17-Aug-2016 06:51 AM
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लखनऊ के एनजीओ लोकप्रहरी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों के कब्जे से सरकारी बंगलों को आजाद कराने का फैसला सुना तो दिया है लेकिन इन बंगलों में डटे लोग तो मान कर चल रहे हैं जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां! सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश के बाद वर्तमान समय में देश के 30 पूर्व मुख्यमंत्रियों के सरकारी आशियाने पर संकट मंडराने लगा है।
जिन पूर्व मुख्यमंत्रियों के सरकारी बंगले पर सुप्रीम कोर्ट की नजर लगी है उनमें उत्तरप्रदेश के छह, उत्तराखंड के छह, झारखंड के पांच, मध्यप्रदेश के पांच, बिहार के चार, पंजाब और असम के दो-दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपना यह आदेश उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों के संदर्भ में सुनाया है। लेकिन इसकी जद में अन्य वे पूर्व मुख्यमंत्री भी आ रहे हैं जो शासकीय आवासों पर काबिज हैं।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को दो महीनों में सरकारी बंगले खाली करने होगें। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश के अलग-अलग राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्रियों और उनके नजदीकी रिश्तेदारों के चेहरे पर निराशा छा चुकी है। और हो भी क्यों न, इतने सालों से मुख्यमंत्री नहीं रहने के बावजूद भी मुख्यमंत्री के ही बंगले में रहने का सुख मिलना भला किसे बुरा लग सकता है। देश के लगभग हर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ने आज तक अपना बंगला खाली नहीं किया है। आप लिस्ट देखेंगे तो चौक जाएंगे। इस लिस्ट में बिहार के सतीश कुमार सिंह का नाम भी है, जो 1968 में सिर्फ तीन दिन के लिए मुख्यमंत्री रहे। लेकिन एक आलीशान बंगला आज भी उनके नाम पर अलॉट है।
कई मुख्यमंत्री तो ऐसे भी है जिनके बारे में आप बहुत कम जानते होंगे। राज्य के मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य तो उन्हें प्राप्त हो गया, लेकिन जनता ने भले ही मुख्यमंत्री के उम्मीदवार को नकार दिया हो मगर बंगला तो आजीवन उनका ही हो गया। आप जिस राज्य में भी चले जाएं वहां पूर्व मुख्यमंत्री का बंगलाÓ पाएंगे। यानि आपने राज्य का भला किया हो या बुरा, एक बार मुख्यमंत्री बनने पर आपका तो आजीवन ही भला हो गया।
अब बिहार के जीतनराम मांझी का उदाहरण ले लीजिए। नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद इन साहब को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया। जनता ने इन्हें नहीं चुना था। ये साहब कुछ महीनों के लिये बिहार के मुख्यमंत्री रहे। मगर मुख्यमंत्री वाला बंगला तो उनके पास आज भी है। मध्य प्रदेश के बाबूलाल गौर को उमा भारती के इस्तीफे के बाद लगभग 2 सालों के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया था। जनता ने तो इन महाशय को भी नहीं चुना था। मगर बंगला तो उनका हो गया। आपको हर राज्य में ऐसे ही उदाहरण देखने को मिल जाएंगे।
मगर अब नहीं। अब देश के हर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री को अपना आलीशान बंगला खाली करना होगा। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री जीवनभर के लिए सरकारी बगलों में नहीं रह सकते हैं। उन्हें दो महीने में इन बंगलों को खाली करना होगा।Ó अब पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगला खाली करने में जो दुख होगा उसका तो आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। लेकिन अब क्या करें, आदेश है तो बंगला तो खाली करना ही होगा साहब। इस लिस्ट पर एक बार नजर डालिए। ये सभी देश के अलग-अलग राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। मगर अब तक बंगले इनके पास ही हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब बंगले खाली करने होंगे। इस लिस्ट में मुलायम सिंह से लेकर देश के गृहमंत्री का नाम भी है।
उत्तर प्रदेश में प्रतिद्वंदी पार्टियों के नेता, राजनीति के महाभारत में एक-दूसरे को नीचा दिखाने और हर कीमत पर सत्ता हथियाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। लेकिन विधानसभा में मारपीट और गेस्ट हाउस कांड के लिए बदनाम यूपी में एक मुद्दा ऐसा भी है जिसका नाम आते ही धुर विरोधी नेता भी दुश्मनी भूलकर गजब का भाईचारा दिखाते हैं। मौका जब सरकारी बंगले पर आजीवन कब्जा जमाने का हो तो यूपी से ज्यादा दरियादिली शायद ही किसी प्रदेश के नेता दिखाते हैं। इसी भाईचारे को अमली जामा पहनाने के लिए यूपी की सरकार में 1997 में बाकायदा पूर्व सीएम आवास आवंटन रूल्स बना दिया ताकि सबका बंगला हमेशा के लिए आबाद रहे। नेता जानते हैं कि सत्ता, मुठ्ठी में बंद रेत की तरह है जिसे बांध कर नहीं रखा जा सकता। आज इसके पास तो कल किसी और के पास। इसलिए जब बात सरकारी बंगले को जन्म जन्मांतर तक अपना बनाने की बात हो तो कोई किसी को नहीं छेड़ता। सबको पता है - सरकारी बंगले में रहने वाले, दूसरों के बंगलों में नहीं झांकते।