03-Sep-2016 07:05 AM
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मप्र की शिक्षा को भ्रष्टाचार का गढ़ बनाने वाले त्रिवेदी बंधुओं यानी व्यापमं के पूर्व परीक्षा नियंत्रक व घोटाले के मुख्य आरोपी डॉ. पंकज त्रिवेदी तथा उनके भाई और राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) के कुलपति प्रो. पीयूष त्रिवेदी की संपत्ति राजसात हो सकती है। सरकार ने पंकज त्रिवेदी की संपत्ति राजसात कर विशेष न्यायालय में केस चलाने की अनुमति दे दी। साधिकार समिति ने त्रिवेदी की संपत्ति राजसात करने के लिए सरकार से अनुमति मांगी थी। जिसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अनुमति दे दी है। वहीं ईओडब्लयू और लोकायुक्त ने पीयूष त्रिवेदी की काली कमाई की संपत्ति की पड़ताल शुरू कर दी है। इस मामले में पीयूष त्रिवेदी पर लगातार नकेल कसी जा रही है।
भ्रष्टाचार व अनियमितताओं के आरोप में घिरे राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विवि के कुलपति पीयूष त्रिवेदी के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। लोकायुक्त पुलिस को लोकेंद्र गुर्जर ने शिकायत की थी कि कुलपति पीयूष त्रिवेदी द्वारा किए गए भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की गड़बड़ी की जांच के लिए 2008-09 और 2009-10 की आडिट रिपोर्ट की जाना चाहिए। इस मामले में गुर्जर के बयान हो चुके हैं। ज्ञातव्य है कि इससे पहले ईओडब्ल्यू ने भी पीयूष त्रिवेदी की संपत्ति के मामले में उनसे पूछताछ कर चुकी है।
ज्ञातव्य है कि आरजीपीवी कैंपस की 239.19 एकड़ बेशकीमती जमीन को यूनिवर्सिटी के रसूखदार अधिकारियों द्वारा अपने परिजनों व सगे-संबंधियों के नाम पर रजिस्ट्री कराए जाने के मामले में लोकेन्द्र गुर्जर ने 16 अगस्त को विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त कार्यालय में अपने बयान दर्ज कराए। लोकेन्द्र गुर्जर द्वारा इस मामले की शिकायत लोकायुक्त में पिछले महीने की गई थी। लोकेन्द्र गुर्जर के अनुसार आरजीवीपी यूनिवर्सिटी में जमीन घोटाले के नाम पर करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार हुआ है। उन्होंने बताया कि आरजीपीवी जमीन घोटाले के मामले में यूनिवर्सिटी के डिप्टी एग्जाम कंट्रोलर धर्मेश शुक्ला, प्रोफेसर पंकज जैन, डीन ऊर्जा विभाग मुकेश पांडे, एचओडी आईटी संजीव शर्मा, पत्रोपाधि विभाग सचिव अरुण नाहर सहित आरजीपीवी के वर्तमान कुलपति पीयूष त्रिवेदी के नाम प्रमुखता से शामिल हैं। 27 मई 1999 को आरजीपीवी के तत्कालीन प्राचार्य एके जैन ने सहायक बंदोबस्त अधिकारी को यूनिवर्सिटी की 239.19 एकड़ जमीन के सीमांकन कराए जाने के लिए एक पत्र लिखा था। इसी दौरान डिप्टी एग्जाम कंट्रोलर धर्मेश शुक्ला सहित प्रोफेसर पंकज जैन, डीन ऊर्जा विभाग मुकेश पांडे, एचओडी आईटी संजीव शर्मा ने यूनिवर्सिटी की बेशकीमती जमीन को खरीदने व बेचने का गोरखधंधा शुरु किया।
लोकेन्द्र गुर्जर का कहना है कि आरजीपीवी की बेशकीमती जमीन की खरीद—फरोख्त के दौरान 19 अप्रैल 2005 से 9 अगस्त 2007 तक पत्रोपाधि विभाग सचिव अरुण नाहर की पत्नी मधु नाहर आरजीपीवी यूनिवर्सिटी वृत्त की तहसीलदार के रूप में पदस्थ थी। यूनिवर्सिटी की जमीन खसरा क्रमांक 536/1/5/4 में रकबा 0.46 हेक्टेयर जमीन को छिपाते हुए डिप्टी एग्जाम कंट्रोलर धर्मेश शुक्ला की पत्नी के नाम पर रिजस्टर्ड किया गया। इसी खसरे के हिस्से में यूनिवर्सिटी प्रोफेसर पंकज जैन की पत्नी सरवर जैन के नाम पर भी रजिस्ट्री की गई। यही नहीं खसरा क्रमांक 536/1/5/1 और 536/1/5/2 रकबा 0.632 हेक्टेयर जमीन एक होटल व्यवसायी रंजीत सिंह पिता सरदार अमरीक सिंह के नाम रजिस्टर्ड कराई गई।
