भाजपा में क्यों सुलग रही आंच?
03-Sep-2016 06:17 AM 1235201
मध्यप्रदेश में पिछले 12 साल से सत्ता पर काबिज भाजपा सरकार, संगठन और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में अचानक एक आग सुलगने लगी है। आलम यह है कि संघ और संगठन के निशाने पर सरकार आ गई है। भाजपा के दिग्गजों ने ब्यूरोक्रेसी पर हमला करते हुए यह प्रमाणित करने की कोशिश की कि आईएएस लॉबी पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का कंट्रोल नहीं है। या फिर आईएएस लॉबी केवल शिवराज सिंह के कंट्रोल में है। इसलिए वो संगठन और जनप्रतिनिधियों की बात ही नहीं सुनती। यहां तक कि मंत्रियों की बात पर भी ध्यान नहीं दिया जाता। आखिर ऐसा क्या हो गया है कि जिस सरकार को भाजपाई और संघी सुशासन का सबसे बेहतर उदाहरण मानते थे वह अचानक विलेन बन गई है। अब तो यह सवाल उठने लगा है कि बेलगाम ब्यूरोक्रेसी के बहाने कहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लीडरशिप पर तो हमला नहीं किया जा रहा है। दरअसल भाजपाइयों के सरकार के प्रति आक्रामक रवैए ने 2003 की उस तस्वीर की याद दिला दी है जब तात्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ ऐसा ही माहौल बना था। हालांकि इस बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले ही निशाने पर न हों लेकिन उनकी शासन प्रणाली पर सवाल जरूर उठ रहे हैं। आलम यह है कि सरकार और ब्यूरोक्रेसी पर सवाल उठ रहे हैं और मंत्री मौन हैं। आखिर ऐसा क्यों? इस सवाल के जवाब में भाजपा के एक पदाधिकारी कहते हैं कि दरअसल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एकला चलो की नीति पर शासन किया है। मंत्रियों की सरकार में हैसियत क्या है यह किसी से छिपा नहीं है। मंत्री के पास विभाग तो है लेकिन अधिकार नहीं है। मंत्रियों के सारे अधिकार मुख्यमंत्री के पास हैं। मुख्यमंत्री विभागीय कार्यों के लिए सीधे अफसरों से संपर्क में रहते हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि अफसर मंत्रियों की भी नहीं सुन रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ है। अगर भाजपा सूत्रों की माने तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी पहली पारी से ही इसी तरह शासन चला रहे हैं। दरअसल मध्यप्रदेश में भाजपा को सशक्त और जनप्रिय बनाने में शिवराज सिंह चौहान की महत्वपूर्ण भूमिका है। विगत दो विधानसभा चुनावों में भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल होने के बाद भी उन्होंने प्रदेश में पार्टी को रिकार्ड तोड़ जीत दिलाई। यानी शिवराज सिंह चौहान भाजपा की जीत के सूत्रधार रहे। विगत चुनाव में निष्क्रियता के कारण जब कई मंत्रियों पर हार का खतरा मंडरा रहा था तो शिवराज ने ही उन्हें भंवर से निकाला। फिर अचानक ऐसी कौन सी परिस्थिति निर्मित हो गई है कि शिवराज का शासन भाजपाईयों को ही कुशासन नजर आने लगा है। दरअसल मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान की बेरोकटोक चल रही पारी के बीच भाजपा के विधायकों को 2018 के विधानसभा चुनाव की चिंता सताने लगी है। विधायकों की चिंता का सबब कुछ और है तो भाजपा की मायूसी प्रदेश भाजपा