17-Aug-2016 06:38 AM
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देश के गांवों की तस्वीर और तकदीर बदलने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 अक्टूबर, 2014 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन के मौके पर सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत की थी। तब ऐसा लगा था कि देश की उस 70 फीसदी आबादी का भाग्य अब चमक उठेगा जो गांवों में निवासरत है। इस योजना को शुरू हुए दो साल होने को है लेकिन आज भी गांव बदहाल हैं। हालांकि प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद लोकसभा के 545 और राज्यसभा के 250 सदस्यों में से 700 ने आनन-फानन में गांवों को तो गोद ले लिया, लेकिन उनमें से अधिकांश ने दोबारा गांवों का रूख नहीं किया। इसका परिणाम यह हो रहा है कि आदर्श ग्राम योजना रसातल में जा रही है।
सांसद आदर्श ग्राम योजना का मकसद गांवों के मूलभूत ढांचे में सुधार लाना और उनमें ऐसे मूल्यों को स्थापित करना है जिससे वे आदर्श गांव बन जाएं। इस योजना के तहत लोकसभा के सांसदों को अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक गांव की पहचान करके 2016 तक उसे आदर्श ग्राम के तौर पर विकसित करना था। राज्यसभा के सांसदों को, जिस राज्य से वे आते हैं, वहां का कोई गांव गोद लेकर उसे आदर्श ग्राम बनाना था। इसके बाद 2019 तक कम से कम दो और गांवों का विकास इसी तर्ज पर हर सांसद को करना है। इसका मतलब यह हुआ कि वर्तमान मोदी सरकार के कार्यकाल में हर लोकसभा और राज्यसभा सांसद को कम से कम तीन गांवों को आदर्श ग्राम बनाना है।
भले ही इस योजना का दूसरा चरण शुरू हो चुका है। लेकिन इसकी शुरुआत भी कोई खास उत्साह जगाने वाली नहीं है। अब तक 82 सांसदों ने ही अपने पहले गांव का काम पूरा कराकर दूसरे गांव को गोद ले लिया है। इनमें लोकसभा के 66 और राज्यसभा के 16 सांसद शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के जयापुर गांव को पहले चरण में गोद लिया था। अब उन्होंने दूसरे चरण के लिए अपने संसदीय क्षेत्र में नागेपुर गांव को गोद लिया है।
मध्यप्रदेश की बात करें तो यहां स्थिति यह है कि आदर्श ग्राम योजना अपने मकसद में फिलहाल पिछड़ती दिख रही है। यहां इक्का-दुक्का काम को छोड़ दें तो हालत जस की तस है। योजना के क्रियान्वयन में सांसदों की उदासीनता के चलते अधिकारी भी ज्यादा रुचि नहीं ले रहे हैं। सतना जिले के चित्रकूट से लगे पालदेव गांव को मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने बतौर आदर्श ग्राम चुना है। यह गांव प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख की कर्मस्थली में से रही है। जब जावड़ेकर यहां आए थे तो केंद्रीय मंत्री के साथ नेताओं और अफसरों के वाहनों का काफिला देखकर पालदेव के आदिवासियों ने भी सोच लिया कि अब उनके दिन फिरने वाले हैं। इन दिनों स्थिति यह है कि गांव की सड़कें कीचड़ से सनी हैं। बीमार को इलाज के लिए 50 किमी दूर मझगवां स्वास्थ्य केंद्र जाना पड़ता है। इसी प्रकार बिजली, पानी, शिक्षा समेत सभी प्रकार की समस्याएं आज भी आदर्श गांव का मजाक उड़ा रही हैं। हालांकि आदर्श ग्राम घोषित होने के बाद 25 लाख रुपए साफ-सफाई के लिए खर्च किए गए हैं। कच्ची सड़कों के किनारे नालियां बनाई गईं, जो अब मिट्टी से पटी पड़ी हैं। मुख्य सड़क पर 400 मीटर का डामरीकरण कराया गया था, जो पहली बारिश में ही बह गया।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, छिंदवाड़ा से सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के चुने गए गांव बीसापुर कला में विकास आधा-अधूरा है। जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर बीसापुर के ग्रामीण आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। बारिश में गांव का हाल बुरा है। दर्जन भर सड़कों का निर्माण शुरू हुआ है, लेकिन यह पूरा कब होगा, किसी को नहीं पता। सांसद के प्रयास से यहां एक निजी बैंक की शाखा जरूर खुली है। एक शाखा पहले से ही थी। ग्रामीणों को इस बात की कोफ्त है कि कागजों में उनके गांव को आदर्श कहा जाता है। होशंगाबाद से बीजेपी सांसद राव उदय प्रताप सिंह के चुने गए गांव सांगाखेड़ा में भी दिखाई देता है। ग्रामीणों का कहना है कि कुछ नहीं बदला, बल्कि समस्याएं बढ़ गई हैं। आदर्श गांव का निवासी कहे जाने पर वे