इच्छाओं को त्यागना मूर्खता है!
17-Sep-2016 06:25 AM 1234925
इच्छा के अभाव में जगत का अस्तित्व नहीं है। इच्छा के अभाव में यह शरीर नहीं रहेगा प्राण नहीं रहेंगे। जगत ने आपको कभी यह सीख नहीं दी है कि इच्छा मत पालो। अगर कोई आपको समझाए, इच्छाओं को तजने पर सब कुछ सध जाएगाÓ, इससे बड़ी बेवकूफी से भरी दलील और कोई नहीं हो सकती। आपका मन संन्यास का ढोंग भरेगा भई मैंने तो सब कुछ त्याग करने का फैसला कर लिया है।Ó मन बड़ा चालाक होता है। झूठी-सच्ची कुछ भी कहकर आपको ठगने की कला में माहिर है। लेकिन शरीर? जरा अपनी नाक और मुँह बंद कर लें, हवा को रंच मात्र भी अंदर न जाने दें और तमाशा देखते रहिए थोड़ी देर तक। इच्छा के अभाव में जगत का अस्तित्व नहीं है। इच्छा के अभाव में यह शरीर नहीं रहेगा प्राण नहीं रहेंगे। एक मिनट या दो मिनट तक आपका शरीर सब्र कर लेगा फिर जीने की इच्छा इतनी प्रबल हो उठेगी कि वह आपके हाथ को मुँह से बरबस हटा देगी। जितना घाटा हुआ उन सबकी भरपाई करते हुए जोर-जोर से आक्सीजन को अंदर खींचती जाएगी। इच्छाओं का त्याग करने की मन की दलील शरीर के लिए मान्य नहीं होगी। क्योंकि उसे झूठ बोलकर ठगने की कला नहीं आती। कुल शरीर की क्यों कहें? शरीर के अंदर जो अनगिनत कोशिकाएँ हैं, उनमें से प्रत्येक कोशिका का प्रकार्य इच्छा के बल पर चल रहा है। मेहमान की भांति भले ही एक रोगाणु अंदर घुस जाए, फिर देखें तमाशा, सभी कोशिकाएँ दलबंदी करते हुए उस पर हमला बोल देंगी, उसे निकालने के बाद ही दम लेंगी। क्यों? किसलिए? इसलिए कि ब्रह्माण्ड ने उसे जीने की इच्छा दे रखी है। और गहराई से सोचें तो इच्छाओं को तजने की इच्छा भी मूल रूप में एक इच्छा ही तो है? आपके गाँव में कोई बाबाजी जरूर आए होंगे। उन्होंने यह भी कहा होगा, तुमने धन की लालसा की, यही तुम्हारे दुख का कारण है बेटे! तुम्हारा लगाव भगवान पर हो।Ó मान लीजिए कि आपके पास दस करोड़ रुपए हैं। भगवान पर भरोसा करते हुए अगर आप यह सारा धन गरीबों में बांट देंगे तो क्या उससे दुनिया में शांति छा जाएगी? कल सुबह इस देश में गरीबों की संख्या में आपको मिलाकर एक और का इजाफा हो जाएगा, बस! हाथ में पैसा होने पर वह किस-किस काम आता है, इतना तो आप जानते ही हैं। लेकिन भगवान से क्या कुछ संभव है और क्या नहीं, इसका अंदाजा या अनुभव आपको नहीं है। क्या इच्छाएं कम की जा सकतीं हैं? एक और बाबाजी आएँगे। वे आपको अनुमति देंगे, ठीक है, ठीक है, इच्छाओं को पूर्ण रूप से छोडऩे की आवश्यकता नहीं है बेटे, थोड़ी-सी इत्ती भर रख लो, कोई बात नहीं।ÓÓ आप भी यह सोचकर खुश हो जाएँगे कि यदि मैं चाहूँ तो और भी इच्छाएँ पाल सकता हूँ। अपने जीवन-स्तर को जीवन की दिशा को ही तय करने वाली इच्छाओं के बारे में और गहराई से जानें। लेकिन मेरे लिए इतनी ही पर्याप्त है।ÓÓ अगर आप यही सोचकर इच्छा को कम कर लेंगे, तो इसी से आपको तृप्ति मिलेगी संतोष अनुभव होगा। लेकिन अगर आप यों सोचेंगे  मुझे वह सब कहाँ मिलने वाला है, इतना ही मिल जाए तो बहुत है।Ó इस तरह की दलील देते हुए अपनी इच्छाओं के पंख काट लेंगे तो वह कायरता होगी। आपके मन में यही संताप होगा, मेरा पड़ोसी जो है, हद दर्जे का लालची है। लेकिन उसे सब कुछ मिल जाता है। मैं तो बहुत थोड़े की इच्छा करता हूँ, मगर वह भी तो मुझे नहीं मिल रहा है। इच्छाओं के बारे में गहराई से समझने की जरूरत है इसीलिए इच्छा कीजिए, बड़ी-बड़ी इच्छाएँ पालिए। इसका साहस किए बिना, अगर आप अपनी इच्छाओं को समेट लेंगे तो अपने जीवन में आप कौन-सा बड़ा तीर मारने वाले हैं? आइए, अपने जीवन-स्तर को  जीवन की दिशा को ही तय करने वाली इच्छाओं के बारे में और गहराई से जानें। क्या इच्छाओं की दिशा मोड़ सकते हैं? यह नसीहत भी बार-बार दी जाती है सुख भोगने की इच्छा न करो, स्वर्ग पाने की इच्छा करो; अधिकार चलाने की चाह न करो, शांति की इच्छा करो। एक बार शंकरन पिल्लै जोर के पीठ-दर्द से पीडि़त हुए। डॉक्टर ने एक्स-रे को उठाकर रोशनी में देखा देखिए न, एक्स-रे में, आपकी रीढ़ की हड्डी कितनी घिस गई है? ऑपरेशन करना होगाÓÓ कितना खर्चा होगा, डॉक्टर साहब?ÓÓ मेरी फीस पच्चीस हजार रुपए। फिर अस्पताल में छह हफ्ते आराम करना होगाÓÓ  शंकरन पिल्लै भौचक्के रह गए। इतनी बड़ी रकम कहाँ से मिलेगी? अभी आया डॉक्टर साहब!ÓÓ कहते हुए शंकरन पिल्लै हाथ में एक्स-रे चित्र के साथ एक्स-रे वाले के पास भागे। उससे पूछा, भाई साहब, क्या आप इस एक्स-रे में इत्ता-सा सुधार करके दे सकते हैं जिससे कि डॉक्टर को पच्चीस रुपए फीस देकर घंटे-भर में इलाज से निजात पा लूँ प्लीज!ÓÓ यों एक्स-रे को वांछित रूप से बदलने वाले बाबाजी लोग ही आप को सलाह देते हैं, इच्छा को एक जगह से दूसरी जगह लगा लो।Ó -ओम
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