तन-मन को फिट रखने के जरूरी उपाय
16-Apr-2013 09:35 AM 1234816

करीब सभी धर्मो में ध्यान की कुछ न कुछ विधियां प्रचलित हैं। एक कर्मकांड मान कर आज तक लोग इस पर ध्यान नहीं देते थे, लेकिन नए जमाने की लाइफ स्टाइलÓ में बीमारियों में ध्यान काफी उपयोगी साबित हो रहा है।


इस विषय पर हुए शोधों में कुछ ऐसी बातें उजागार हुई हैं जिनसे पता चलता है कि ध्यान से मन ही नहीं तन की दुरुस्ती भी सधती है। यह दिमाग में कुछ संरचनात्मक बदलाव के कारण होता हैं। बर्कले विश्वविद्यालय में इस विषय पर शोध के तहत आठ हफ्ते तक कुछ लोगों को नियमित रूप से ध्यान कराया गया। विधि बहुत कुछ विपश्यना जैसी थी। शुरू में इन लोगों के दिमाग के एमआरआई स्कैन किए गए और आठ हफ्ते बाद फिर एमआरआई से जांच की गई। जांच में पता चला कि ध्यान करने वाले के दिमाग में हिप्पोकैंपस नामक भाग में ग्रे सेल की संख्या काफी बढ़ गई। हिप्पोकैंपस का संबंध याददाश्त और सीखने की प्रक्रिया से र्है।  यह भी देखा गया कि तनाव से संबंधित भाग, जिसे एमाइग्डाला कहते हैं, में ग्रे सेल की संख्या में कमी आ गई थी। जिन लोगों ने ध्यान नहीं किया था, उनके दिमाग में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं हुआ।  तीन साल पहले हुई एक अन्य शोध में पता चला था कि ध्यान से लोगों का ब्लड प्रेशर कम हुआ है। शोधकर्ताओं ने पाया कि जब ध्यान करने वालों ने किसी व्यक्ति को तकलीफ में देखा, तो उनके दिमाग के टेम्पोरल पेराइटल संधि स्थानों पर सामान्य से ज्यादा हलचल हुई, इसका अर्थ यह है कि ध्यान करने वालों में दूसरों के प्रति संवेदनशीलता और सहानुभूति भी बढ़ जाती है।
बर्कले विश्वविद्यालय मे आठ अस्पतालों को भी शोध में शामिल किया और पाया कि नियमित ध्यान करने वाले मरीज बीमारियों से जल्दी उबरते हैं। वैसे कहा जा सकता है कि आधुनिक जीवन में तनाव ज्यादा है, लेकिन प्राचीन काल में तो जीवन ज्यादा कठिन था।  प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा कम थी, चिकित्सा विज्ञान भी उतना विकसित नहीं था, युद्ध, महामारी आदि के खतरे ज्यादा थे। असुरक्षा और अनिश्चितता तब ज्यादा थी, लेकिन तब मनुष्य ने अपने अंदर झांककर अपनी आत्मा में शांति और ठहराव का सतत झरना खोजा
याददाश्त बढ़ाने में कारगर है यह योगÓ
जीवन में सफलता के लिए अहम तत्व है एकाग्रता क्योंकि इससे हम अपने काम में ध्यान केन्द्रित कर पाते हैं। आज से लगभग 5000 ई.पू. महर्षि पतंजलि ने एकाग्रता बढ़ाने की विधि की खोज की थी।
इस विधि एक प्रचलित नाम त्राटक है। योगी और संत इसका अभ्यास परा-मनोवैज्ञानिक शक्ति के विकास के लिये भी करते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक शोधों ने यह सिद्ध कर दिया है कि इससे आत्मविश्वास पैदा होता है।
योग्यता बढ़ती है, और मस्तिष्क की शक्तियों का विकास कई प्रकार से होता है। यह विधि स्मरण-शक्ति को तीक्ष्ण बनाती है। प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रयोग की गई यह बहुत ही उपयोगी एवं महत्वपूर्ण पद्धति है।
-     योग की इस विधि का अभ्यास करने के सूर्योदय का समय सबसे उत्तम होता है। किन्तु यदि अन्य समय में भी इसका अभ्यास करें तो कोई हानि नहीं है।
-     किसी शान्त स्थान में बैठकर अभ्यास करें। जिससे कोई अन्य व्यक्ति आपको बाधा न पहुँचाए।
- स्क्रीन पर बने पीले बिंदु को आरामपूर्वक देखें।
-     जब भी आप बिन्दु को देखें, हमेशा सोचिये मेरे विचार पीत बिन्दु के पीछे जा रहे हैं इस अभ्यास के मध्य आँखों में पानी आ सकता है, चिन्ता न करें। आँखों को बन्द करें, अभ्यास स्थगित कर दें।
यदि पुन अभ्यास करना चाहें, तो आँखों को धीरे-से खोलें। आप इसे कुछ मिनट के लिये और दोहरा सकते हैं। अन्त में, आँखों पर ठंडे पानी के छींटे मारकर इन्हें धो लें।
एक बात का ध्यान रखें, आपका पेट खाली भी न हो और अधिक भरा भी न हो। यदि आप चश्मे का उपयोग करते हैं तो अभ्यास के समय चश्मा न लगाएँ।
यदि आप पीत बिन्दु को नहीं देख पाते हैं तो अपनी आँखें बन्द करें एवं भौंहों के मध्य में चित्त एकाग्र करें। इसे अन्त: त्राटक कहते हैं। कम-से-कम तीन सप्ताह तक इसका अभ्यास करें। परन्तु, यदि आप इससे अधिक लाभ पाना चाहते हैं तो निरन्तर अपनी सुविधानुसार करते रहें।

 

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