कुर्सी के लिए अभी से कसरत
17-Aug-2016 06:41 AM 1234835
सत्ता की कुर्सी के लिये अभी लगभग ढाई साल का सफर शेष है। इसके बावजूद राजस्थान में सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी लगातार दूसरी पारी खेलने की फिराक में है तो विधानसभा में प्रतिपक्ष की जाती हुई कुर्सी को बचा सकी कांग्रेस धर्नुधारी अर्जन की मानिंद सत्ता के लक्ष्य पर निशाना साधने की होड़ में जुट गई है। बदकिस्मती यह है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को जहां आम जनता में शासन प्रशासन की छवि बनाये रखने के साथ सरकार एवं पार्टी संगठन में बेहतर तालमेल की चादर में होने वाले छिद्रों को रोकने की कवायद में अपनी ताकत लगानी पड़ रही है। वहीं प्रदेश कांग्रेस के नेतृत्व को भी संगठन के हर स्तर पर व्याप्त आपसी कलह तथा गुटबाजी और कांग्रेसजनों के बड़े तबके की सड़कों पर आकर संघर्ष नहीं करने की मानसिकता से जूझना पड़ रहा है। ऐसे माहौल में सौ सुनार की एक लुहार की तर्ज पर आजादी के बाद पहली बार अनुसूचित जनजाति के वरिष्ठ आई.ए.एस. ओम प्रकाश मीणा को मुख्य सचिव पद पर बिठाकर मुख्यमंत्री ने अपने दूरदर्शी निर्णय से एक तीर से कई निशाने साध लिये है। सियासी एवं प्रशासनिक समीकरण के चलते सोशल इंजीनियरिंग के पैमाने पर वसुंधरा राजे का यह फैसला कितना सटीक सिद्ध होगा इसके लिये तो लम्बा इंतजार बाकी है लेकिन राज्य के प्रशासनिक तंत्र में दो बार के विस्तार के बाद मुख्य सचिव सी.एस. राजन का कार्यकाल 30 जून 2016 को समाप्त होने पर सवाई माधोपुर जिले के अत्यंत प्रभावी मीणा परिवार के सदस्य ओम प्रकाश मीणा को शासन का मुखिया बनाना अप्रत्याषित एवं दूरदर्शिता का परिचायक माना गया है। ओ.पी. मीणा के अग्रज हरीशचंद मीणा राज्य के पुलिस महानिदेशक पद से सेवानिवृत्ति के बाद अभी दौसा से भाजपा सांसद है तो नमोनारायण मीणा कांग्रेस शासन में केन्द्रीय मंत्री रहे है। अन्य भाई भी बड़े पदों पर रहे है। जून 1957 में जन्में और 1979 बैच के आई. ए. एस. ओ.पी. मीणा कैट चेयरमैन नीलिमा जौहरी के बाद वरिष्ठतम नौकरशाह है जिन्हें लगभग साढे चार माह पूर्व ही शासन सचिवालय से बाहर का रास्ता दिखाते हुये राजस्थान आवासन मण्डल का अध्यक्ष एवं आयुक्त बनाया गया था। यह समझा जाता है कि अनुसूचित  जनजाति के अधिकारी की मुख्य सचिव पद पर नियुक्ति के निर्णय के पीछे वरिष्ठ आई.ए.एस. उमराव सालोदिया द्वारा राज्य सरकार पर दलित वर्ग के अधिकारियों की अनदेखी के आरोप, धर्म परिवर्तन की घोषणा के साथ स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के प्रकरण को जोड़ा गया है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अनुसूचित जनजाति के वरिष्ठ अधिकारी को मुख्य सचिव बनाकर बड़ी लकीर खीची है तो विधानसभा के आगामी चुनाव में मीणा समुदाय के वोट बैंक के गणित को भी ध्यान में रखा है। इसी गणित के मद्देनजर उन्होंने पहली बार राज्य विधानसभा के अध्यक्ष पद पर अनुसूचित जाति के कद्दावर नेता कैलाशचन्द्र मेघवाल को सर्वस मति से आसीन करवाया तो डा. ललित के. पवार को राजस्थान राज्य लोकसेवा आयोग का चेयरमैन बनाया। डा. पंवार पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पहले कार्यकाल में उनके सचिव थे। राज्यसभा में दलित वर्ग के राजकुमार वर्मा को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाकर जिताया। पूर्व आई.ए.एस. आर के मीणा को राजस्थान अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था। केन्द्र में मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चाओं के बीच राजस्थान में भी नये मंत्रियों की नियुक्ति तथा मंत्रियों के विभागों में फेरबदल की स भावनाओं को भी मुख्यमंत्री की सोशल इंजीनियरिंग की कवायद के रूप में देखा जायेगा। संगठनात्मक दृष्टि से सत्तारूढ़ भाजपा की स्थिति को संतोषप्रद नहीं माना जा रहा। प्रदेशाध्यक्ष पद पर दूसरी बार आसीन हुए विधायक अशोक परनामी अभी तक प्रदेश कार्यसमिति का गठन नहीं कर पाये है। राजधानी की जयपुर इकाई का भी यही हाल है। विपक्ष द्वारा सरकार पर लगने वाले हर आरोप का जबाव देने के लिए प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी को मशक्कत करनी पड़ती है। भाजपा की हर बैठक में सरकार की योजनाओं की जानकारी तथा उपलब्धियों से जनता के सभी वर्गों को अवगत कराने पर बल दिया जाता है। लेकिन जमीनी हकीकत का यह आलम है कि जयपुर में 23 जून को प्रदेश कार्यसमिति के नाम पर बुलाई गई वृहद बैठक में मुख्यमंत्री के पूछने पर कोई भी जिलाध्यक्ष राज्य सरकार की पांच लैगशिप योजनाओं का उल्लेख नहीं कर पाया। कांग्रेस जुटी रणनीति में उधर कांग्रेेस भी रणनीति बनाने में जुट गई है। प्रदेश के प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव गुरूदास कामत के पहले राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा पर हुई प्रतिक्रिया से पार्टी की खेमेबाजी उजागर हुई। कामत अब हाथÓ थामने के लिए वापस लौट आये है। कांग्रेस को सत्ता पर आसीन कराने के मंसूबे से वह गुजरात की तर्ज पर राजस्थान में भी करीब सालभर पहले संभावित प्रत्याशियों की घोषणा का फार्मूला अपनाने का विचार कर रहे है। आपसी गुटबाजी में फंसी कांग्रेस कुर्सी के सफर के लिए क्या मशक्कत करती है, इसका इंतजार रहेगा। इतना तो जरूर है कि कांग्रेस के बढ़ते कदम देख भाजपा सहमी हुई है। -जयपुर से आर.के. बिन्नानी
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