दिग्गी हैं कि मानते नहीं!
03-Sep-2016 06:55 AM 1234942
दिन पर दिन कांग्रेस रसातल में जा रही है। लेकिन उसके नेताओं की बेबाकी कम होने का नाम नहीं ले रही है। खासकर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह तो ऐसे बयान दे रहे हैं जैसे उन्होंने कांग्रेस को बर्बाद करने की सुपारी ले रखी है। अब देखिए न 15 अगस्त को लाल किले से जब प्रधानमंत्री ने पाक अधिकृत कश्मीर और बलूचिस्तान का मुद्दा छेड़ पाकिस्तान को सांसत में ला दिया है ऐसे में दिग्विजय सिंह ने मुंह खोला तो स्वयं के साथ ही कांग्रेस को भी मोदी के बिछाए जाल में फंसा गए। दिग्गी राजा के बयान से कांग्रेस की छीछालेदर हो रही है। उधर कार्यकर्ताओं का कहना है कि कांग्रेस पटरी पर कैसे लौटे दिग्गी हैं कि मानते नहीं। दरअसल 18 अगस्त को भोपाल में जब दिग्विजय सिंह ने मोदी को टारगेट करते हुए कहा, उनको पाक अधिकृत कश्मीर की ज्यादा चिंता है। बलूचिस्तान की चिंता है। उन्हें बधाई देते हैं, धन्यवाद देते हैं। लेकिन हिंदुस्तान के कश्मीरियों से बात करने को तैयार नहीं है। चाहे पाक ऑकुपाइड कश्मीर हो या भारत ऑकुपाइड कश्मीर हो, अगर विश्वास कायम करना है तो बातचीच के जरिए हो सकता है। पीएम के इस टकराव से हालात बिगड़ेंगे, सुधरेंगे नहीं। दिग्गी राजा के इस बयान से राजनीतिक भूचाल खड़ा हो गया। हालांकि दिग्विजय ने बाद में सफाई दी, लेकिन जितना नुकसान होना था वह तो हो गया है। सब जानते हैं कि राजनीतिक बयान में लोगों की दिलचस्पी ज्यादा होती है, सफाई में कम। दिग्विजय सिंह की जुबान अमूमन फिसलती है या जानबूझकर फिसलाई जाती है। दोनों में बुनियादी फर्क है। क्योंकि जब पिछले दिनों दिल्ली में बीफ विवाद पर आयोजित एक कार्यक्रम में दिग्विजय सिंह गए, तब उन्होंने कहा था कि सुबह-सुबह जानबूझकर अपनी शक्ल सोशल मीडिया पर दिखाते हैं, ताकि उन्हें कोसने वाले का दिन अच्छा निकले। मतलब राजनीति का भी हो सकता है और कभी-कभी वोट का भी, पर हर मुद्दे पर और हर वक्त पर बात बिगड़े तो सवाल यह भी है कि पार्टी कब तक और कहां तक बचाव करती फिरे। कश्मीर एक संवेदनशील मुद्दा है और सुदूर राज्य के किसी नागरिक से भी सामान्य चर्चा कीजिए तो वह उसे पाकिस्तान और आतंकवाद से जोड़ता है। कश्मीर में मौजूदा अशांति की शुरूआत बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद शुरू हुई और सरकार अब तक समझाने और जताने में सफल रही है कि पाकिस्तान किस तरह माहौल को बिगाडऩे में लगा है, लिहाजा रणनीति के तहत ही बलूचिस्तान और पीओके का मुद्दा सरकार की तरफ से उठाया गया है। दिक्कत यह है कि सोशल मीडिया से यूं भी लोगों को खबरों का मर्म ज्यादा और तेज समझ में आता है। लेकिन दिक्कत यहां दिग्विजय सिंह जैसे अनुभवी नेताओं के बयानों और उसकी टाइमिंग को लेकर ज्यादा है। हालांकि दिग्विजय स्वयं भी सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। ऐसे समय में जब कश्मीर, बलूचिस्तान और गिलगित पर प्रधानमंत्री मोदी के बयान को लेकर पार्टी में अंदरूनी मतभेद साफ दिख रहा है। पार्टी के लोग अलग-अलग सफाई देने में जुटे है, और यह साबित करने में लगे हैं कि पार्टी में मतभेद नहीं का मसला कम, निजी राय व्यक्त का मसला ज्यादा है। ऐसे में दिग्विजय सिंह की जुबानी फिसलन पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर गई। और नतीजा भी तुरंत दिखने लगा, आनंद शर्मा को मोर्चा संभलना पड़ा और एक बार फिर बताना पड़ा कि यह किसी की निजी राय हो सकती है, पार्टी की नहीं। कश्मीर को लेकर संसद के अंदर और बाहर पार्टी की रणनीति को लेकर पहले ही सवाल खड़े हो रहे है और सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी के करीबी नेताओं का मानना है कि संसद के अंदर पार्टी ने जो रणनीति अपनाई, वह सर्वानुमति के आधार पर नहीं थी। जो पार्टी कश्मीर पर संसद में बयान को लेकर अड़ी थी और जिसने बहस की मांग की, वह बिना प्रधानमंत्री के जबाव के मान गई और राजनाथ सिंह के जवाब पर हामी भर गई। बाद में प्रधानमंत्री ने जब ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई और उसमें बलूचिस्तान और पीओके का मसला उठाया, तो कांग्रेस भी साथ खड़ी नजर आई, फिर ऐसा क्या हुआ कि वही बात मोदी ने जब लाल किले से कही तो सलमान खुर्शीद बिदक गए और यहां तक कह गए कि यह गंवारों की विदेश नीति की तरह है, रणदीप सुरजेवाला कुछ और कहते नजर आए, जबकि आनंद शर्मा और राजीव शुक्ला कुछ और बयान दे रहे थे। और हद तो यह कि दिग्विजय सिंह तो पूरे किए कराए पर पानी फेर गए। दिग्विजय की हैट्रिक रासायनिक क्रियाओं के परीक्षण में पहली बार में संभावना जताई जाती है  मसलन, एसिटेट हो सकता है। दूसरी बार में उसकी पुष्टि की जाती है एसिटेट होने की संभावना है। तीसरी बार तो पक्के तौर पर मान लिया जाता है एसिटेट है। 2011 में जब अमेरिका ने पाकिस्तान में घुस कर आतंकी ओसामा बिन लादेन को मार गिराया तो दिग्विजय ने कहा, ओसामाजी पाकिस्तान में कई सालों से रह रहे थे। ये कैसे संभव था कि पाकिस्तान का अथॉरिटीज उसका पता नहीं लगा पाई। दिग्विजय ने अमेरिका से दरख्वास्त की थी कि ओसामा के शव को सम्मानजनक तरीके से दफनाने का इंतजाम करे। 2013 में एक मौके पर पाकिस्तानी आतंकवादी हाफिज सईद को लेकर दिग्विजय ने कहा, हाफिज सईद साहब आतंकी गतिविधियों में लिप्त हैं और पाकिस्तान उनका समर्थन करता है। पहली बार दिग्विजय का ओसामा बिन लादेन पर बयान आया तो माना गया जबान फिसल गयी। दूसरी बार दिग्विजय ने जब हाफिज सईद को सम्मान दिया तो उसे उनकी भूल माना गया। लेकिन तीसरी बार कश्मीर पर उनके बयान को किस रूप में देखा जाना चाहिये? कोई न कोई केमिकल लोचा तो है, लेकिन ये भी तो किसी मुन्नाभाई को ही समझ आएगा। -भोपाल से अरविंद नारद
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