03-Sep-2016 06:03 AM
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योगिक परंपरा में हम हवा का उल्लेख वायु के तौर पर करते हैं, जिसमें वायु का मतलब सिर्फ नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाई ऑक्साइड व अन्य गैसों का मिश्रण नहीं होता, बल्कि यह गति का एक आयाम है। उन पांच बुनियादी तत्वों- पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि व आकाश, जिनसे इंसान सहित इस सृष्टि की हर चीज बनी है, में से वायु ऐसा तत्व है, जिस तक पहुँच आसानी से बनाई जा सकती है। इस पर अपेक्षाकृत आसानी से महारत पाई जा सकती है। इसीलिए योगिक प्रक्रिया के कई सारे अभ्यास वायु के इर्द-गिर्द तैयार किए गए हैं, हालांकि शरीर की बनावटी संरचना में वायु का हिस्सा बहुत छोटा है।
योगिक अभ्यासों में सांसों का इस्तेमाल ज्यादातर वायु या प्राण वायु से ही जुड़ा होता है। वायु एक तत्व है, और प्राण वायु पंच प्राणों में से एक है। हम लोग प्राण के गर्भ में हैं, जो कि एक बुलबुले के समान है। यह बड़ा प्राण टूट कर चौरासी प्राणों में बंट जाता है, इनमें से केवल पांच प्राण ही इंसान की दैनिक जीवन से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी हैं।
अगर आप वायु तत्व को सक्रिय करते हैं, और आप एक स्तर तक पहुँच जाते हैं, तो अग्नि तत्व स्वाभाविक रूप से उसके साथ आएगा। ये पंच प्राण ही आपके तन और मन को अच्छा रखने और आपको आध्यात्मिक रूप से सक्रिय रखने के लिए पर्याप्त हैं। जबकि अगले दस प्राणों की जरूरत उसे पड़ती है, जो लोग परा-विद्याओं में काम करते हैं। बाकी बचे हुए प्राण इतने सूक्ष्म हैं कि उन्हें खोजना व महसूस करना काफी मुश्किल होता है।
प्राण वायु एक भीतरी गतिशीलता है, जो गले के गढ्ढे से लेकर नाभि के बीच होती है। हम लोग जो शक्तिचालन क्रिया सिखाते हैं, उसकी कम से कम 60 प्रतिशत प्रक्रिया का लक्ष्य ही प्राण वायु है। हम लोग इस तत्व पर इसलिए फोकस करते हैं, क्योंकि हम जिस तरह से सांस लेते हैं और जिस हवा में सांस लेते हैं, उसकी गुणवत्ता ही आमतौर पर हमारे जीवन के सतही अनुभवों को तय करती है। हम सांस के रूप में जो हवा भीतर लेते हैं, उसका असर बेहद तत्काल होता है। आप बिना खाए आठ से दस दिन तक अपने सिस्टम को नुकसान पहुंचाए बिना जीवित रह सकते हैं। इसी तरह से आप बिना पानी के तीन से साढ़े तीन दिनों तक अपने सिस्टम को नुकसान पहुंचाए बिना जिंदा रह सकते हैं। लेकिन ज्यादातर लोग बिना हवा के सिर्फ साढ़े तीन से पांच मिनट तक ही चल पाएंगे। कुछ अभ्यासों की मदद से आप बिना हवा के ज्यादा समय तक भी जिंदा रह सकते हैं, लेकिन इसके लिए आपको थोड़ा छल करना होगा।
प्राण वायु को बढ़ाकर आप अपनी मानसिक समस्याओं से निजात पा सकते हैं। इससे आपका मन पहले से ज्यादा संतुलित हो जाएगा। अगर आप अपनी चयापचयन प्रकिया यानी मेटाबोलिजम प्रक्रिया को बेहद निम्न स्तर पर रखने में सफल हो जाते हैं तो फिर आपको नाक से सांस लेने की जरूरत नहीं रहती, तब आप अपनी त्वचा से भी सांस ले सकते हैं। जिस तरह से त्वचा से पसीना निकलता है, उसी तरह से श्वसन प्रक्रिया भी होती है, जहां त्वचा के जरिए हवा का आवागमन होता है। अगर आप पर्याप्त रूप से अपनी प्राण वायु को सक्रिय कर लेते हैं तो आप अपनी नाक से सांस लिए बिना भी अपेक्षाकृत लंबे समय तक जिंदा रह सकते हैं।
वायु सक्रिय होने पर आपकी ऊर्जा बढ़ जाएगी
असीमित ऊर्जा जैसी कोई चीज नहीं होती, सिर्फ दूसरे लोगों के नजर में ऐसा लगने लगता है। अगर आपकी प्राण वायु वाकई सक्रिय है तो आप अपने समय को सही ढंग से इस्तेमाल करने लगते हैं। जीवन दरअसल समय और ऊर्जा का मेल है। जीवन में उच्चतर संभावनाओं की ओर बढऩे के लिए इन तत्वों पर महारत हासिल करना जरूरी है। अगर आपकी ऊर्जा या प्राण वायु काफी प्रबल होंगे तो आपके पास ज्यादा समय होगा। तब क्रियाकलाप आपके भीतर मौजूद ऊर्जा की वजह से होंगे, न कि आपके प्रयासों की वजह से। अगर आप शक्तिचालन की अपनी क्रिया लगातार करते हैं, तो आपके सक्रिय होने की क्षमता जबरदस्त तौर पर बढ़ जाएगी। आज बड़ी संख्या में लोगों को अपने काम के बीच में लंबे आराम की जरूरत महसूस होती है। इसकी जरूरत तब होती है, जब आप अपनी प्राण वायु का ठीक तरह से देखभाल नहीं कर पाते। और प्राण वायु के ठीक तरह से न रह पाने के कई कारण हैं।
-ओम