कुछ अंदाज में नाराज होते हैं- इस तरह का मजाक बहुत दिनों से हो रहा है। बारिश में पाइप लाइन से कीचड़ युक्त पानी घरों में पहुंच रहा है। गांव के कच्चे रास्तों पर गर्मी में धूल तो बारिश में दलदल रहता है। बरौदा सागर भी बेहाल कुछ ऐसे ही हालात सागर से भाजपा सांसद लक्ष्मीनारायण यादव के चयनित गांव बरौदा सागर के हैं। बारिश के दौरान घुटनों तक पानी में चलकर गांव में प्रवेश करना पड़ता है। गांव में बिछी पाइप लाइन कई जगह जमीन से बाहर निकल आई है। कनेक्शन भी आधे घरों में हैं। आधा गांव पानी सिर पर ढोता है। ग्रामीण कहते हैं कि यदि आदर्श गांव ऐसा बनता है तो अब किसी दूसरे गांव का चयन मत करें।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के चयनित आदर्श गांव चीनौर से डबरा मंडी तक जाने के लिए महत्वपूर्ण सड़क का डेढ़ साल से सिर्फ सर्वे ही चल रहा है। स्कूल और सरकारी कार्यालयों की बदहाली भी कम नहीं है। साढ़े चार लाख रुपए की लागत से दो सार्वजनिक शौचालय बनवाए गए, लेकिन पानी का कनेक्शन न होने के चलते उनमें ताला डाल दिया गया है। जबलपुर के सांसद और भाजपा के लोकसभा में मुख्य सचेतक राकेश सिंह के चयनित गांव कोहला का हाल भी कुछ ऐसा ही है। गांव की आधी आबादी बेरोजगार है। निकट भविष्य में हालात में सुधार की उम्मीद भी नहीं दिखाई देती। विभागों में आपसी समन्वय न होने से गांव में ही पशुपालन विभाग ने 35 बेरोजगारों को डेयरी चलाने का प्रशिक्षण दिया, लेकिन इनमें से सात पात्र लोगों को बैंक से लोन ही नहीं मिल सका। उन्होंने गाय-भैंस मांगे तो मुर्गियां पकड़ा दी गईं। कोहलावासियों का दर्द है कि सांसद के पहुंचने पर ही अधिकारी आते हैं।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और खंडवा के सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के चयनित गांव आरुद को भी कायाकल्प की उम्मीद थी। यहां 900 शौचालयों के निर्माण को छोड़ दें तो बाकी काम प्रस्तावों के स्तर पर ही हैं। लाखों की लागत से बने बाजार में कीचड़ और जलभराव के कारण यहां कारोबार मुश्किल हो रहा है। छात्र नाली कूदकर स्कूल में प्रवेश कर पाते हैं।
गांव में सौर ऊर्जा से स्ट्रीट लाइट लगाने के लिए ऊर्जा विभाग की तरफ से ही दो करोड़ 36 लाख रुपए का प्रस्ताव तैयार किया गया था, लेकिन उसका अता-पता नहीं है। आरूद के विकास का प्रयास कर रहा हूं। बेसिक इंफास्ट्रक्चर के बाद सौंदर्यीकरण सहित अन्य कई काम मेरी प्राथमिकता सूची में हैं। पढ़ावली की पीड़ा मुरैना के सांसद अनूप मिश्रा के चयनित आदर्श गांव पढ़ावली में भी विकास आधी दूरी ही तय कर पाया है। सड़क आधे गांव में ही बन पाई है। जिधर नहीं बनी है, बारिश में वह हिस्सा गांव से कट जाता है। गांव में 800 से ज्यादा घर हैं, लेकिन महज डेढ़ सौ में ही शौचालय हैं। सांसद अनूप मिश्रा कहते हैं कि पढ़ावली के लिए तय विकास योजनाओं के मुताबिक ही काम कराया गया है। एक साथ तो सभी काम नहीं हो सकते। आगामी दिनों में पूरा गांव आदर्श हो जाएगा।
इन 95 माननीयों को नहीं भा रही विकास योजना
देश में 95 सांसद ऐसे भी हैं जिन्होंने एक भी गांव को गोद नहीं लिया है। इनमें 44 सांसद लोकसभा के हैं और 51 राज्यसभा के जिनमें ज्यादातर सांसद विपक्षी दलों के हैं। जिन लोगों ने अभी तक अपने लिए किसी गांव का चयन नहीं किया है उनमें वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जयराम रमेश भी शामिल हैं। यह हैरानी की बात है कि वे पिछली यूपीए सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री हुआ करते थे। लेकिन वे अकेले नहीं है। दिग्विजय सिंह, कर्ण सिंह, आनंद शर्मा, सत्यव्रत चतुर्वेदी, बीके हरिप्रसाद और अधीर रंजन चौधरी भी उन्हीं की कतार में शामिल हैं। वाम दलों के सीताराम येचुरी, डी राजा, तपन कुमार सेन और मोहम्मद सलीम जैसे नेताओं ने भी इस योजना के तहत किसी गांव का चयन करना जरूरी नहीं समझा। समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव और जनता दल यूनाइटेड के महासचिव केसी त्यागी भी इस सूची में शामिल हैं। हर मुद्दे पर अपनी राय देते रहने वाले एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी अब तक इस योजना के तहत कोई गांव गोद नहीं लिया है। इस सूची में हैरान करने वाला एक नाम सत्ताधारी भाजपा से मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का।
-इन्द्रकुमार