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने जब से सभी भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों को दो महीने के भीतर बंगला खाली करने का आदेश दिया है, बंगले वालों की नींद उड़ी हुई है। राज्य सरकार ने भी जी जान लगाकर इस फैसले को पलटवाने की पैरवी कैसे की जाए इस पर माथापच्ची शुरू कर दी है। करे भी क्यों नहीं। इस फैसले की गाज मौजूदा मुख्यमंत्री के पिता मुलायम सिंह यादव पर भी गिरी है। बाकी नेता भी इसी चक्कर में हैं कि मुलायम का बंगला बचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार कुछ ऐसा दांव चले कि उनका बंगला भी बच जाए। कहने को तो मायावती और मुलायम सिंह एक-दूसरे से बात तक नहीं करते। लेकिन अखिलेश के राज में भी मायावती को माल एवेन्यू में बने अपने बंगले को और भी आलीशान बनाने में कहीं कोई दिक्कत नहीं आयी। आज भी मायावती के इस बंगले के बड़े-बड़े फाटक के पीछे तमाम कारीगर रात दिन काम करके इसे और आलीशान बनाने में लगे हैं। मायावती का ये बंगला इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि यूपी के नेता सरकारी पैसे को किस तरह मनमाने ढंग से अपने ऊपर खर्च करते हैं। मायावती ने इस बंगले के बगल में बने गन्ना आयुक्त के बंगले को धराशायी करवा अपने बंगले में मिलवा लिया था ताकि दलितों के सम्मान को पूरा विस्तार मिल सके। एक आरटीआई में इस बात का खुलासा हुआ था कि 2012 तक मायावती इस बंगले की साज-सज्जा पर 86 करोड़ रूपए खर्च कर चुकी थीं। उसके बाद से भी यहां लगातार काम चल रहा है।
लखनऊ में सरकारी बंगले का मोह ऐसा है कि कल्याण सिंह और रामनरेश यादव जैसे नेता जो राजभवन की शोभा बढ़ा रहे हैं वो भी बंगला छोडऩे को तैयार नहीं हैं। देश के गृहमंत्री के तौर पर राजनाथ सिंह के पास दिल्ली में अकबर रोड़ पर शानदार बंगला है। इसी तरह मायावती के पास दिल्ली में त्यागराज रोड पर बंगला है और मुलायम सिंह के पास भी अशोक रोड़ पर सरकारी बंगला है। एनडी तिवारी के पास भी उत्तराखंड में सरकारी आवास है। लेकिन लखनऊ के सरकारी बंगले का मोह ऐसा है कि कोई इसे छोडऩा नहीं चाहता है। लखनऊ के माल एवेन्यू में घूम कर देखें तो आप हैरान रह जाएंगे कि किस तरह एक के बाद एक सरकारी बंगले हमेशा के लिए नेता और उनके परिवार की जागीर बनते जा रहे हैं।
यह सांसद भी काबिल हैं
मप्र की राजधानी भोपाल में अनेक केंद्रीय मंत्री व सांसद भी नियम विरुद्ध तरीके से सरकारी बंगलों पर काबिज हैं। इन सभी को दिल्ली में बंगले अलाट हैं फिर भी उन्होंने अपने प्रभाव का उपयोग कर भोपाल में भी बंगले अलाट करा रखे हैं। केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर तो इस मामले में सबसे आगे हैं। उन्हें दिल्ली के साथ-साथ भोपाल और ग्वालियर में भी बंगला आवंटित किया गया है। यह बात दूसरी है कि ग्वालियर में आवंटित बंगले में तोमर की बजाए भाजपा के संगठन मंत्री का कब्जा रहता है। तोमर के अलावा सुषमा स्वराज, प्रभात झा, कांतिलाल भूरिया, नंदकुमार सिंह चौहान, कमलनाथ ने दिल्ली के साथ-साथ भोपाल में भी बंगले आवंटित करा रखे हैं और वे ठप्पे से इन बंगलों में रह रहे हैं।
इन पर बंगले खाली करने का नैतिक दबाव
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब मध्यप्रदेश के आधा दर्जन पूर्व मुख्यमंत्रियों पर भी सरकारी बंगले खाली करने का नैतिक दबाव बढ़ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के संदर्भ में आदेश जारी किया है, लेकिन इसका असर मध्यप्रदेश पर भी पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के 6 पूर्व मुख्यमंत्रियों को लखनऊ में आवंटित सहकारी बंगले खाली करने के निर्देश दिए हैं। मध्यप्रदेश में राज्य सरकार ने प्रशासनिक आदेश जारी कर पूर्व मुख्यमंत्रियों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देते हुए उन्हें सरकारी बंगले में रहने, केबिनेट मंत्री की तरह सरकारी सुविधाओं को भोगने के निर्देश दे रखे हैं। प्रशासनिक आदेश में उल्लेख है कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जीवन भर केबिनेट मंत्री की सुविधा भोग सकेंगे। यह आदेश दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में निकाला गया था और इसका लाभ उनके पूर्ववर्ती पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी दिया गया था। वर्तमान में 6 पूर्व मुख्यमंत्री इस सुविधा का लाभ ले रहे हैं। इनमें मोतीलाल वोरा, सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, दिग्विजय सिंह, उमा भारती और बाबूलाल गौर शामिल हैं। इनमें वोरा, पटवा और जोशी वर्तमान में किसी भी सदन के सदस्य नहीं है। जबकि दिग्विजय सिंह राज्यसभा में, उमा भारती उत्तर प्रदेश के झांसी से लोकसभा में और बाबूलाल गौर मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य हैं। नियमानुसार इन 6 में से सिर्फ बाबूलाल गौर को विधायक के रूप भोपाल में सरकारी आवास में रहने की पात्रता है। लेकिन उमा भारती और दिग्विजय सिंह को सांसद के रूप में दिल्ली में बंगले अलाट हैं इसलिए भोपाल में बंगले की पात्रता नहीं है। इन सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नैतिकता के आधार पर बंगले खाली करने का दबाव बढ़ गया है।
-अक्स ब्यूरो