किंतु समर्थन वापस नहीं लेंगे
04-Apr-2013 08:50 AM 1234782

मुलायम सिंह यादव कांग्रेस को चालाक और धोखेबाज भले ही बता रहे हो, लेकिन उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वे कांगे्रस से समर्थन वापस नहीं लेंगे। संसद में बहस के दौरान जब राजनाथ सिंह के प्रति मुलायम सिंह ने बड़ी आत्मीयता प्रकट की थी तो लगा था कि सरकार के दिन पूरे हो गए हैं। लेकिन अब अपने सुपुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के रूप में ज्यादा कुशलता से काम करने की नसीहत देते हुए मुलायम सिंह ने लालकृष्ण आडवाणी का जिक्र किया और कहा कि आडवाणी जी ने प्रदेश की जर्जर होती कानून व्यवस्था पर सवाल पैदा किया है इसका अर्थ यह है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था वाकई में खराब है। क्योंकि आडवाणी कभी झूठ नहीं बोलते।
आडवाणी की सत्यवाणी के इतने कायल तो मुलायम कभी नहीं रहे। यह वही मुलायम हैं जिन्होंने कारसेवकों पर गोली चलवाई थी। इसीलिए जब मुलायम ने आडवाणी की प्रशंसा की तो दाल में कुछ काला नजर आया। लेकिन बात यहीं तक नहीं रुकी यह संकेत भी दिए गए कि समाजवादी पार्टी केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले सकती है। हालांकि तमिल मुद्दे पर सरकार से अलग हुई द्रमुक के कानों में जब मुलायम की आडवाणी भक्ति के स्वर पड़े तो द्रमुक ने अपना रुख बदलते हुए साफ कर दिया कि वह फिलहाल सरकार को अस्थिर करने के मूड में नहीं है क्योंकि इससे सांप्रदायिक ताकतें मजबूत होंगी। अब यह लगने लगा है कि धर्म निरपेक्ष ताकतों के स्वयंभू नेता होने का खिताब मुलायम सिंह यादव से छिनने वाला है और हो सकता है इस खिताब की दावेदारी के लिए करुणानिधि से लेकर नीतिश कुमार तक सब लामबंद हो जाएं। क्योंकि केंद्र सरकार ने नए साथियों की तलाश प्रारंभ कर दी है। सूत्रों की मानें तो 2014 में होने वाले आम चुनाव से पहले बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड तथा राजस्थान उड़ीसा आदि राज्यों को संपूर्ण अथवा उनके कुछ हिस्सों को विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सकता है। यदि ऐसा हुआ तो ममता बनर्जी की यूपीए में वापसी के साथ-साथ बीजू जनता दल और जनता दल यूनाइटेड के रूप में नए साथी केंद्र सरकार को मिल जाएंगे और उसकी स्थिरता बनी रहेगी। स्थायित्व के लिए यह जरूरी भी है, लेकिन अखिलेश यादव अपने पिता की भाजपा से निकटता को ज्यादा बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। इसीलिए उन्होंने साफ कर दिया है कि उत्तरप्रदेश में जो कानून और व्यवस्था है वह इतनी भी खराब नहीं है और जैसी अन्य राज्यों में थी वैसी ही उत्तरप्रदेश में भी है। उन्होंने अपने गृह जनपद इटावा के एक स्कूल में कार्यक्रम के दौरान यह बात कही और यह भी स्वीकारा की छोटी-मोटी कमियां हो सकती है।
इस बीच प्रियंका गांधी की सक्रियता ने राज्य में कांग्रेसियों को उत्साहित कर दिया है जो लंबे समय से प्रियंका को चुनावी राजनीति में लाने का प्रयास कर रहे हैं। अपने संक्षिप्त आपरेशन के बाद प्रियंका पहली बार 17 मार्च को रायबरेली में दिखाई दीं और एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन करके यह संकेत दिया कि वे चुनावी तैयारी में हैं। सिर्फ बैठक ही नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर भी ये तैयारियां देखी जा रही है। खबर है कि सोनिया गांधी अब लोकसभा चुनाव लडऩे के मूड में नहीं है और जिस तरह उन्होंने अमेठी की सीट राहुल गांधी के लिए छोड़ी थी उसी प्रकार वे रायबरेली की सीट प्रियंका गांधी के लिए छोड़ सकती हैं। उधर नरेंद्र मोदी भी राज्य में कम से कम एक लोकसभा सीट पर अपनी मजबूती दिखाने के प्रयास में हैं। क्योंकि उत्तरप्रदेश प्रधानमंत्रियों का प्रदेश कहलाता है। जो यहां जम जाता है उसे दिल्ली का तख्त स्वत: ही अपनी तरफ खींच लेता है। मुलायम सिंह यादव की भाजपा से निकटता का कारण ही