संगठन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को परेशान कर रही है। नौकरशाहों के बेलगाम तेवरों ने मंत्रियों से लेकर विधायकों और सांसदों से लेकर आम कार्यकर्ताओं को आक्रोशित कर रखा है। विधानसभा के मानसूत्र सत्र में भी हमें यह देखने को मिला की मंत्री और मुख्यमंत्री अपने ही विधायकों के निशाने पर रहे। आखिर ऐसी नौबत क्यों आ रही है। इसको लेकर संघ आहत है और संगठन और सरकार को पटरी पर लाने में जुटा है। मैदानी रिपोर्ट से भड़का संघ बताया जाता है कि शिवराज सिंह चौहान आज भी भाजपा और संघ के लिए सबसे प्रिय हैं। लेकिन गुजरात की तरह ही संघ का सर्वे मध्य प्रदेश के लिए भी चिंता की लकीरें पैदा कर रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आंतरिक सर्वे में मध्य प्रदेश में भाजपा की सीटें एक सौ के नीचे जाने की आशंका है। 230 सीटों वाले मध्य प्रदेश में भाजपा 165 सीटों पर काबिज है। संघ का सर्वे भाजपा के लिए चेतावनी की घंटी है। अब भाजपाई संघ के इस सर्वे के बाद यह दर्शाने की कोशिश में जुट गए हैं कि प्रदेश में यह जो हालात निर्मित हुए हैं उसके लिए नौकरशाही जिम्मेदार है। कुछ हद तक इस बात में दम है। क्योंकि प्रदेश सरकार ने भले ही विकास योजनाओं की भरमार लगा दी है लेकिन उनका क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पाया है। आलम यह है कि विकास योजनाएं अटकने से जनता में आक्रोश है। जब कोई विधायक जनता के बीच पहुंचता है तो उसे जनआक्रोश का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में जब विधायक किसी मंत्री के पास पहुंचकर उनसे उनके विभाग की योजना के संबंध में बात करना चाहता है तो मंत्री साफ-साफ शब्दों में कह देते हैं कि मेरे हाथ में कुछ नहीं है। जो कुछ भी होगा वह मुख्यमंत्री ही करेंगे। ऐसे में न विधायक मुख्यमंत्री के पास अपनी समस्या लेकर पहुंच रहे हैं और न ही विकास कार्य पूरे हो पा रहे हैं। इससे भाजपा के एक वर्ग में असंतोष फैल रहा है। जानकारों का कहना है कि भाजपा में अंदर ही अंदर आंच सुलग रही है। पिछले महीने शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट के विस्तार के बाद से इस आंच से धुआं उठने लगा है। दरअसल, मध्यप्रदेश के राजनीतिक गलियारों में जब यह चर्चाएं चल रही थीं कि शिवराजसिंह चौहान अपना तीसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे। एक ओर कैलाश विजयवर्गीय सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रहे थे तो दूसरी ओर अनिल माधव दवे और बाबूलाल गौर जैसे क्षत्रप अपनी तलवारें भांज रहे थे। इन्हीं क्षत्रपों की खींचतान के कारण चौहान अपने मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर पा रहे थे। तभी अचानक हवा बदली और चौहान एक बार फिर राज्य के इकलौते कद्दावर भाजपा नेता साबित हुए। कैलाश और दवे को भाजपा आलाकमान ने केंद्रीय राजनीति में खींच लिया, तो गौर को वानप्रस्थ का रास्ता बता दिया गया। जैसी आशंका थी, फेरबदल के बाद असंतोष के स्वर तो जरूर उठे लेकिन इसमें उबाल नहीं आया और अभी तक शिवराज यह बाधा पार करने में भी सफल साबित हुए। