03-Sep-2016 06:37 AM
1234815
मप्र में वन क्षेत्र तेजी से कम हो रहा है। राष्ट्रीय वन नीति 1986 के अनुसार भू-क्षेत्र का कम से कम 1 तिहाई (33 प्रतिशत) को वन आच्छादित रखने का राष्ट्रीय लक्ष्य है, परंतु मध्य प्रदेश राज्य में केवल 25 प्रतिशत क्षेत्र ही वानाच्छादित शेष रह गया है, वह भी प्रतिवर्ष घटता जा रहा है। राष्ट्रीय योजनाओं के तहत जंगलों को पुनर्जीवित करने व वनीकरण क्षतिपूर्ति के लिए पौधा रोपण में हर साल करोड़ों रुपए फूंके जा रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी वन क्षेत्रों का दायरा सिमटता जा रहा है। विडंबना यह देखिए की सरकार वन क्षेत्र घटने के कारणों की पड़ताल करने की बजाय पौधा रोपण करने में लगी हुई है।
दरअसल, अभी हाल ही में आई कुछ रिपोट्र्स में इस बात का खुलासा हुआ है कि मप्र में वन क्षेत्र घटने का प्रमुख कारण वनों की कटाई है। बताया जाता है की प्रदेश के वन क्षेत्रों में धड़ाधड़ पेड़ों को काटा जा रहा है और खाली हो रही जमीन को खेत में तबदील किया जा रहा है। ऐसे मामलों की शिकायत रायसेन, देवास, दमोह, बालाघाट सहित करीब दर्जनभर जिलों में सामने आई है। रायसेन जिले के वन अभयारण्य क्षेत्र के बिनेका वन परिक्षेत्र के अंतर्गत नेशनल हाईवे 12 से लगे हुए बेशकीमती सागौन के जंगल को काटकर वहां पर खेत तैयार किए गए हैं। तैयार किए गए खेतों में अब फसल भी लहलहाने लगी है। यह जानकारी वन विभाग के अधिकारियों को भी है, लेकिन किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। वन अभयारण्य क्षेत्र रातापानी, बिनेका और सुल्तानपुर से कुछ दूरी के बाद सिंगोरी अभयारण्य क्षेत्र बाड़ी लग जाता है। इन क्षेत्रों में लगातार वनों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
रायसेन जिले में दो अभयारण्य क्षेत्र हैं, जिनमें रातापानी और सिंगोरी अभयारण्य शामिल हैं। बाड़ी, उदयपुरा, देवरी, बरेली से सुल्तानपुर तक यह सिंगोरी अभयारण्य फैला हुआ है। करीब 289 वर्ग किमी का विशाल क्षेत्र सिंगोरी अभयारण्य के अंतर्गत आता है। इस अभयारण्य में जहां बेशकीमती वनोपज का खजाना है। वहीं इस अभयारण्य में बड़ी संख्या में वन्य प्राणी भी हैं। यहां किसी भी तरह की अवैध गतिविधियां प्रतिबंधित हैं। इसके बाद भी यह वन क्षेत्र खेतों में तब्दील होता जा रहा है। इसके बाद भी इस अभयारण्य के 300 एकड़ क्षेत्र में लोगों ने अतिक्रमण कर रखा है। इसका दायरा हर साल बढ़ता जा रहा है। सिंघोरी अभयारण्य से लगे गांव पाली, डूंगरिया, चैनपुर, अंबाला, आशापुरी, सुल्तानपुर क्षेत्र में सेमरी, पिपरिया, पीपल वाली, केमवाली, पोनिया सहित दर्जनों गांव हैं जहां के जंगलों को काटकर खेतों में तब्दील कर लिया गया है। क्षेत्र के जनपद सदस्य इकबाल खान, सलीम खान, दुर्जन सिंह ने बताया कि जंगल की जमीन पर खेती हो रही है। यह वन विभाग के अधिकारियों को भी पता है, लेकिन कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। इस मामले में बिनेका के रेंजर शिवपाल सिंह का कहना है कि जो पेड़ कटे हैं, वह राजस्व भूमि से कटे हैं। हम सुल्तानपुर तहसीलदार को जांच कर प्रतिवेदन सौंप चुके हैं।
वहीं देवास जिले के सोनकच्छ वन परिक्षेत्र के ग्राम चौबारा बीट के तहत पहाड़ी क्षेत्र में करीब एक हजार सागौन के पेड़ काट कर खेत बनाने का मामला सामने आया है। शिकायतकर्ता पूर्व वनकर्मी फजलनूर पठान ने आरोप लगाए हैं कि, पहाड़ी की लगभग 50 हैक्टेयर भूमि पर करीब 800 से 1000 हजार हरे भरे पेड़ काटे गए हैं। समतल हुई जमीन पर कुछ अतिक्रमणकारियों को नियम विरुद्ध खेती करने की अनुमति भी दे दी, जिसके बाद यहां फसल उगती नजर आ रही है। नागरिक उपभोक्ता मंच युवा प्रकोष्ठ के मनीष शर्मा कहते हैं कि वनों की कटाई को रोकने में वन विभाग की कोई रूचि नहीं है। वह कहते हैं कि विभाग केवल पौधा रोपड़ में रूचि दिखा रहा है। लेकिन सामने आए आंकड़ों ने वन विभाग द्वारा किए जाने वाले पौधारोपण अभियानों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
नाव की तरह बहाकर ले
जा रहे सिल्लियां
प्रदेश के जंगलों का सफाया किस तरह हो रहा है इसका नजारा हाल ही में बुरहानपुर में सामने आया। वन विभाग को मुखबीर से सूचना मिली कि नावथा, सोनूद क्षेत्र से तस्कर ताप्ती नदी में बहाकर सागौन की सिल्लियां ले जा रहे हैं। डीएफओ डीएस कनेश ने रेंजर एसडी जाधव को सूचना दी। जाधव ने जवानों को राजघाट और सतियारा घाट पर तैनात कर दिया। राजघाट पर तैनात अमले ने तस्कारों को नदी में देखा लेकिन तस्कर यहां से निकलने में सफल हो गए। अमले ने सतियारा घाट पर तैनात अमले को खबर दी। सतियारा घाट पर तस्करों के पहुंचते ही जवानों ने नदी में छलांग लगा दी। जवानों को देखकर तस्करों ने सिल्लियां छोड़ दी। तेजी से तैरकर नदी पारकर भाग गए। जवानों ने बह रही सिल्लियों को पकड़कर बाहर निकाला। इसी तरह के मामले सागर, सतना में भी सामने आए हैं।
-श्याम सिंह सिकरवार