटाधार हो गया। जिससे यह खाट पर चर्चा कार्यक्रम खाट पर खर्चा भर होकर रह गया। इसे लेकर तरह की कविताएं और चुटकुले सोशल मीडिया पर फैल रहे हैं। दरअसल, कांग्रेस को यह समझना और स्वीकारना चाहिए कि चुनाव पीआर एजेंसी के दम से नहीं, नेतृत्व की लोकप्रियता और जन-जुड़ाव की क्षमता से जीते जाते हैं। यह चीज कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व यानी राहुल गांधी में फिलहाल दूर-दूर तक नहीं दिखती। उनमें राजनीतिक परिपक्वता का भी घोर अभाव है। यकीनन अब ऐसे नेतृत्व को लेकर अगर चुनाव में उतरेंगे तो दुनिया की सबसे बेहतरीन पीआर एजेंसी भी आपको चुनाव नहीं जीता सकेगी। इसलिए कांग्रेस जबतक परिवारवाद, अक्षम नेतृत्व और कमजोर हो चुकी सांगठनिक शक्ति जैसी स्वयं की आतंरिक समस्याओं से निजात नहीं पा लेती, राजनीतिक पतन ही उसकी नियति है। देवरिया में खाट सभा में मची लूट के बीच घोटाले के आरोप भी लग रहे हैं। पता चला है कि सभा के लिए जिस कीमत पर खाटों को खरीदा गया उतने में तो पलंग भी आ जाती है। सभा के लिए एक चारपाई औसतन 3000 रुपये की खरीदी गई है। जबकि गांवों और छोटे शहरों में इसकी कीमत ज्यादा से ज्यादा 500 से 800 रुपये के बीच होती है। राहुल गांधी की सभा के लिए कुल 2000 खाट खरीदी गई थीं। ऐसी खाट अब टेंट हाउसों में नहीं मिलतीं। देवरिया, कुशीनगर और आसपास के जिलों में पता किया गया तो ज्यादा से ज्यादा 200 से 250 खाटों का ही इंतजाम हो पा रहा था। ऐसे में आयोजकों ने बिहार, लखनऊ, पश्चिमी यूपी के शहरों और यहां तक कि दिल्ली के कुछ चारपाई बनाने वालों को ऑर्डर दिए थे। देखा जाए तो थोक ऑर्डर होने के नाते दाम कम होने चाहिए, लेकिन हुआ इसके उलट। देवरिया के ही एक कांग्रेसी पदाधिकारी ने हमें बताया कि आयोजन से जुड़े राज्य समिति के नेताओं ने कुछ न कुछ गबन जरूर किया है। क्योंकि अगर ढुलाई भी जोड़ दें तो एक खाट के 3000 रुपये ज्यादा हैं। दिल्ली से गईं खाटें तो 5000 रुपये तक की थीं।  अगर हम इनकी असली कीमत 1000 रुपये मान लें तो हर खटिया  पर 2000 रुपये ज्यादा खर्च किए गए। इस तरह 2000 खाटों पर कुल 40 लाख रुपये अधिक कीमत बैठती है।  मतलब यह कि अगर आरोपों में दम है तो आयोजन समिति से जुड़े कांग्रेसी नेताओं ने एक झटके में तकरीबन 40 लाख रुपये  कमा लिए। भले ही राहुल की सभा खत्म होते ही खटिया के लिए लूट मच गई, लेकिन कई लोग शिकायत कर रहे हैं कि इनमें जरा भी मजबूती नहीं हैं। यानी राहुल गांधी की खाट पंचायत रणनीतिक असफलता और भ्रष्टाचार के लिए अधिक चर्चा में है। 30,000 करोड़ का कौन रखेगा हिसाब यह भी एक विडंबना ही है कि उत्तर प्रदेश में लोगों द्वारा 500 रूपए की खाट को घर ले जाने पर बवाल मचा है लेकिन इसी प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टिया करीब-करीब 30,000 करोड़ रुपए खर्च करेंगी, उसका हिसाब कौन रखेगा? 30,000 करोड़ का खर्च होना नियम, नियत या व्यवस्था की बात नहीं, बल्कि व्यवहार की बात है। खटिया की लूट देखकर भले ही किसी को ग्लानि हो, कोई गरीबी, मजबूरी या आदत का आकलन लगाए, पर हमारे देश में शासन कर रहे नेता जरूर खुश होंगे। उन्हें इस बात का प्रमाण मिल गया कि अभी इस देश की जनता को हमारे से आंख से आंख मिलाकर बात करने में सदियों लगेंगे। खाट की क्या काट खोजेंगे उत्तर प्रदेश की सत्ता में 27 साल बाद फिर से वापसी के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस में खाट ने जान फूंक दी है। जिस कांग्रेस को वहां पर अभी तक किसी दौड़ में नहीं माना जा रहा था उसे खाट को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर जबरदस्त मीडिया कवरेज मिली है। राहुल की खाट सभा चर्चा का विषय बन गई। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर चाहते भी यही थे। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि देश के सबसे बड़े सूबे में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में खाट की काट के लिए बीजेपी, बीएसपी और सत्ताधारी एसपी के नेता क्?या करेंगे। बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में चाय पर चर्चा के माध्यम से काफी वोटरों को लुभाने का काम किया। गांव-गांव को जोड़ा। लेकिन अब तक उसने विधानसभा चुनावों के लिए ऐसा कोई अभियान नहीं बनाया है। अभी बीजेपी ने यूपी के हर विधानसभा क्षेत्र में पिछड़ा वर्ग सम्?मेलन करवाने का निर्णय लिया है। बीएसपी ने तो आगरा रैली से अपने चुनावी अभियान की शुरुआत कर दी है। उसका जोर सिर्फ अपने पारंपरिक वोटरों को साधने में है। ताकि उसमें खासकर कांग्रेस और बीजेपी सेंध न लगा लें। उसने अब तक न तो कोई नया नारा दिया है और न ही कोई अभियान शुरू किया है। सपा ने भी प्रतीकात्मक राजनीति की बजाए विधानसभा वाइज सम्?मेलन करके बूथ स्तर पर मजबूती का जोर दिया है। कहा जा रहा है खाट सभा के क्रिएटर प्रशांत किशोर हैं। उन्?होंने इसी बहाने कांग्रेस को पूरे उत्?तर प्रदेश में चर्चा का विषय बना दिया है। कांग्रेस के विरोधी तो सिर्फ चर्चा में ही परेशान हैं कि वहां पर यह पुरानी पार्टी फिर वापसी न कर जाए। देवरिया में खाट सभा के बाद ग्रामीणों द्वारा खाट ले जाने पर चुटकी लेने वालों को राहुल गांधी ने माल्?या के बहाने करारा जवाब भी दे दिया है। उत्?तर प्रदेश में राजनीति के जानकारों का मानना है कि राजनीति में सबसे बड़ी कामयाबी होती है पार्टी की चर्चा होना। फिलहाल, कांग्रेस को यूपी में यह कामयाबी कांग्रेस को मिल गई है। -बिंदु माथुर
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