नौकरशाही का नकारापन सरकार की विफलता
03-Sep-2016 06:53 AM 1234983
मप्र में अब शासन, प्रशासन और भाजपा संगठन में बैठे लोगों की नाफरमानी बर्दाश्त नहीं होगी। जो भी सरकार और संगठन की गाइड लाइन के खिलाफ काम करेगा उस पर सीधी कार्रवाई होगी। यह फरमान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने हाल ही में भोपाल में हुई समन्वय बैठक में दिए। मप्र में चुनाव को अभी ढाई साल बचे हैं लेकिन पिछले ढाई साल में जो दाग लगे हैं, उन्हें मिटाने में काफी वक्त और परिश्रम जाएगा। इसलिए संघ अभी से सख्त हो गया है। इसी क्रम में संघ के प्रचारकों ने संगठन और सरकार के साथ मिलकर बातचीत की और स्पष्ट किया कि बहुत हुआ शोर शराबा, अब अनुशासन दिखाई देना चाहिए। संघ को महसूस हुआ है कि जब तक सत्ता और संगठन में आपसी सामंजस्य नहीं होगा, नौकरशाही नियंत्रित नहीं होगी, सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ सीधे गरीब तबके तक पहुंचाने में सरकार को संगठन की मदद नहीं मिलेगी, तब तक 2018 को फतह करना नामुमकिन होगा। इसी चिंता में डूबे संघ ने नए तेवरों के साथ कवायद शुरु कर दी है। जाहिर है, एक के बाद एक बैठकों ने यह साफ कर दिया है कि मप्र में राजसत्ता इन दिनों आशंकाओं के दौरे से गुजर रही है। आशंकाएं-कुशंकाएं सत्तारुढ़ भाजपा की चौथी पारी को लेकर है, जिसे दो वर्ष बाद अक्टूबर-नवंबर 2018 में चुनाव समर में उतरना है। इसलिए संघ ने व्यवस्था दी कि अब के बाद से सभी लोग अनुशासन में रहेंगे। बेतुके बयान जारी नहीं करेंगे। जो भी अनुशासनहीनता करेगा उसके खिलाफ अब सीधी कार्रवाई की जाएगी। यही नहीं संघ अब मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के आचार, कामकाज, जनता के बीच छवि, जनता के साथ उनका व्यवहार एवं चुनाव की स्थिति में जीत की संभावनाओं का आंकलन करेगा। यानी अपनी दो दिनी बैठक में संघ ने सरकार और संगठन के नेताओं को इस बात का अहसास कराया की सत्ता पाकर आप यह न भूलो की जनता ही असली शासक है।  दो दिन तक भोपाल में चली राज्य की सत्ता-संगठन और संघ के आला कर्ताधर्ताओं के बीच समन्वय बैठक में भ्रष्टाचार और नाफरमानियों का सारा ठीकरा नौकरशाही पर फोड़ दिया गया और सारी बैठक आरोप-प्रत्यारोप के बीच सिमट कर रह गई। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इन हालातों के लिए केवल ब्यूरोक्रेसी जिम्मेदार है? सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है? भ्रष्टों और नाफरमानों पर कार्रवाई से उसके हाथ किसने बांध रखे हैं। क्या इसकी सच्चाई का पता लगाना जरूरी नहीं है। सरकार और संगठन ने भले ही इस ओर न सोचा हो लेकिन संघ ने साफतौर पर कह दिया है कि नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार और नकारापन सरकार की विफलता का परिचायक है। संघ ने बैठक में शिकायत करने वालों को साफ-साफ शब्दों में कहा है कि अफसर इसलिए मंत्रियों और नेताओं की नहीं सुन रहे हैं क्योंकि अलग-अलग पावर सेंटर से अलग-अलग आदेश मिल रहे हैं। प्रभारी मंत्री के आदेश के विरुद्ध स्थानीय विधायक व अन्य पदाधिकारी काम कराना चाहते हैं। ऐसे में नौकरशाही एक-दूसरे की कमजोरी का फायदा उठाती है। जनता के बीच जाएं बैठक में संघ के नेताओं ने मंत्रियों की जमकर क्लास ली। साथ ही उन्हें हिदायत दी कि वे जनता के बीच रहने वाले लोगों की सुने। जब भी कोई योजना बने तो यह ध्यान रखा जाए कि जिनके लिए योजना बन रही है उनसे सलाह ली जाए। यानी संघ की साफ हिदायत थी कि मंत्री जनता के बीच जाकर योजनाओं का खाका तैयार करें। यही नहीं मंत्रियों को हिदायत दी गई कि वे अपने स्टाफ को संघ के अनुषांगिक संगठनों के नेताओं और भाजपा के पदाधिकारियों के महत्व से अवगत कराएं। दरअसल, मंत्रियों का स्टाफ इतना कांईयां हो गया है कि वह मंत्री और भाजपा के बीच खाई बना रहा है। न तो भाजपा नेताओं और न ही कार्यकर्ताओं को मंत्रियों से मिलने दिया जाता है। उधर, मंत्री भी अपनी ही पार्टी के नेताओं को भाव नहीं दे रहे हैं। इसकी शिकायत किसान संघ ने भी की है। इसलिए संघ ने भाजपा के मंत्रियों को चेताया है कि आप ये न समझों कि आज जिस बुलंदी पर पहुंचे हो तो बड़ा कमाल हो गया है। बुलंदी पर पहुंचना कोई कमाल नहीं है। बुलंदी पर ठहरना कमाल है। मप्र में भाजपा पिछले 12 साल से बुलंदी पर है, लेकिन यह मंत्रियों नहीं बल्कि शिवराज जी और संघ के स्वयंसेवकों की बदौलत। लेकिन आखिर कब तक? मंत्रियों और अफसरों में नहीं बैठ रही पटरी तो कैसे होगा विकास संघ द्वारा ली गई बैठक में कामकाज की समीक्षा के दौरान सरकार की नाकामी की बात सामने आने पर नेताओं ने जिस तरह से अफसरशाही को दोषी बताया उससे स्पष्ट हो गया है कि प्रदेश में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। इस दौरान भ्रष्टाचार के मामलों में जांच एजेंसियों को चालान पेश करने की अनुमति न देने वाले नेता ही अफसरों के भ्रष्टाचार का रोना रोते रहे। सवाल यह है कि अगर अफसर भ्रष्टाचार व नाफरमानी कर रहे हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई करने या फिर शिकायत क्यों नहीं की जाती है। वजह कुछ भी हो, लेकिन जनप्रतिनिधियों और अफसरों के बीच चल रहे टकराव और उनके बीच बढ़ रही दूरियों का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। संघ ने तो साफ-साफ शब्दों में कह दिया कि जब मंत्रियों और अफसरों में ही पटरी नहीं बैठ रही है तो विकास कैसे होगा। -अक्स ब्यूरो
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