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार शिवराज सिंह चौहान ने एक संतुलित मंत्री मंडल का गठन किया है लेकिन भाजपाईयों द्वारा आरोप लगाए जा रहे हैं कि सत्ता की चाशनी चंद लोगों को ही नसीब हो रही है। इस कारण प्रदेश भाजपा में चौतरफा गुटबाजी तेज हो चुकी है। अभी हाल ही में उज्जैन से काबीना मंत्री बने पारस जैन के खिलाफ विधायक मोहन यादव ने मोर्चा खोल दिया है। उज्जैन में एक बैठक के दौरान मोहन यादव और पारस जैन के बीच हाथापाई तक की नौबत आ गई थी। सागर में ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव और गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह के बीच अदावत तो पुरानी है। अब भार्गव की स्थानीय सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल से लड़ाई सड़कों पर आ गई है। ताई और भाई की अदावत के चलते इंदौर का एक भी भाजपा विधायक ताजा विस्तार में मंत्री नहीं बन सका है। शिवराज सिंह चौहान की इच्छा ताई समर्थक सुदर्शन गुप्ता को मंत्री बनाने की थी, लेकिन कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि सुदर्शन के साथ रमेश मेंदोला या उषा ठाकुर को भी मंत्री बनाया जाए। अब बढ़ते दबाव के बीच शिवराज जल्द एक विस्तार और कर सकते हैं। लेकिन काबीना विस्तार ने दो दर्जन से ज्यादा उन विधायकों को रुष्ट कर दिया है जो मंत्री बनने की हसरत पालकर बैठे थे। दरअसल, शिवराज की समस्या यह है कि प्रदेश में उन 64 विधायकों में से किसको चुनें, जो दो बार या उससे अधिक बार चुनाव जीत चुके हैं। ऐसे में असंतुष्ट नेता सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में जुट गए हैं। ऐसे में भाजपाइयों में मचे संग्राम से नौकरशाह मजे में हैं। विधायकों को कोई तवज्जो नहीं दे रहे हैं। श्योपुर के विधायक दुर्गा लाल विजय ने प्रभारी मंत्री से शिकायत की है कि जिले का एक कार्यपालन यंत्री इतना गुस्ताख है कि उनके मुंह पर सिगरेट का धुआं छोड़ता है। यही नहीं, सीएम की नाक के नीचे भोपाल जिला भाजपा में भी जबरदस्त मारकाट है। मंत्री उमाशंकर गुप्ता और विश्वास सांरग के साथ ही सांसद आलोक संजर, विधायक रामेश्वर शर्मा और महापौर आलोक शर्मा एक दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहाते। प्रदेश भाजपा में मचे इस गुटीय घमासान के बीच प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान असहज स्थिति से गुजर रहे हैं। नए संगठन महामंत्री सुहास भगत अब भी चीजों को समझने की कवायद में जुटे हैं। उनके पूर्व संगठन महामंत्री अरविंद मेनन की लॉबी उन्हें स्थापित नहीं होने दे रही है। शिवराज सिंह चौहान लगातार दौरे करके पार्टी में गतिशीलता तो बनाए हुए हैं लेकिन कार्यकर्ताओं को मलाल है कि चौहान अपने प्रवास के दौरान उनसे मिलने का वक्त नहीं जुटा पाते। संघ के सारे मोहरे विफल मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार और संगठन को लेकर जो बातें लंबे समय से सुर्खियों में थीं उससे लगता है कि संघ परिवार के कान पक गये हैैं। भाजपा को सुधारने की जितनी कोशिश संघ ने की अभी तक उसमें असफलता ही नजर आ रही है। पिछले दिनों भाजपा और संघ के शीर्ष नेताओं की बैठक में जो कुछ चर्चा हुई और उस गुप्त बैठक की जैसी खबरें छपीं उससे यह तो साफ हो गया है कि अब भाजपा