शायद यह है कि वे विश्वनाथ प्रताप सिंह की तर्ज पर भाजपा के समर्थन से दिल्ली की गद्दी पाने का ख्वाब देख रहे हैं। जिस तरह तीसरे मोर्चे की बात की जा रही है उसे देखकर उनके इस ख्वाब का अर्थ निकाला जा सकता है। मुलायम को भाजपा का साथ मिलेगा अथवा नहीं यह अलग बात है, लेकिन यह सिद्ध हो चुका है कि केंद्र सरकार को बाहर से समर्थन देना मुलायम सिंह की मजबूरी है। जिस तरह बेनी प्रसाद वर्मा ने मुलायम के विरुद्ध बयानबाजी की और उसके बाद लोकसभा में भी हंगामा हुआ उससे यह लग रहा था कि कम से कम बेनी प्रसाद की मंत्रीमंडल से विदाई अवश्य होगी। लेकिन कांग्रेस ने खेद जताकर और बेनी प्रसाद ने माफी मांगकर मामला ठंडा कर दिया।
समाजवादी पार्टी के नेताओं ने भी सबकुछ नेताजीÓ पर छोड़ते हुए अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। द्रमुक के आक्रामक रुख के बाद मुलायम का मुलायम रवैया कांग्रेस सरकार के लिए संतोषप्रद खबर है, लेकिन सच तो यह है कि कांग्रेस ने भी मुलायम सिंह की यह घेराबंदी अच्छी तरह कर ली है। मायावती पहले से ही शिकंजे में हैं इसी कारण दोनों कोरस में बोलते नजर आते हैं कि सांप्रदायिक ताकतों को दूर रखने के लिए समर्थन दे रहे हैं।Ó पर यह समर्थन सांप्रदायिक ताकतों को नहीं सीबीआई को दूर रखने के लिए है, लेकिन येन-केन-प्रकारेण तमाम अपमान सहते हुए भी केंद्र सरकार को समर्थन देने की मुलायम सिंह की पहल अब उत्तरप्रदेश में नापसंद की जाने लगी है। खासकर ठाकुर, ब्राह्मण और बनिया समाज मुलायम के खिलाफ लामबंद होने लगा है। ठाकुर इसलिए नाराज है कि राजा भैया प्रकरण में राजा भैया को गलत फसाया गया है और मुसलमानों को खुश करने के लिए अनुपात से अधिक कार्रवाई की गई है। उधर बनिये इसलिए नाराज हैं कि मुलायम सिंह के ढुलमुल रवैये के कारण खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संभव हो पाया है, भले ही अखिलेश यादव ने यह कहा हो कि उत्तरप्रदेश में इसे लागू नहीं किया जाएगा लेकिन सच तो यह है कि इससे उत्तरप्रदेश के बाहर जाने वाली सामग्री पर मूल्य में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। जिससे अंतत: दाम कम ही करने होंगे और इसका प्रभाव धीरे-धीरे छोटे दुकानदारों पर आने लगेगा। उधर ब्राह्मण वर्ग को यादवों के तांडव ने नाराज कर रखा है। मुख्यमंत्री के गृह जनपद इटावा में बसरेहर विकासखंड के गांव संतोषपुर-इटगांव में ग्राम प्रधान की शह पर दबंग यादवों ने ब्राह्मण परिवारों के बुजुर्गों और महिलाओं के चेहरे पर कालिख पोतकर तथा जूतों की माला पहनाकर उन्हें गांवभर में घुमाया और लाठी-डंडों से जमकर पीटा। इस घटना ने सारे प्रदेश में ब्राह्मणों को एकजुट कर दिया है। घटना का कारण यादव परिवार की एक लड़की का ब्राह्मण के इश्क में गिरफ्तार हो जाना बताया जा रहा है, लेकिन जब ब्राह्मणों को सरेआम बेइज्जत किया जा रहा था उस दौरान पुलिस मूक दर्शक बनकर देख  रही थी।
घटना से साफ लग रहा है कि पुलिस पर समाजवादी पार्टी का दबदबा है और समाजवादी पार्टी दबंगों की तरह शासन चला रही है अब इस घटना को कांग्रेस तथा भाजपा ने अपने-अपने पक्ष में भुनाना शुरू कर दिया है। उधर मुलायम सिंह के खासमखास अल्पसंख्यक समुदाय में भी बगावत के सुर उभरने लगे हैं। हाल ही में डीएसपी जियाउल हक हत्याकांड के बाद उसके परिजनों को भारी रकम देकर और डीएसपी की पत्नी को महत्वपूर्ण पद देकर शांत किया गया, लेकिन मुस्लिम संगठन रिहाई मंच ने उत्तरप्रदेश सरकार पर आरोप लगाया है कि वह आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाह मुस्लिमों को छोडऩे के लिए राजनीतिक दांवपेंच चल रही है। रिहाई मंच का कहना है कि मुलायम सिंह यादव कभी उलेमाओं के सम्मेलन में तो कभी संसद में सफेद झूठ बोल रहे हैं कि उन्होंने बहुत से निर्दोष मुस्लिमों को छोड़ दिया है। सच तो यह है कि एक भी बेगुनाह को छोड़ा नहीं गया है। इस संगठन ने कहा कि मुलायम सिंह यादव ने चुनावी