रंजीत सिंह को बेची गई जमीन के पैसों का भुगतान डीन ऊर्जा विभाग मुकेश पांडे और एचओडी आईटी संजीव शर्मा द्वारा किया गया है। इसी खसरा नम्बर 536/1/2 का रकबा 0.809 हेक्टेयर की रजिस्ट्री सुबदा पत्नी पुनीत कुमार के नाम पर की गई। लोकेन्द्र गुर्जर का कहना है कि इन पांचों नामांतरण में अभिलेख में कैफियत का कोई जिक्र नहीं किया गया, जबकि नियमानुसार किस प्रयोजन और किसके द्वारा नामांतरण का आवेदन किया गया और नामांतरण किया गया है इसका कैफियत खाना नम्बर 12 में उल्लेख होना अनिवार्य है। इस जमीन के अलावा षडय़ंत्र के तहत भोपाल इंजीनियरिंग कालेज की जमीन आरकेडीएफ को गैरकानूनी तौर पर दी गई। न्यायालय में प्रकरण के चलते कोर्ट में जानबूझकर कागजात प्रस्तुत नहीं किए गए, जिसके चलते आरजीपीवी यूनिवर्सिटी कैंपस स्थित भोपाल इंजीनियरिंग कालेज की जमीन आरकेडीएफ को सौंपी गई। इसके अलावा हर्जाने के रूप में दस लाख रुपए भी आरकेडीएफ को दिए गए।
लोकेन्द्र गुर्जर ने आरोप लगाए हैं कि इस पूरे धोखाधड़ी के मामले में आरजीपीवी पत्रोपाधि सचिव अरुण नाहर की पत्नी तत्कालीन तहसीलदार मधु नाहर की भूमिका संदिग्ध है। लोकेन्द्र गुर्जर का आरोप है कि इस पूरे प्रकरण में आरजीपीवी के वर्तमान कुलपति पीयूष त्रिवेदी की भी अहम भूमिका रही है। गुर्जर का कहना है कि पीयूष त्रिवेदी भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के एक प्रवक्ता के सगे रिश्तेदार हैं, इसी कारण अभी तक मामले पर पर्दा डाला जा रहा है। लोकेन्द्र गुर्जर ने इस पूरे मामले की गंभीरता से जांच कराए जाने की मांग केन्द्र एवं राज्य सरकार से की है। बताया जाता है कि लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू द्वारा पीयूष त्रिवेदी पर नकेल कसने की खबर सामने आते ही विश्वविद्यालय में हड़कम्प मच गया है। आलम यह है कि आरजीपीवी में त्रिवेदी की कार्यप्रणाली से रुष्ट रहने वाले लोग लामबंद होने लगे हैं। साथ ही त्रिवेदी के भ्रष्टाचारों की पोल खोलने की तैयारी कर रहे हैं। यानी त्रिवेदी बंधु अपने ही जाल में फंस गए हैं। अब देखना यह होगा कि ये इस जाल से निकल पाते हैं कि नहीं।
दोनों भाइयों के पास मिली है अनुपातहीन संपत्ति
बताया जा रहा है कि दोनों भाइयों के पास अनुपातहीन संपत्ति मिली है। मालूम हो कि वर्ष 2014 में पंकज त्रिवेदी और और उनके भाई पीयूष त्रिवेदी के इंदौर और भोपाल स्थित घरों में लोकायुक्त पुलिस ने छापामार कार्रवाई की थी। इस दौरान लोकायुक्त को पंकज त्रिवेदी के इंदौर स्थित मकान से करीब तीन करोड़ रुपए की संपत्ति का पता चला था। इसके अलावा भोपाल में बैंक ऑफ बड़ौदा की शाखा के एक लॉकर में भी मिला था। इस संपत्ति में से पंकज के पास 84 लाख की अनुपातहीन संपत्ति पाई गई जो काली कमाई से जमा की गई थी। पंकज त्रिवेदी पर वर्तमान में भोपाल जेल में बंद है और आय से अधिक संपत्ति के मामले में इंदौर की जिला कोर्ट में ट्रायल चल रहा है। वहीं पीयूष त्रिवेदी आरजीपीवी में कुलपति के पद पर पदस्थ हैं और दिसंबर में वे रिटायर होने वाले है। उधर ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त ने पीयूष त्रिवेदी की काली कमाई की जांच शुरू कर दी है।
बाकी भ्रष्टों का क्या होगा...?