नेता भी संघ के काबू से बाहर जा रहे हैैं। कहां तो सरकार और संघ मिलकर नौकरशाही को नियंत्रित करने के सपने देख रहे हैैं और उसका अपना संगठन ही उसके निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहा है। प्रदेश में बारह साल से सरकार पर काबिज भाजपा की हालत संगीन है। यह इसलिये भी क्योंकि संघ की हर कोशिश अब तक नाकामयाब होती दिखाई दी है। पहले तो संघ ने प्रदेश प्रभारी के रूप में अपने होशियार स्वयं सेवक विनय सहस्त्रबुद्धे को भेजा मगर वे निगम-मंडलों में अपने चेहेतों को लाल बत्ती दिलाने के मामले में बुरी तरह एक्सपोज हो गये। बेअसर होते सहस्त्रबुद्धे ने असफलता का ठीकरा तत्कालीन प्रदेश संगठन महामंत्री अरविंद मेनन पर फोड़ा। नतीजतन नाटकीय तरीके से मेनन की विदाई हो गई और उनके स्थान पर संघ ने एक टेक्नोक्रेट स्वयं सेवक सुहास भगत को संगठन महामंत्री बनाया।  मगर सत्ताधारी दल के लिये जितने तेजतर्रार और कार्यकर्ताओं की सुनने वाले संगठन महामंत्री की जरूरत महसूस की जा रही थी उसमें सुहास सफल होते नहीं दिखे। उदाहरण के लिये मंडल स्तर तक प्रवास करने की जो जरूरत शुरूआत में थी उसे उन्होंने अभी तक पूरा नहीं किया है। जब जमीनी हकीकत पता नहीं होगी, सक्रिय और निष्क्रिय, मेहनतकश और जुगाड़ू, दलाल और पार्टीनिष्ठ कार्यकर्ताओं की पहचान नहीं होगी तो मंडल से लेकर प्रदेश तक सुहास जी किसे सौैंपेंगे संगठन की कमान? ऐसा नहीं होने से जो प्रदेश पदाधिकारियों की पहली फेहरिस्त आई है उसमें चयन को लेकर अनाड़ीपन साफ दिखा। संगठन संघ और खांटी कार्यकर्ताओं की झलक नजर नहीं है। एक तरह से संगठन महामंत्री से जो अपेक्षा कार्यकर्ता कर रहे थे उसमें बुरी तरह असफल होने का प्रमाण नजर आया। इसके पहले भी जब शिवराज सरकार का विस्तार हो रहा था तो उसमें संगठन की छाप नहीं दिखी। कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, मंत्रियों की मनमानी, अफसरों की नफरमानी इन सबसे भाजपा के छोटे बड़े सारे नेता, कार्यकर्ता परेशान हैैं। दरअसल संगठन की कमजोरी इसमें सबसे खास वजह देखी जा रही है। एक तरह से संगठन, सरकार का पिछलग्गू दिखाई पड़ता है। संगठन में भी बिना शिवराज सिंह चौहान की मर्जी के कुछ नहीं होता। ऐसे में सरकार और संगठन पूरी तरह शिवराज सिंह चौहान पर आश्रित हैं। अभी तो सीन यह है कि कार्यकर्ताओं की संगठन नहीं सुन रहा है और संगठन की सरकार नहीं सुन रही है और सरकार और संगठन की अफसर नहीं सुन रहे हैैं। इन सब बातों से पार्टी हाई कमान और संघ मुख्यालय नागपुर के माथे पर बल पड़े गये हैैं। ऐसे में फजीहत संघ की हो रही है क्योंकि संघ फेल तो फिर क्या बचेगा? इसलिए संघ ने भाजपा और सरकार पर नकेल कसनी शुरू कर दी है। ऐसे में अपनी साख बचाने के लिए सरकार और संगठन के लोग ब्यूरोक्रेट्स को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। प्रत्यक्ष रूप से भले ही उनका निशाना नौकरशाहों पर है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से सभी मुख्यमंत्री को घेरने में लगे हुए हैं। लेकिन शिवराज सिंह चौहान के बिना फिलहाल मप्र में भाजपा की सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए उनके आभा मंडल के सामने सभी धूमिल हो रहे हैं। क्योंकि सबको मालूम है कि 2018 विधानसभा चुनाव में शिवराज ही भाजपा की नैय्या पार लगा सकते हैं। नौकरशाही के खिलाफ उपजे आक्रोश के संदर्भ में पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच का कहना है कि यह कोई नहीं बात नहीं है। यह प्रशासन और शासन में चलता रहता है। उधर पूर्व मुख्य सचिव कृपाशंकर शर्मा का कहना है कि नौकरशाही पर नकेल कसने के लिए इस तरह की कवायद चलती रहती है।  