नई नीति की जरूरत
03-Sep-2016 06:35 AM 1234774
दक्षिण कश्मीर में आतंकी बुरहान वानी के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद से अशांति बनी हुई है। पत्थरबाजी और हिंसा में अनेक लोग मारे जा चुके हैं। सैकड़ों सुरक्षा कर्मी भी घायल हुए हैं। पाकिस्तान उकसाने की कार्रवाई कर रहा है। इसी मुहीम के तहत उसे 57 सदस्य देशों के संगठन, ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन (ओआईसी) को कश्मीर मुद्दे पर दखल देने को तैयार करने में कुछ हद तक सफलता भी मिली है। ओआईसी महासचिव इयाद अमीन मदनी ने बयान में कहा कि कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन भारत का आंतरिक मामला नहीं है। इस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ध्यान देना चाहिए। समस्या का राजनीतिक स्तर पर समाधान निकालना होगा। हालांकि इस संगठन का पाकिस्तान को समर्थन कोई नई बात नहीं है। जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बलूचिस्तान और गिलगिट के मुद्दे को छेड़ा और इन प्रांतों में पाकिस्तान का विरोध तेज हुआ, पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। भारत को उसकी कुत्सित मानसिकता को समझना होगा। घाटी में लगातार असंतोष व हिंसा से विकास ठप ही होगा। स्कूल-कॉलेज बंद होने, पर्यटन के पिटने से वहां के नागरिक आर्थिक रूप से टूट जाएंगे। यही पाकिस्तान और वहां बसे आतंकी गुट भी चाहते हैं। मोदी सरकार को कश्मीर में शांति बहाली के प्रयासों के साथ पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की रणनीति पर तेजी से काम करना होगा। प्रधानमंत्री ने जब पिछले माह कहा कि उनकी कश्मीर नीति वही रहेगी, जो पूर्व कांग्रेस सरकारों की रही है दशकों से, तो मुझे यकीन हुआ कि इस सबसे पुरानी राजनीतिक समस्या का समाधान अगले पचास वर्षों में भी नहीं हो सकेगा। इसलिए कि पूर्व कांग्रेस सरकारों के कारण ही है यह समस्या। पूर्व प्रधानमंत्रियों ने बार-बार बड़ी से बड़ी गलतियां न की होतीं तो संभव है कि आज कश्मीर की कोई समस्या ही न होती। गलतियों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि यहां उन सबको गिनाना नामुमकिन है, लेकिन हाल ही की सबसे बड़ी दो गलतियों का उल्लेख काफी होगा। इंदिरा गांधी ने 1984 में फारूक अब्दुल्ला की सरकार न बेवजह बेवक्त हटाई होती, तो कश्मीरियों को विश्वास हो जाता कि जैसे बाकी भारतवासियों के लिए लोकतंत्र या जम्हूरियत उनका संवैधानिक अधिकार है, उनके लिए भी होगा। याद रखिए कि 1977 तक जितने भी चुनाव हुए कश्मीर में, सब धोखा थे। इंदिराजी की गलती को सुधारा जा सकता था 1986 में अगर राजीव गांधी ने निष्पक्ष चुनाव कराए होते। फारूक उस समय हीरो थे, सो दोबारा जीत जाते जरूर और फिर अगर अगला चुनाव हारते अपनी गलतियों के कारण, तो कोई समस्या नहीं होती, क्योंकि जम्हूरियत की गाड़ी चल पड़ी होती। ऐसा नहीं हुआ और ऐसा न होने से शुरू हुई आजादीÓ की लड़ाई और आतंकवाद का यह सिलसिला। पाकिस्तान ने इसका तबसे फायदा उठाना शुरू किया, लेकिन समस्या उनकी वजह से पैदा नहीं हुई। समस्या पैदा हुई है भारत के प्रधानमंत्रियों की गलत नीतियों के कारण, सो ऐसा कहना बिलकुल गलत था प्रधानमंत्री मोदी का कि वे उन्हीं नाकाम नीतियों को आगे बढ़ाएंगे। पिछले दो वर्षों से लिखती आई हूं मैं कि नरेंद्र मोदी को नए सिरे से बनानी होगी कश्मीर नीति, वरना पचास वर्षों बाद भी संभव है कि कश्मीर के लोग आजादीÓ के लिए लड़ते होंगे। मुमकिन यह भी है कि जिहादी आतंकवादी अशांति का लाभ उठा कर कश्मीर घाटी में अपना कट््टरपंथी, खून से रंगा हुआ इस्लाम फैलाते होंगे। काश, प्रधानमंत्री ने कहा होता कि उनकी सरकार नए सिरे से बनाएगी कश्मीर नीति और उसका आधार होगा कि कश्मीरी अलगावादी तंजीमें जिस किस्म की आजादी मांग रही हैं, वह कभी नहीं मिलने वाली। इस बुनियादी शर्त को स्पष्ट करने के बाद जो भी चाहिए कश्मीर के लोगों को, उनको देने की कोशिश होगी। ऐसा कहते प्रधानमंत्री तो यह भी मुमकिन है कि जिन बच्चों को हमने श्रीनगर की सड़कों पर सुरक्षाकर्मियों को पत्थर मारते देखा है, उनके माता-पिता भी उन्हें समझा कर रोक सकते। ये ऐसे बच्चे हैं, जिन्होंने हिंसा के अलावा अपने जीवन में कुछ नहीं देखा है, क्योंकि अधिकतर पैदा हुए हैं 1989 के बाद। 6400 करोड़ की चोट कश्मीर में करीब दो माह से जारी विरोध प्रदर्शन और कफ्र्यू ने यहां के कारोबार जगत पर बड़ी चोट की है। अशांति के चलते कारोबारियों को अब तक 6400 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। अलगाववादियों द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों के कारण कश्मीर घाटी में दुकानों से लेकर पेट्रोल पंपों तक तमाम कारोबारी प्रतिष्ठान बंद हैं। हालांकि समय-समय पर अलगाववादी रात में दुकानें खोलने की छूट देते हैं लेकिन इससे कारोबारियों को कोई खास राहत नहीं मिलती दिखती।  कश्मीर ट्रेडर्स एंड मैन्यूफैक्चर्स फेडरेशन के अध्यक्ष मोहम्मद यासीन खान का कहना है कि कश्मीर में अशांति की वजह से यहां के कारोबार को रोजाना करीब 135 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। उन्होंने नुकसान का आकलन छह महीने पहले होने वाले कारोबार के आधार पर किया है। चपत राज्य सरकार को भी लगी है जिसे राजस्व के लिहाज से करीब 300 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। -अनूूप ज्योत्सना यादव
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