सरकार और उसकी जांच एजेंसियों ने त्रिवेदी बंधुओं पर तो नकेल कसनी शुरू कर दी है, लेकिन उन भ्रष्ट अफसरों का क्या होगा, जिनके पास आयकर विभाग और लोकायुक्त के छापों में करोड़ों की संपत्ति मिली थी। उल्लेखनीय है कि प्रदेश के भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति जब्त करने के लिए सरकार ने मध्यप्रदेश विशेष न्यायालय अधिनियम 2011Ó लागू किया था लेकिन प्रदेश के सबसे भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ इस अधिनियम के तहत कोई कार्रवाई नहीं की गई है। आलम यह है कि कई भ्रष्ट अफसर छापेमारी के बाद फिर से अपना रसूख कायम करने में जुट गए हैं।
उल्लेखनीय है कि जब इस अधिनियम के तहत इंदौर जिले में विशेष अदालत ने पहला फैसला सुनाते हुए इंदौर के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय में सहायक ग्रेड तीन के रूप में पदस्थ रहे रमण धुलधोये उर्फ रमेन्द्र के विशाल फार्म हाउस को आवासीय खेल परिसर में बदल देने का निर्णय दिया था तब ऐसा लगा था कि प्रदेश में भ्रष्टों पर अब नकेल कसी जा सकेगी। लेकिन उसके बाद किसी भी बड़े अधिकारी के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। ज्ञातव्य है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून में प्रावधान है कि प्रदेश सरकार अपने कारिंदों की भ्रष्ट तरीकों से बनाई गई संपत्ति को जब्त करके जन हित में इसका इस्तेमाल कर सकती है। हालांकि इस कानून के तहत अभी तक लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू द्वारा कई अधिकारियों-कर्मचारियों की चल-अचल संपत्ति जब्त करने की अनुशंसा सरकार से की गई है।
सबसे अधिक मामले जलसंसाधन विभाग में
जिन अधिकारियों कर्मचारियों की संपत्ति जब्त करने की अनुशंसा की गई है उनमें सबसे अधिक जलसंसाधन विभाग के हैं। इनमें पीसी मोहबिया प्रभारी मुख्य अभियंता जल संसाधन विभाग सिवनी, मातेश्वरी प्रसाद चतुर्वेदी एसी जलसंसाधन विभाग रीवा, शमशेर सिंह सोलंकी सहायक यंत्री जलसंसाधन सीधी, प्रहलाद अमरिया एसडीओ जलसंसाधन विभाग उज्जैन, पीएन तिवारी एसडीओ जलसंसाधन सिवनी, राधेश्याम पाटीदार उपयंत्री जलसंसाधन विभाग खरगोन का नाम शामिल है। इनके अलावा उज्जैन के पटवारी ओमप्रकाश प्रेम और बिरेश उपाध्याय के अलावा महेंद्र कुमार जैन अधीक्षण यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी, बाबूलाल गोठवाल संपदा अधिकारी इंदौर विकास प्राधिकरण, छोटे खान लेखापाल महिला एवं बाल विकास विभाग अलीराजपुर, ताराचंद पारीकर मंडी सचिव बड़वानी, वीरेंद्र कुमार आर्य सहायक निरीक्षक कृषि उपजमंडी खनियाधाना, अरविंद कुमार तिवारी उपयंत्री आरईएस देवास, संतोष कुमार आर्य उपयंत्री आरईएस खरगोन, भवानी प्रसाद भारके आबकारी अधिकारी होशंगाबाद, नीलम मिंज आरक्षक परिवहन, चित्रसेन बिसेन संस्था प्रबंधक सहकारिता विभाग, बलभद्र प्रसाद पाराशर समिति प्रबंधक सहकारिता विभाग ग्वालियर, त्योसिल तिग्गा सत्कार अधिकारी सामान्य प्रशासन विभाग। यहां सवाल यह भी उठता है कि एक तरफ सत्कार अधिकारी त्योसिल तिग्गा के खिलाफ कार्रवाई तो की गई लेकिन उसी मामले में राज्य शिष्टाचार अधिकारी राजेश मिश्रा और आरएन सहाय के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई। जबकि मिश्रा उस मामले के मुख्य आरोपी थे। उन्हीं के हस्ताक्षर से सारे बिल पास होते थे और कैश में पार्टियों का भुगतान होता था। यही नहीं स्वास्थ्य विभाग में आयकर विभाग ने जिन अधिकारियों के यहां छापे मारे थे उनकी संपत्ति जब्ती की कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है।
-इंदौर से सुनील सिंह