सरकार की नजर में नौकरशाही की कार्यप्रणाली घेरे में होगी इसलिए ऐसे सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यह तो शासन-प्रशासन में होता ही रहता है। गुस्ताखी के लिए माफ प्रदेश में तीन कलेक्टरों का तबादला इन दिनों चर्चा में है। सरकार ने अपने रुटीन कार्यक्रम के तहत प्रशासनिक फेरबदल करते हुए 13 जिलों के कलेक्टर्स को बदल दिया है। इसी फेरबदल में शाजापुर जिला कलेक्टर राजीव शर्मा, नरसिंहपुर कलेक्टर सिबि चक्रवर्ती और पन्ना जिला कलेक्टर शिव नारायण सिंह का तबादला कर दिया गया है। इनके तबादले के बाद इन जिलों में लोग इनका तबादला रुकवाने के लिए रैली निकाल रहे हैं। सोशल मीडिया पर अभियान छेड़ रखा है। सवाल उठता है कि क्या ऐसा अफसर ऐसा खुद करवा रहे हैं या जनता से उनका अधिक लगाव हो गया है। अफसरशाही बेलगाम... सुशासन पर उठ रहे सवाल! प्रदेश में सुशासन का दावा करने वाली अफसरशाही की संवेदनहीनता के नजारे हमें रोज देखने को मिल रहे हैं। योजनाओं परियोजनाओं का क्या हाल है यह सब जानते हैं। हद तो यह देखिए कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की महत्वकांक्षी योजना सीएम हेल्प लाईन में लोगों की समस्याओं का निराकरण करने में आला अफसरों की रूचि नहीं है। मुख्यमंत्री के बार-बार कहने के बावजूद अधिकांश प्रमुख सचिव लेवल-4 पर आने वाली शिकायतों की सुनवाई नहीं कर रहे हैं। सबसे मजेदार बात यह है कि कई प्रमुख सचिवों ने मुख्यमंत्री के आदेश का पालन करने के लिए अपने पीए को जिम्मेदारी थमा दी हैं कि वह उनकी तरफ से रोजाना 5 लोगों से बात कर उनकी शिकायत के निराकरण की जानकारी ले ले। यही नहीं मुख्यमंत्री अफसरों को एसी दफ्तरों से बाहर निकलकर जनता के बीच जाने की हिदायत पर हिदायत देकर थक गए लेकिन कोई भी अफसर गांव का रुख नहीं कर रहा है। तभी तो प्रदेश में सूखा पड़ जाता है और इसकी भनक किसी को नहीं लगती है। बड़े अधिकारी तो मुख्यमंत्री के निर्देशों का तो पालन कर ही नहीं रहे हैं। छोटे-छोटे अधिकारियों की भी यही स्थिति है। जानकारों का कहना है कि दरअसल पिछले 12 सालों से एक ही शासन प्रणाली के तहत काम कर-करके अफसर आजिज आ चुके हैं। भाजपा के एक नेता कहते हैं कि अफसर किसी एक के नहीं होते। फिर भी विसंगति यह है कि दिग्विजय शासनकाल के दमदार नेता भाजपा के शासनकाल में भी दमदार बने हुए हैं। अमेरिका से लौटते ही शिवराज मंत्री-अफसरों की लगाएंगे क्लास प्रदेश भाजपा में उठे तूफान को थामने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अमेरिका दौरे से लौटने के साथ ही मंत्री और अधिकारियों के साथ संयुक्त बैठक करेंगे। मुख्यमंत्री इस बैठक में चालू वित्तीय वर्ष में अब तक हुए कामों के साथ अगले