सत्ता दांव पर
03-Sep-2016 07:16 AM 1234799
त्तर प्रदेश में चुनावी घमासान शुरू हो गया है। सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी से सत्ता छिनने के लिए बसपा, भाजपा और कांग्रेस चाल पर चाल चल रहे हैं। ऐसे समय में जब इन तीनों पार्टियों के चक्रव्यूह को तोड़कर सपा को आगे निकलना चाहिए पार्टी में ही आंतरिक महाभारत शुरू हो गया है। चाचा शिवपाल यादव पार्टी के वोट बढ़ाने की सोच रहें हैं तो भतीजा अखिलेश यादव अपनी छवि सुधारने पर। दोनों ने इसको अपने मूंछ की लड़ाई भी बना लिया है। इससे सत्ता दांव पर लग गई है। देखना यह है कि इस लड़ाई में मुखिया मुलायम किस करवट बैठते हैं। दरअसल असली लड़ाई है विचारधारा की, जहां अखिलेश साफ सुथरा प्रशासन चाहते हैं वहीं चाचा अब भी पुराना अलाप नहीं छोडऩा चाहते, अखिलेश अपराध मुक्त राजनीति चाहते हैं, चाचा अब भी अपराध लुप्त राजनीति का सहारा लेना चाहते हैं। अखिलेश यादव की छवि एक स्वच्छ छवि वाले मुख्यमंत्री की है। अखिलेश नहीं चाहते कि समाजवादी पार्टी का बाहुबलियों के साथ गठजोड़ हो। ऐसे में शिवपाल भतीजे अखिलेश से नाराज हैं। उनका कहना था कि जब हमारी सुनी ही नहीं जाती तो पार्टी में रहकर क्या फायदा। शिवपाल के इस बयान के बाद सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने पार्टी के नेता, अफसरों और कार्यकर्ताओं को जमकर फटकारा था। मुलायम सिंह ने कहा था कि अगर शिवपाल चले गए तो सरकार असहज हो जाएगी। इसी बीच शिवपाल यादव ने अखिलेश से किसी भी नाराजगी से इंकार किया और उनकी तारीफ की और कहा कि अखिलेश अच्छा काम कर रहे हैं। उन्होंने परिवार में किसी भी तरह के विवाद से इंकार किया था। दरअसल, चाचा-भतीजे के बीच चल रही अन्तर्कलह की आग काफी समय पहले से सुलग रही थी जो अब भीषण रूप धारण कर चुकी है, अगर मझधार में कोई है तो वो हैं मुलायम सिंह जिन्हें तराजू पर बेटे और भाई को तोलना है। देखना यह है कि समाजवादी मुलायम इस अंतर्कलह से कैसे निपटते हैं? विधानसभा के चुनाव सिर पर हैं ऐसे समय में पारिवारिक अंतर्कलह पार्टी के लिए नुकसानदेह हो सकता है। चार साल पहले जब अखिलेश को मुख्यमंत्री के रूप में चुनावी चेहरा बनाया गया था तो उस वक्त अखिलेश ने पब्लिक से वादा किया था कि राज्य में साफ सुथरी सरकार देंगे, जिसमें अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं होगी, तो क्या अब वे कैसे मुख्तार अंसारी जैसे हिस्ट्रीशीटर्स को पार्टी में शामिल करेंगे, लेकिन चाचा हैं कि मानते नहीं। जून 2016 में एक कार्यक्रम में अखिलेश यादव ने स्पष्ट कर दिया था कि हम मुख्तार जैसों को पार्टी में नहीं चाहते। हालांकि, सपा में कौमी एकता दल के विलय पर मतभेद के सवाल पर अखिलेश ने कहा कि ये चाचा-भतीजे के बीच की बात है, आपस में सुलझा लेंगे। शिवपाल यादव ने मुख्तार अंसारी को पार्टी में शामिल करने का फैसला लिया था, जिसके बाद अखिलेश और शिवपाल यादव के बीच भारी मतभेद की खबरें सामने आई थीं। कौमी एकता दल का गठन मुख्तार अंसारी ने किया था, जो हत्या, अपहरण समेत कई संगीन आपराधिक मामलों में जेल में बंद हैं। अमर सिंह को भी पार्टी में शामिल करने को लेकर अखिलेश यादव चाचा शिवपाल यादव से नाराज थे, लेकिन शिवपाल यादव ने भाई मुलायम सिंह को मना लिया, जिसके बाद अमर सिंह राज्यसभा में पहुंच गए। कहीं न कहीं इस कारण भी दोनों के बीच अंतर्विरोध बना हुआ था। जून 2016 में जब अखिलेश मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ तो उस, कार्यक्रम में भी चाचा शिवपाल यादव शामिल नहीं हुए। इसके बाद कई ऐसे मौके आए जब चाचा-भतीजे का द्वंद सामने आया। लेकिन चुनावी अवसर पर अगर यह द्वंद खत्म नहीं हुआ तो सपा हाथ मलते रह जाएगी। इस परिवारवाद में कई पटकथाएं एक साथ चल रही हैं असल में इस परिवारवाद में कई पटकथाएं एक साथ चल रही हैं। कुनबे का हर चाचा अपने परिजनों को राजनीति में स्थापित करने में जुटा है। एक चाचा तो खुद अपना भविष्य मजबूत करने की जुगत में हैं। दूसरी तरफ सत्ता का नियंत्रण अपने हाथ में रखने के बावजूद पिता मुलायम सिंह यादव अपने पुत्र अखिलेश के लिए लाल कालीन तैयार रखना चाहते हैं। राजनीतिक विश्लेषक मुलायम के ताजा बयानों को इसी नजरिए से देखते हैं कि यह मुलायम का एक बड़ा दांव है। सब भ्रष्ट, सब निकम्मेÓ कह कर भी वे अखिलेश को दूध का धुला साबित करने का दांव खेल रहे हैं। हो सकता है कि इस क्रम में मुख्तार के साथ या मुख्तार के बिना कौमी एकता दल के पुन: विलय, और मुख्तार के मुद्दे पर अखिलेश की नाराजगी, कोप भवन प्रवेश या फिर खुद पार्टी सुप्रीमो मुलायम के सामने विरोधस्वरूप त्यागपत्र की पेशकश तक की नौबत आ सकती है। जाहिर है अगर ऐसा हुआ तो इससे अखिलेश की छवि को पुन: बेदाग और अपराध की संस्कृति के खिलाफÓ कह कर चमकाया जा सकेगा। -लखनऊ से मधु आलोक निगम
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