03-Sep-2016 06:44 AM
1234901
मप्र में अरबों रूपए खर्च होने के बाद भी कुपोषण तो खत्म हुआ नहीं की प्रदेश को ठिगनेपन की बीमारी ने ग्रसित करना शुरू कर दिया है। यह इस बात का संकेत है कि सरकार द्वारा बच्चों को दिए जा रहे पोषण आहार में खोट है या फिर सरकारी योजना केवल कागजों पर सिमट रही है। तभी तो कुपोषण के मामले में मप्र की सेहत ठीक नहीं हो पा रही है। बुंदेलखंड के जिलों में तो हालत और भी खराब है। नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-4 के ताजा आंकड़े बताते हैं कि देश में कुपोषण के मामले में मप्र दूसरे नंबर पर है। इन हालातों के चलते यहां शिशु मृत्यु दर भी तेजी से बढ़ रही है। यही वजह है कि शिशु मृत्यु दर के मामले में मप्र पहले स्थान पर आ गया है। लेकिन सबसे चिंता की बात यह है कि अब मप्र के बच्चों में ठिगनेपन की बीमारी समा रही है। सामाजिक कार्यकर्ता रोली शिवहरे बताती हैं कि यूं तो कुपोषण मापने के तीन माध्यम होते हैं। जिसमें 0-5 वर्ष के कम वजन के बच्चे, ठिगने बच्चे तथा पतले बच्चे आते हैं। बिहार में कम वजन के कुपोषण का प्रतिशत 43.9 है। 42.8 प्रतिशत के साथ मप्र दूसरे नंबर पर है। मप्र में ठिनगापन 42 प्रतिशत और पतलापन 51 प्रतिशत है। मप्र में कुपोषण पर नियंत्रण नहीं हो पाने के पीछे के कारणों पर चिंता किए जाने की जरूरत है। वहीं एनएफएचएस-3 के मुकाबले सर्वेक्षण-4 में राज्य का शिशु मृत्यु दर 18 अंक घटकर 51 पर पहुंच गई है। यानि प्रत्येक हजार जीवित जन्म पर 1 वर्ष तक शिशुओं में 51 शिशुओं की मृत्यु हो जाती है। जबकि शिशु मृत्यु के मामले में मप्र का देशभर में पहला नंबर है। यह गंभीर चिंता की स्थिति है।
प्रदेश में सबसे अधिक कुपोषण बड़वानी और श्योरपुर में है। सागर जिले को छोड़कर छतरपुर, पन्ना, दमोह, टीकमगढ़, दतिया में कुपोषण अभी भी जड़ें जमाए है। यहां आंकड़ा 55 प्रतिशत है। जबकि सागर जिला कुपोषण की गंभीर स्थिति से फिलहाल बाहर है। मप्र में सबसे कम कुपोषण सागर जिले में ही है जिसका प्रतिशत 30.5 है। सबसे कम पतले बच्चों का प्रतिशत भी सागर में 16.9 और छतरपुर में 18.9 है। लेकिन टीकमगढ़ और दतिया जिले में कुपोषण का ही दूसरा रूप माने जाने वाले ठिनगेपन का प्रतिशत अधिक है। टीकमगढ़ में 49.7 प्रतिशत और दतिया में 48.9 प्रतिशत बच्चे ठिगने पाए गए हैं। दूसरी ओर शिशु मृत्यु के मामले में सागर, दमोह, छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़ और दतिया जिले में चिंताजनक स्थिति सामने आई है। इन जिलों में प्रसव पूर्व देखभाल, मातृत्व देखभाल, पूर्ण टीकाकरण और स्तनपान जैसे मामलों में बड़ी लापरवाही की परिणति बढ़ती शिशु मृत्यु दर के रूप में सामने आ रही है। यही नहीं मिलेनियम डेवलपमेंट गोल (सहस्राब्दि विकास लक्ष्य या एमडीजी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भी मप्र में कुपोषण की भयावह स्थिति है। मध्य प्रदेश की यह स्थिति तब है, जब शिवराज सरकार की लाड़ली लक्ष्मी योजना, कन्यादान योजना, अन्नपूर्णा योजना, मजदूर सुरक्षा योजना जैसी करीब दर्जन भर सामाजिक योजनाएं खासी सुर्खियां बटोर चुकी हैं। शिवराज सिंह चौहान की दिनों-दिन बढ़ती लोकप्रियता का श्रेय भी उनकी ऐसी ही योजनाओं को दिया जाता है। इस लोकप्रियता का आलम यह है कि शिवराज को प्रदेश के बच्चों का मामाÓ तक कहा जाने लगा है। लेकिन तमाम रिपोट्स को देखकर तो लगता है कि सरकार की तमाम योजनाएं कागजी साबित हो रही हैं। उधर, महिला एवं बाल विकास विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक 71.90 लाख बच्चों (जिनका वजन लिया गया) में से केवल 12.23 लाख बच्चे ही कम वजन के पाए गए। राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा बच्चों के कुपोषण पर संकलित किये गए आंकड़ों में दिखाई दे रहे ऊंचे विरोधाभासों से यह सवाल उठता है कि इनमें से किन्हें सही माना जाएगा?
बच्चों को सलाखों से दाग रहे
प्रदेश में कुपोषण कम न होने के पीछे लोगों में जागरूकता की कमी भी है। शासन द्वारा कुपोषण दूर करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी ग्रामीणों में जागरूकता नहीं लाई जा सकी है। अधिकांश ग्रामीण अब भी बच्चों को इस बीमारी से निजात के लिए पेट पर गर्म सलाखें दाग रहे हैं। ऐसा ही मामला खंडवा जिले के आदिवासी ब्लॉक खालवा में सामने आया है। खालवा के बाल शक्ति केंद्र में भर्ती बच्चों के पेट पर इस तरह के निशान (चाचुआ) आसानी से देखे जा सकते हैं। हाल ही में खालवा ब्लॉक से दो बच्चों को बाल शक्ति केंद्र में भर्ती कराया गया था। वर्तमान में केंद्र में 24 बच्चे भर्ती हैं। करीब 7 बच्चे चिल्ड्रन वार्ड में भर्ती हैं। मेढ़ापानी निवासी करीना पिता गोविंद खालवा के बाल शक्ति केंद्र में भर्ती हैं। 36 माह की इस बच्ची के पेट पर चाचुआ के 30 से अधिक निशान हैं। दादी अनारबाई ने बताया कि बच्ची का पेट बड़ा हो गया था तो उसे गांव की एक अम्मा के पास चाचुआ के लिए ले गए थे। केंद्र में भर्ती बालिका का वजन महज 7 किलो है, जबकि उम्र के अनुसार उसका वजन 12 से 15 किलो होना चाहिए।
-विकास दुबे