क्या डीजीपी को बदलने से अपराध रुकेंगे?
16-Apr-2013 09:37 AM 1234834

उत्तरप्रदेश में लगातार बढ़ते अपराधों की कीमत वहां के पुलिस महानिदेशक ए.सी. शर्मा चुकानी पड़ी। अखिलेश सरकार ने शर्मा को हटाकर उनकी जगह पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड के चेयरमैन देवराज नागर को नया पुलिस महानिदेशक बनाया है। शर्मा को पीएसी का महानिदेशक बना दिया गया है। प्रश्न यह है कि सर्वोच्च स्तर पर यह बदलाव क्या प्रदेश में कानून व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति में सुधार करने के लिए पर्याप्त कदम है। उत्तरप्रदेश के राजा भैया, नरेंद्र सिंह यादव सहित कई मंत्रियों पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं, जिसमें अपहरण से लेकर हत्या तक के आरोप हैं। ऐसे में एक आईपीएस की बलि देना कहां तक उचित है। अखिलेश सरकार आरोपित मंत्रियों के खिलाफ ठोस कदम उठाने में असफल रही है इसलिए अब पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। बहरहाल पुलिस महानिदेशक के पद पर शर्मा जिस कार्यकाल में बिठाए गए थे, उसमें कई ऐसे प्रकरण देखने में आए जिससे शर्मा को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। राज्य के एक तेज तर्रार अफसर की हत्या हो गई तो फेजाबाद उपद्रव के समय शर्मा के आवश्यक दिशा-निर्देशों का पुलिस ने पालन ही नहीं किया। उस दौरान प्रदेश में 27 सांप्रदायिक दंगे हुए जिनमें कई बार पुलिस को भीड़ की आक्रामकता का सामना भी करना पड़ा। पुलिस पर भी आरोप लगे कि उसने वर्ग विशेष को बचाने की कोशिश की है। नोएडा जैसे औद्योगिक इलाके में कर्मचारियों के आंदोलन इतने हिंसक हो उठे कि उन्होंने उन्हीं इकाइयों को आग के हवाले कर दिया जिनसे उनकी रोजी-रोटी चल रही थी। प्रतापगढ़ जिले के बलिपुर में राजा भैया के कथित गुर्गों द्वारा किया गया हत्याकांड भी शर्मा के लिए एक बदनुमा दाग साबित हुआ। अखिलेश ने यह कदम प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर विपक्ष के हंगामे के बाद उठाया है। समाजवादी पार्टी जब-जब सत्ता में होती है उसके ऊपर इस तरह के आरोप लगते ही हैं। इसका कारण यह है कि समाजवादी पार्टी के ज्यादातर विधायक, सांसदों की बाहुबलियों से काफी निकटता है। सरकार में ही कई बाहुबली शामिल हैं और कई विधायकों का रिकार्ड अपराधियों की भांति खराब है। इसी कारण पुलिस खुलकर काम नहीं कर पाती। अक्सर अधिकारियों पर दबाव रहता है जो इस दबाव को नहीं मानते उनकी हत्या हो जोती है। लेकिन कई बार पुलिस का दामन भी दागदार हो ही जाता है। पिछले दिनों केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने लखनऊ 31 साल पुराने फर्जी मुठभेड़ मामले में तीन पुलिसकर्मियों फांसी की सजा, जबकि पांच अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह मुठभेड़ फरवरी 1982 में उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले के माधौपुर गांव में अंजाम दी गई थी। इस फर्जी मुठभेड़ में एक पुलिस उप अधीक्षक मारा गया था। जबकि पुलिसवालों ने 12 ग्रामीणों की निर्ममता से हत्या कर दी थी। उत्तरप्रदेश पुलिस के लिए यह सजा सदमा ही कहा जाएगा।
उत्तरप्रदेश में कानून व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति का श्रेय खड़ाऊं राजÓ को दिया जा रहा है। कहा जाता है कि अखिलेश यादव खुलकर काम नहीं कर पाते हैं। उनके कामों में कहीं न कहीं नेता जी का हस्तक्षेप अवश्य रहता है। नेता जी के विश्वसनीय भी अखिलेश को तंग कर डालते हैं इसलिए वे चाहकर भी प्रदेश की कानून व्यवस्था पटरी पर लाने में असमर्थ रहे हैं। अखिलेश के विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि अखिलेश अपने मंत्रिमंडल के कुछ सहयोगियों के रवैये से नाखुश हैं। इसी कारण वे चाहकर भी प्रदेश में कानून का राज स्थापित नहीं कर पा रहे हैं। उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी ही उनकी टांग खींचने में लगे रहते हैं। राजा भैया प्रकरण में सीबीआई जांच की घोषणा करने में अखिलेश ने जरा भी देरी नहीं की लेकिन उनके इस फैसले को प्रदेश मंत्रिमंडल के कुछ मंत्रियों ने खुलकर स्वीकार नहीं किया है। मुलायम सिंह यादव भी इस मामले में गफलत में हैं क्योंकि पहली बार उन्हें राजा भैया की निकटता के कारण ही इतनी बड़ी संख्या में ठाकुरों के वोट मिले हैं। राजा भैया पर किसी भी तरह की आंच आने से ठाकुरों का समर्थन समाप्त हो जाएगा और भी अन्य जातीय समीकरण हैं जिनके चलते अखिलेश यादव सरकार के हाथ बंधे हुए हैं। आलम यह है कि राज्य सरकार के मंत्री अलग-अलग दिशा में भागने लगे हैं। उधर नेताजी भी मंत्रियों की इस दुविधा को भलीभांति समझते हैं, लेकिन उनका जो लक्ष्य है उसे पाने के लिए फिलहाल तो उन्हें समझौते करने ही होंगे। इन समझौतों की आंच अखिलेश यादव की कार्यप्रणाली पर पडऩा तय है। इसी कारण महज डीजीपी बदलने से फायदा नहीं होगा। वैसे ए.सी. शर्मा के स्थान पर देवराज नागर को डीजीपी बनाकर अखिलेश ने समझदारी भरा कदम तो उठाया है। नागर एक योग्य, सक्षम किंतु कड़क मिजाज के पुलिस अधिकारी है। देखना यह है कि वे प्रदेश की कानून व्यवस्था को किस हद तक सुधार पाते हैं। इस बीच उत्तरप्रदेश सरकार के मंत्री नरेंद्र सिंह यादव एक लड़की को अगवा कर अपने घर में रखने के आरोपों से घिर गए हैं। यादव का कहना है कि उन्हें गलत फसाया गया है उनकी इस प्रकरण में कोई भूमिका नहीं है। वहीं पुलिस भी यादव के सुर में सुर मिलाते हुए कह रही है कि उसने उक्त लड़की को यादव के घर से बरामद नहीं किया था बल्कि अन्य जगह वह पाई गई। उधर लड़की का कहना है कि यादव के घर से ही पुलिस ने उसे बचाया है। सच क्या है यह किसी को नहीं पता, लेकिन ऐसी ही घटनाओं के कारण पुलिस महानिदेशक ए.सी. शर्मा को अपने पद से हाथ धोना पड़ा है।
लखनऊ से मधु आलोक निगम

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