17-Sep-2016 06:35 AM
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बुंदेलखंड की नियति ही कुछ ऐसी हो गई है कि यहां के निवासियों का दुख और दर्द जाने का नाम नहीं ले रहा है। सूखे से बेहाल बुंदेलखंड में इस बार मानसून की मेहरबानी जमकर बरसी है। झमाझम बारिश के बाद भूगर्भ जलस्तर बढ़ा है। बांध, तालाब, पोखर लबालब हो गए है और जमकर खेती की गई है। लेकिन खेतों में बड़े पैमाने पर पारथ्रेनियम हिस्टोरेसफोरस (गाजर घास, इसे कांग्रेस घास भी कहते हैं) उगने से फसल चौपट हो रही है। साथ ही यहां आम लोगों के स्वास्थ्य पर खतरा बढ़ गया है। इस पारथ्रेनियम के पराग कण से अस्थमा, एलर्जी और सांस संबंधी कई रोगों ने पांव पसार लिए हैं। आलम यह है कि बुंदेलखंड में करीब 30 फीसदी लोग सांस से संबंधित बीमारी की चपेट में हैं। केवल बुंदेलखंड ही नहीं, पूरे देश में 55 साल से ज्यादा समय से ये घास लाखों लोगों को सांस का मरीज बना चुकी है।
बता दें, साल 1960 के दशक में भारत में खाद्यान्न के लाले पड़े गए थे। तब तत्कालीन प्रधानमंंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिका से मदद मांगी थी। अमेरिका ने भारत को लाखों टन गेहूं देने की डील की थी। भारत की मदद करते हुए अमेरिका से भारी मात्रा में गेहूं का आयात तो हुआ, लेकिन गेहूं के साथ पारथ्रेनियम बीज भी भारत भेज दिया गया। इसे भारत सरकार द्वारा जंगल में फिकवा दिया गया था, लेकिन असर नष्ट नहीं हुआ। उस समय आरोप लगाया गया था कि अमेरिका ने आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए जानबूझकर खतरनाक बीज भारी मात्रा में भारत भेजा था। कांग्रेस शासन में आने के कारण इसे कांग्रेस घास भी कहते हैं।
फसलों का उत्पादन सिर्फ कीट और बीमारियां ही नहीं बल्कि, गाजर नामक घास भी घटा रही है। खास बात यह है कि यह गाजर घास फसलों के बीच में उगती है और पौधों की उर्वरकता को नष्ट कर देती है। वहीं इसे खत्म करने का उपाय कृषि वैज्ञानिक तक नहीं ढूंढ सके है, जबकि गाजर घास से खाज-खजुली से लेकर सांस की बीमारियां तक किसानों को हो गई है।
फसलों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए किसान दवा छिड़काव से लेकर तमात तरह के प्रयास करता है, लेकिन इन प्रयासों को गाजर नामक घास विफल कर रही है। जिस किसी खेत में गाजर घास की पैदावार हो गई। उस खेत से इसे नष्ट करना लगभग नामुमकिन है। चूंकि किसान इसे खेत से निकालने के लिए जड़ सहित उखाड़ देते है। ऐसे में इसके अंकुरित बीज वहीं गिर जाते है, जिससे गाजर घास दोबारा पैदा हो जाती है। किसानों सहित कृषि वैज्ञानिकों के लाख जतन के बाद भी गाजर घास को खत्म करने का कोई तोड़ नहीं निकाला। उल्टा गाजर घास को निकालने के फेर में कई किसान बीमार हो गए है। गाजर घास के पौधे मानव शरीर में एलर्जी करती है। जिससे मानव शरीर में कई साइडइफेक्ट हो जाते है। जिसके अंतर्गत लोगों को खाज-खजुली से लेकर सांस की तकलीफ तक हो जाती है। गाजर घास खेत में लगातार बढ़ती जाती है और खेत में दिए जा रहे उर्वरकों को पूरी तरह से सोख लेती है। जिससे सोयाबीन हो या फिर मूंग, तिली की पौध। सभी की उर्वरक क्षमता को घटा देती है। इससे जिले के किसान काफी परेशान है, फसलों का व्यापक स्तर पर नुकसान हो रहा है।
दुनिया भर के शोध परिणाम यह बताते है कि गाजर घास यदि खेतों में फसलों के साथ प्रतियोगिता करे तो पूरी फसल भी चौपट हो सकती है। पहले यह बेकार जमीन और मेडो तक सीमित थी पर अब खेतों में इसके प्रवेश कर जाने से भारतीय कृषि को बहुत नुकसान हो रहा है। ये नुकसान प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनो है। नमी, प्रकाश और भोजन के लिये गाजर घास फसल से प्रतियोगिता करती है। इसके परागकण पर-परागण करने वाली फसलों के संवेदी अंगों में एकत्र हो जाते है जिससे उनमें परागण नहीं हो पाता है। खेतों में गाजर घास किसानों को सीधे प्रभावित करती है। उसके पशु भी प्रभावित होते है। गाजर घास के जहरीले रसायन मिट्टी की उर्वर क्षमता को प्रभावित करते है। किसान के पास रसायनों के प्रयोग के अलावा कोई सशक्त विकल्प नहीं होता। जैविक खेती कर रहे किसान बड़ी दुविधा में पड़ जाते है। गाजर घास का किसानों, फसलों और पशुओं पर यह दुष्प्रभाव दशकों से निरंतर हो रहा है। फिलहाल इसका दुष्प्रभाव बुंदेलखण्ड को एक बार फिर बदहाल कर रहा है।
किसानों ने खेतों को चरा दिया मवेशियों से
किसान गाजर नामक घास से इतना दुखी है कि इसे खत्म करने के लिए खेतों में मवेशियों को छोड़ दिया। मवेशियों ने गाजर घास को खाना तो दूर सूंघा तक नहीं। किसी मवेशी ने अगर इस गाजर घास को खा भी लिया तो या तो उसकी बीमारी से मौत हो जाएगी या फिर उसका दूध कड़वा हो जाएगा। जिले के किसानों ने कृषि वैज्ञानिकों से गाजर घास को खत्म करने के सुझाव जानने की कोशिश की, लेकिन कोई भी वैज्ञानिक गाजर घास को खत्म करने का सही सुझाव नहीं दे सका। इसके बाद किसानों ने नमक को गाजर घास के पौधे पर डाला तो वह जल गया, लेकिन यह उपाय तब फेल हो गया जब, नमक के कारण खेत बंजर होने का खतरा बढ़ गया। चूंकि नमक मिट्टी में मिले उर्वरक तत्वों को जला देते है। जिससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता खत्म हो जाती है। ऐसे में किसानों का यह नमक वाला उपाय भी फ्लॉप हो गया।
-सिद्धार्थ पाण्डे