सभाओं में मुकदमे वापस लेने का वादा किया था, लेकिन अभी तक बेगुनाहों को मुकम्मल आजादी नहीं मिल पाई है। उधर मुस्लिम पोलीटिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. तस्लीम अहमद रहमानी ने कहा है कि मुलायम सिंह पर लगे समर्थन के बदले दलाली खाने और दूसरे तरीके से लाभ लेने के आरोपों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि यदि आरोप सही हैं तो देश की जनता के साथ धोखा है। रहमानी ने कहा कि जिस तरह नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने लोकसभा में मुलायम सिंह यादव की पैरवी की है उससे मुलायम सिंह यादव और भारतीय जनता पार्टी के बीच गोपनीय तालमेल का पर्दाफाश हो गया है। रहमानी ने आरोप लगाया कि समाजवादी पार्टी अब अल्पसंख्यकों को नजरअंदाज कर सांप्रदायिक पार्टियों से हाथ मिलाने जा रही है।
इस सारे घटनाक्रम का असर लोकसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है इसी कारण केंद्र सरकार को समर्थन बरकरार रखना मुलायम सिंह यादव की मजबूरी बन चुकी है। यदि अभी सरकार गिरती है तो मुलायम सिंह यादव वर्तमान हालात में अपनी पार्टी को अपेक्षित सीट नहीं दिला पाएंगे। उधर अपराध की बढ़ोत्तरी ने भी मुलायम सिंह और अखिलेश यादव को बैकफुट पर धकेल दिया है। तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद न तो दबंग यादवों का आतंक कम हुआ है और न ही प्रदेश में बाहुबलियों पर लगाम कस पाई है। इसी कारण अखिलेश के कार्यकाल पर भी उंगली उठने लगी है। समाजवादी पार्टी के ही कई बड़े नेता अखिलेश की कार्यशैली से नाखुश है और खुलेआम सरकार की आलोचना करने के साथ-साथ असहयोग का प्रदर्शन भी कर रहे हैं। केंद्र सरकार की कमजोरी का लाभ उठाने में समाजवादी पार्टी असमर्थ रहेगी और कांग्रेस फिलहाल भयमुक्त है क्योंकि उसे परेशान करने वाले स्वयं परेशानी से जूझ रहे हैं। मुलायम सिंह अब अपनी भविष्य की राजनीति को पुख्ता करने में जुट गए हैं। उधर कांग्रेस ने भी उत्तरप्रदेश में फिर से मेहनत करनी शुरू कर दी है। सूत्र बताते हैं कि इस बार गर्मी भर कांग्रेस के शीर्ष नेता प्रदेश में हर जिले में जाने वाले हैं। स्वयं राहुल गांधी प्रदेश में अपनी सक्रियता बनाए रखेंगे। इसी प्रकार भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को खुला हाथ दे दिया है कि वे अपनी पसंद के अनुसार राज्य में चुनावी रणनीति को संचालित कर सकते हैं। मोदी ने उत्तरप्रदेश में एक सर्वेक्षण कराया था जिसके नतीजे आशाजनक निकले हैं। यदि मोदी प्रदेश से चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा का मत प्रतिशत अवश्य बढ़ेगा, लेकिन सीटें कितनी बढ़ेंगी इसको लेकर अभी भी संशय बना हुआ है। मायावती इस पूरे खेल में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनकर उभरने वाली हैं। उनकी पार्टी को अधिक सीटें मिलने का अर्थ है माया जिस भी खेमें में जाएंगी उससे भरपूर सौदेबाजी करेंगी। ताकि आगामी चुनाव के समय उन्हें लाभ मिल सके।
फिलहाल माया ने इस बात का कोई संकेत नहीं दिया है कि तीसरे मोर्चे में उनकी क्या भूमिका रहेगी। लेकिन सूत्र यह बताते हैं कि मुलायम सिंह की मौजूदगी के चलते माया तीसरे मोर्चे में शायद ही शामिल हों। इसी कारण कांग्रेस की उम्मीदें बंधी हुई हैं और उत्तरप्रदेश में बसपा तथा कांग्रेस के बीच खुला नहीं तो गोपनीय समझौता अवश्य होगा। इसकी एक झलक पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान दिखाई दी थी। हालांकि तब कांग्रेस लाभ उठाने में कामयाब नहीं हुई थी, लेकिन बसपा और कांगे्रस का साथ मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब जैसे राज्यों में कांग्रेस को मजबूती दिला सकता है। क्योंकि यहां बसपा को 5 से 10 प्रतिशत तक वोट मिल ही जाते हैं और इनका कांग्रेस के साथ जुडऩा फायदे का सौदा हो सकता है।
लखनऊ से मधु आलोक निगम

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