सात महीनों की रूपरेखा पर चर्चा करेंगे। बैठक छह सितंबर को कैबिनेट बैठक के तत्काल बाद बुलाई गई है। सूत्रों के मुताबिक कैबिनेट विस्तार के बाद ये दूसरा मौका होगा, जब मुख्यमंत्री मंत्री और अधिकारियों के साथ संयुक्त बैठक करेंगे। पहली बैठक में मुख्यमंत्री ने मंत्री और अधिकारियों को फाइल ट्रेकिंग सिस्टम लागू करने, नवाचार अपनाने के साथ सोशल मीडिया का योजनाओं के प्रचार-प्रसार में उपयोग के साथ हर सोमवार योजनाओं की समीक्षा करने के निर्देश दिए थे। ज्यादातर मंत्रियों ने सोमवार को मंत्रालय में बैठकर समीक्षा करना तो शुरू कर दिया, पर सहकारिता विभाग के अलावा किसी अन्य विभाग ने फाइल ट्रेकिंग सिस्टम तैयार नहीं किया है। फाइलों के मूवमेंट को लेकर सामान्य प्रशासन विभाग ने नए सिरे से समयसीमा तय करने का प्रस्ताव तो तैयार किया है, पर इसे अंतिम रूप नहीं मिल पाया है। विभागीय अधिकारियों ने बताया कि इसे लेकर मुख्य सचिव अंटोनी डिसा के साथ बैठक होनी है। साथ ही मुख्यमंत्री अधिकारियों और मंत्रियों के बीच सामंजस्य बैठाने के लिए ठोस कदम उठाएंगे। क्या वाकई नौकरशाही ही निशाने पर है ? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सत्तारूढ़ प्रदेश भारतीय जनता पार्टी की समन्वय बैठक में जिम्मेदार लोगों द्वारा नौकरशाही पर हमले से अफसरशाही बेवजह परेशान हैं। क्योंकि यह आरोप वे लोग लगा रहे हैं जो सत्ता से बेदखल हैं। दरअसल कैलाश विजयवर्गीय जैसे राष्ट्रीय महासचिव नौकरशाही को भ्रष्ट और बेलगाम घोषित कर अपने ही मुख्यमंत्री पर निशाना साध रहे थे। यदि अफसर वाकई इस प्रकार खुल कर खेल रहे हैं तो इसके लिए सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री और फिर उनके वजीरों को ही दोषी नाम जाएगा। कैलाश विजयवर्गीय ने यह तो कह दिया कि अफसर हर काम में 20 प्रतिशत लेते हैं पर इसमें से कितना माननीय मंत्रीजी की जेब में जाता है यह उन्होंने नहीं बताया। वे कोई भोले भंडारी तो हैं नहीं, आखिर वे भी लोक निर्माण जैसे नंबर दो की कमाई के लिए बदनाम विभाग के मंत्री रह चुके हैं। अब वे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के खासमखास हैं और इस नाते प्रधानमंत्री मोदी के भी चहेते हैं। यह राजनैतिक पंडितों के आंकलन का विषय है कि राज्य सरकार पर यह हमला पार्टी हाईकमान की किसी रणनीति का हिस्सा तो नहीं है..? उधर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने दो टूक बयान दिया है कि कमी घोड़े अर्थात अफसरों में नहीं बल्कि घुड़सवार अर्थात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान में है। वैसे उनके इस बयान को मंत्री पद से हटाए जाने की टीस और गुस्सा कह कर खारिज नहीं किया जा सकता है। आखिर आईएएस, आईपीएस,आईएफएस और अन्य खास पदों पर नियुक्तियां मुख्यमंत्री ही करते हैं। संघ पता नहीं किस लोक में विचरण कर रहा है। उसके वरिष्ठ पदाधिकारी भैयाजी जोशी बैठक में बोले कि पार्टी विथ डिफरेंस है तो दिखना भी चाहिए। क्या उन्हें दिख नहीं रहा की सत्ता मिलने के बाद यह भी बस जुमला भर रह गया है और पार्टी कांग्रेस की सत्ता संस्कृति से तरबतर है?
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